वहाँ कोई बात आई लड़कों ने चिड़ाया हमको - "१०० पढ़ा १ प्रतापगढ़ा" लेकिन हमको कुछ पता नहीं था कहाँ पथर है चटान है कहाँ पानी गहरा है हम कुछ जानते नहीं थे और अंग्रेज को मालूम था किधर कूदना चाहिए, हम कूद गए और जहाँ कूदे वहाँ पानी के नीचे चटान थी १ बड़ी, तो पानी के अंदर जब गिरे और अंदर गए तो ये हिस्सा जो है ये निशान बना है ये उस पर जाकर के खट लगा और चमड़ा निकल गया,लेकिन हम रुआब में, उन सब को पता नहीं चला, और हम पानी से निकल कर के चले पहाड़ पर, ५०० फुट चढ़ना है चढ़ते जा रहे हैं ठाठ से बड़े रुआब से, तो एक जगह छोटा सा पेड़ पकड़ा, चढ़ाई जरा सी थी तो पेड़ पकड़ना पड़ा, तब वो देखा खून बह रहा था, अरे ये क्या हुआ अब तो चक्कर आ गया, जब तक खून नहीं देखा रुआब से चले जा रहे थे कुछ देर बैठ गए वहाँ, अब वहाँ करते क्या चढ़ के किसी प्रकार गए ऊपर, अब फीलिंग हो गई ना चोट की। वो अंग्रेज लोग जो ऊपर थे उनके कार वार थी, हम लोग तो साइकिल से गये थे, उसकी कार में बिठा के ले गए वो हॉस्पिटल, वहाँ मरहम-पट्टी कराया ऐसी बेवक़ूफ़ी करते थे, १५ २० दिन लगा उसके ठीक होने में, वो हुड्डी तक चोट लग गई थी