हमको वो लौकी कहते थे, लौकी त्रिपाठी, १ दिन पूछा, २ ३ दिन जब बोले ऐसे ही, हमने कहा गुरु जी आप लौकी क्यों कहते हैं, तो कहते हैं बेटा - लौकी में पहले फल आता है बाद में फूल आता है, मैं तुझको पढ़ाता हूँ मुझको शर्म लगती है, उस जन्म से ही तू सब पढ़ा पढ़ाया है। हम ऐसे पढ़ते थे जैसे ये किताब है, चले गए पढ़ते हुए और ४ ६ जगह लाल पेंसिल लगा दिया वो ही पूछते थे और उसी में लड़ाई हो जाए अब और विद्यार्थी जो गुरु जी ने जो कहा चुपचाप मान लिया और मैं उस पर शास्त्रार्थ करता था