विभाजित युगल से मिलना: विचार कैसे वास्तविकता को आकार देते हैं

विभाजित युगल से मिलना: विचार कैसे वास्तविकता को आकार देते हैं

एक दम्पत्ति का हाल मैं स्वयं जानता हूँ बुढ़ापे में दोनों, जब मैं उनको मिला तो देखा एक घर में दोनों रहते हैं और दोनों की बातचीत कभी नहीं हुई, तीस साल से । आपस में, बातचीत कभी नहीं हुई, शरीर के स्पर्श की कौन कहे, और रहते हैं एक घर में। वह खाना बनाती है, वो रुपया लाकर मेज पर रख देते हैं, और इधर मुँह किये रहते हैं, ये रुपया रखा है। वह थाली लाकर रख दे, ये खाना रखा है। जब मैं उनके घर में ठहरा ये महू छावनी की बात है, इन्दौर के पास एक स्थान है। तो मुझे ये सब नाटक देखकर के लगा कि खैर संसार में होता रहता है, दो चार दिन पहले कभी झगड़ा वगड़ा हुआ होगा। तो फिर हमने कहा भई ये आप लोगों में क्या झगड़ा है ? आपस में बोल चाल नहीं है, कुछ नहीं महाराज जी कोई बात नहीं है। हाँ बात तो कुछ खास नहीं होगी, संसार में होता रहता है, हम भी जानते हैं। लेकिन क्या कुछ सीरियस बात है, खतम करो न उसको। अब बात कोई न बतावे, न बीबी बतावे, न पति बतावे । जब बहुत सीरियस हो गये हम, खाना नहीं खायेंगे बताना पड़ेगा, क्या बात है ? तो मालूम हुआ कि तीस साल पहले से चल रहा है ये काण्ड और किस बात पर ? एक किताब पढ़ रही थी स्त्री। मामूली पढ़ी लिखी थी, कोई किताब, 'नारी आदर्श' ऐसा कोई नाम उस जमाने में कोई किताब निकली थी कि स्त्रियों को आज़ादी दी जाय, पुरुषों के बराबर अधिकार दिया जाय। उस जमाने में पहले हल चल मची थी। गाँधी जी के ज़माने की बात है। तो पति ने कहा ये किताब कहाँ से लाईं तुम ? उसने कहा कि हमारी सहेली ने दिया है। उसने कहा ये गन्दी किताब नहीं पढ़ते। उसने कहा गन्दी क्या है? ठीक तो लिखा है इसमें सब कुछ। पति ने पढ़ रखा था उस किताब को, वह विरोधी था। उसने कहा नहीं नहीं ये किताब यहाँ एक दिन भी नहीं रहेगी। उसने कहा रहेगी। उसने कहा कि किसी भी स्त्री का, पति के बिना काम एक दिन नहीं चल सकता। स्त्री ने कहा, पति का काम भी एक दिन नहीं चल सकता स्त्री के बिना। बस एबाउट टर्न दोनों हो गये। अब भला बताओ, पूछो कोई बात भी है। इसमें कोई सीरियस बात है, कोई करैक्टर की बात है कि कोई गाली गलौज की बात है कि कोई काम न करने की बात है, कोई रीजन नहीं और दोनों पार्टी अकड़ गईं और लगातार चलता रहा नाटक तीस साल तक, खैर। मैंने खतम करवाया तीस साल बाद। साल बाद। अरे बारह साल का झगड़ा तो मैंने समाप्त कराया है यहीं पर बैठे हैं महाशय जी एक। (हँसी) मिठाई बाँटी गई झगड़ा खतम हुआ जब उनका। वह भी कहते थे अपनी लड़की का नाम लेकर के गुड्डी की मम्मी को दे दो। ऐसे बोला करते थे। निरर्थक यहाँ भी कोई पॉइन्ट नहीं था कि हाँ कोई पति दुश्चरित्र है या स्त्री दुश्चरित्रा है ऐसी कोई बात सीरियस नहीं थी बस खोपड़ी की बीमारी है- जैसा चिन्तन बना ले मनुष्य वैसा हो जाता है

Source: Kamana aur upasana 1 - 122

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