कर्तव्य का भ्रम: परिवारिक स्वार्थ रूपी रिश्तों की परख

कर्तव्य का भ्रम: परिवारिक स्वार्थ रूपी रिश्तों की परख

मैं इंग्लैण्ड में एक के घर में गया माँ के घर में, तो उसका लड़का उसी के बगल में रहता था, अलग होकर के। अपना लव वव करके एक लड़की के साथ। माँ ने उससे कहा कि महाराज जी आये हैं हमारे यहाँ, जगदगुरु इण्डिया से। आओ। हम तो कभी नहीं गये माँ के पास चार साल हो गये, छः साल हो गये, मैं नहीं जाऊँगा। अरे तुझको मैंने पैदा किया है रे, पढ़ाया लिखाया है। अरे हो गया, वो तुम्हारी ड्यूटी थी, किया है। तुमको भी तो तुम्हारे बाप ने पढ़ाया लिखाया है, पैदा किया है। तुमने हमको कर दिया, सब बराबर हो गया। ये हाल है हमारे संसार का।

Source: Main kaun mera kaun 1 - 361

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