चित्रकूट सम्मेलन में सम्मानजनक शिष्टाचार

चित्रकूट सम्मेलन में सम्मानजनक शिष्टाचार

मैं जब जगदगुरु की उपाधि से पृथक् था, नहीं थी मेरी उपाधि तो मैंने चित्रकूट में एक सम्मेलन कराया तो वहाँ एक मठाधीश जगदगुरु के उत्तराधिकारी आये थे, उनके पास गये, रोज जाते थे, सब मेहमान लोग थे ये, उनसे पूछने के लिये आपको कोई सामान चाहिये, कोई कष्ट तो नहीं है, तो वो भीतर थे तो बाहर १५ मिनट हम बैठे रहे उनकी वेट करते हुये, तो अचानक हमारा पैर ऐसे पैर के ऊपर चला आया होगा, मैंने तो कभी ध्यान दिया नहीं, लाइफ में इन बातों पर। उनके आये शिष्य, उन्होंने कहा कि परमहंस जी ! हमको परमहंस कहते थे लोग उस समय, परमहंस जी ! पैर नीचे करके बैठिये। क्यों ? जगदगुरु जी आ रहे हैं। अब हमारे गुरु जी तो हैं नहीं कि उनके लिये हम पैर नीचे करेंगे जगद्गुरु हैं ठीक है लेकिन वहाँ भी कायदा। बड़े बड़े कड़े नियम है वैधी भक्ति में। लेकिन रागानुगा में बहिरंग नियम कम है

Source: Divyswarth - 130

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