एक बार गीता प्रेस ने निकाल दिया ऐसा। तमाम लोगों ने १०८ बार पाठ किया और वो कहीं सिर पैर नहीं दिखा राम का। हमारे पास आये उनमें बहुत से लोग। उन्होंने कहा महाराज जी ! हमने तो १०८ की दुगुनी ३६० बार किया। तो हमने कहा कि तुमको किसने कहा है कि राम मिल जायँगे अक्षर पढ़ने से? कहें, ये लिखा है देखो। हमने कहा, कहाँ ? उन्होंने कहा कल्याण में। हमने कहा कल्याण वेद है कि शास्त्र है कि पुराण है क्या है ? ये तो अखबार है, साधारण लोगों का लिखा हुआ। जिसने लिखा है उसी से पूछो। पकड़ो जाकर उसी को कि क्यों हमारा दिमाग खराब किया, हम तो नास्तिक हो गये। हमने कहा कि क्या तुलसीदास जी भूल गये थे, वो ही लिख देते एक चौपाई में कि १०८ बार जो मेरी रामायण का पाठ कर लेगा उसको, राम के दर्शन हो जायँगे। वो तो लिख रहे हैं कि- मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किये जोग जप ज्ञान विरागा ।। जब योग, ज्ञान से वो नहीं मिलने वाले तो पाठ करने से कैसे मिल जायेंगे?