सहानुभूति की बाहरी दिखावट और सच्ची सहानुभूति: एक विधवा से मिलना

सहानुभूति की बाहरी दिखावट और सच्ची सहानुभूति: एक विधवा से मिलना

मैंने १ बार देखा है प्रत्यक्ष अनुभव बताये आप लोगों को, आगरा में १ सत्संगी के घर मैं ठहरा हुआ था तो उसका पति मर गया, मतलब मर गया था पहले ३ ४ दिन पहले उसके बाद में उसके घर गया तो वो सब नाटक हो रहा था, तो अब मैं गया तो रहना पड़ा उसके घर में तो वो दृश्य भी सब देखने पड़े, क्या दृश्य वो स्त्री अच्छी खासी बैठी है रो वो करके अपना आँसू वाँसू पोछ के आराम से बैठी है इतने में १ स्त्री आई १ पुरुष आया और पता नहीं क्या कान में उसके कहा, अरे यही कहा होगा की कैसे हुआ वो तो अच्छे खासे थे कैसे मर गए मतलब उसकी याद दिला दिया, जिक्र कर दिया उसका बस वो फिर रोने लगी, अब बड़ी मुश्किल में कण्ट्रोल में आई १ देवता जी देवी जी फिर आ गए, ये जो सहानुभूति प्रकट करने जाते हैं लोग ये तो एक्टिंग करते हैं और उसकी मौत हो रही है बेचारे की याद कर करके यानी बार बार उसको याद दिला कर के हम और मन का अटैचमेंट कर रहे है उसमें ये डीटैचमेंट नहीं हो रहा है

Source: Suno Man ! Ek Anokhi Baat - lecture 5

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