हलवे की सनक: शक्तिशाली मन का व्यवहार पर प्रभाव

हलवे की सनक: शक्तिशाली मन का व्यवहार पर प्रभाव

एक बार १५ अगस्त को हम दिल्ली में थे, एक बहुत बड़े आइ.सी.एस. ऑफिसर के घर पर। तो वहाँ ऐसे ही पिकनिक हो रही थी कि आज छुट्टी है कोई कुछ बोले, कोई कुछ बोले कोई कुछ। हा हा, ही ही, हू हू हो रहा था। तो उनमें से एक ने कहा कि अरे यार हलवा खाना चाहिये। अरे साहब बड़े आदमी। उन्होंने कहा कि ड्राइवर से कहो हलवा लावे। उसी में एक ने कहा कि अरे साहब बारह बज गये हैं हलवा कहाँ मिलेगा ? तो उन्होंने कहा कि एक दुकान है, वहाँ नई दिल्ली में, उसके यहाँ मिल जाता है। तो बेचारा ड्राइवर गाड़ी लेकर गया, १५ किलोमीटर और वहाँ से हलवा ले आया तो सब लोग खाये । तो जो सनक आ गई। उसको हम लोग सनक कहते हैं। सनक माने मनमानी । हम तो साहब किसी के आगे सिर नहीं झुकाते। अपने मन से काम करते हैं। मन के गुलाम हैं और अगर कोई गुलामी नहीं भी करना चाहता, तो वो इतना बलवान है कि करवा लेता है। नहीं करेंगे, नहीं करेंगे, अरे अब कर लो। नहीं जी। नहीं अब कर लो। हार गया। हार जाता है आदमी।

Source: Main kaun mera kaun 4 - 1137

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