Jeevatma
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जीव ‘जीव शक्ति’ विशिष्ट श्रीकृष्ण का अंश है
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जीव और श्रीकृष्ण में भेदाभेद संबंध है
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‘जीव शक्ति’ परमात्मा में अनुप्रविष्ट है इसी से भगवान जीव शक्ति संयुक्त है
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जीव का परिमाण अणु है
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जीव ह्रदय में रेहता है
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आत्मा का गुण है चेतनता या ज्ञान
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जीव ह्रदय में रहकर सारे शरीर में अपने गुण ज्ञान/चेतना विस्तृत करता है
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जैसे दीपक के बाहर उसका प्रकाश विस्तृत होता है
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जैसे अग्नि के बाहर उसकी उषाणता विस्तृत होता है
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जैसे पुष्प के बाहर उसकी गंध विस्तृत होता है
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जीवात्मा प्रज्ञा या ज्ञान द्वारा शरीर में सम्यक् रूप से आरोहण करता है
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जीव का श्रेष्ठ गुण है ज्ञान इसलिए उसे ज्ञान रूप से भी संबोधित किया जाता है
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जहाँ भेदाभेद संबंध है वहाँ, अभेद बुद्धि से शक्ति को स्वरूप कहा जाता है, भेद बुद्धि से शक्ति को गुण भी कहा जाता है
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भगवान की प्रतीति न होने पर जिसकी प्रतीति होती है और भगवान के बिना जिसकी स्वतः प्रतीति नहीं होती वोह माया है जैसे प्रतिबिम्भ, अंधकार
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देहात्म बुद्धि का पोषण करने के कारण जीव शरीर के दुःख में दुखी होता है
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जीव अणुचित है
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जीव का नित्यत्व है
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जीव का नित्य पृथक अस्तित्व है
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जीव संख्या में अनंत है
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जीव ज्ञान स्वरूप एवं ज्ञाता है (जैसे लाइट)
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जीव कर्ता है
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माया के गुण राग से रंजित, माया से आविष्ट जीव जो कुछ करता है वो वास्तव में माया गुण की प्रेरणा से करता है माया मुग्धाता के वशीभूत जीव उसको समझ न सकने के कारण मानता है की वो अपने कर्तृत्व की स्वाधीन परिचालना से ही सब कुछ कर रहा है
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जीव का कर्तृत्व परमेश्वर के अधीन है
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जीव और श्रीकृष्ण में भेदाभेद संबंध है