मेरे पैर में एक बड़ा निशान है गहरा। मैं महू छावनी में पढ़ता था तो मैंने कहा- मैं साइकिल चलाना सीखूँगा तो कई और हमारे थे, साथी लड़के उन्होंने कहा- बड़ा आसान है। आप सामने देखना और हैंडल पकड़े रहना और पैडल चलाना, बस हो गया। तो हमने कहा ऐसा है कि पहले तुम लोग धक्का दे देना हमको, कुछ दूर फिर हम चला लेंगे आगे। अब बच्चे तो सब होते ही हैं चंचल। तो कुछ ज्यादा धक्का दे दिया और कुछ ढाल था वहाँ। अब मैं हैंडल सँभालूँ कि पैर चलाऊँ। क्या करूँ ? गिर गये। बहुत बड़ी चोट लगी है यहाँ। तो ये बेवकूफी है न ? धीरे-धीरे अभ्यास करता अगर तो ऐसा न होता, एकदम अपने को एक्सपर्ट मान लिया। इसको कहते हैं ओवर कॉन्फीडेन्स। तो संसार में जैसे हर काम अभ्यास से होता है ऐसे भगवत्विषय में भी अभ्यास से, शांति से काम बनेगा