कानपुर में एक वाइसचान्सलर थे, उनकी बीबी हमारे सत्संग में रहती थी, दिन-दिन भर पड़ी रहे। लोग उसको मेन्टल भी कहते थे और वो लिखती रहती थी बैठे-बैठे। तो कई दिन जब देखा मैंने कि ये सुनती नहीं कुछ लिखती रहती है। हम मजाक की बात कर रहे हैं, तो भी लिख रही है। तो हमने पूछा कि तू क्या लिखती रहती है? ये भी लिख लिया। हमने कहा कॉपी ला। ये भी लिख लिया ? कहने लगी महाराज जी ! महापुरुषों की हर बात लिखी जाती है, फिर उस पर रिसर्च होती है। इस महापुरुष ने क्या कहा, किधर देखा, कैसे बैठा, ये सब बातें नोट करके, इसमें बहुत बड़े भविष्य के लाभ निहित हैं। इसलिये मैं नोट करती हूँ। तो हम लोग स्वार्थी हैं। भगवान् ऐसा रिश्तेदार है, वो केवल हमारा हितैषी है, ये बात अगर हम मान लेते, तो फिर ये 'मैं' कौन ? 'मेरा' कौन ? का प्रश्न हल हो जाता। सुना, थिअरिटिकल माना लेकिन अगर कोई थिअरि में पूरी नॉलिज कर भी ले और प्रैक्टीकल न करे, तो व्यर्थ है वो नॉलिज । अजी हम बता दें कि कैसे बनता है रसगुल्ला, हम बता दें कि रोटी, दाल, चावल कैसे बनती है? तो सामान तो रखा है, तुम चार दिन से भूखे क्यों बैठे हो, बनाकर खाओ न। अरे अब कौन बनावे। सो जायेंगे।