आम के पेड़ से शिक्षा: अस्थिर आधार का खतरा

आम के पेड़ से शिक्षा: अस्थिर आधार का खतरा

एक बार - मैं बचपन में, कुछ मेरा स्वभाव आवश्यकता से अधिक गड़बड़ था, चंचल। हमारे यहाँ गाँव में आम जब पकना शुरू होता है, उस समय तमाम बच्चे आम के पेड़ पर चढ़ते हैं और गिरते हैं और जब खतम होने वाला होता है आम के पकने का सीजन, उस समय भी बहुत-से लड़के यहाँ गिरते हैं, मरते हैं, फ्रैक्चर होता है। तो एक आम पका हुआ था, बड़ी ऊँची डाल पर, उसको कई पत्थर मारे, उसमें लगा नहीं, वह गिरा नहीं। वो असल में पीला दिख रहा था लेकिन पका नहीं था करेक्ट इसलिये वह चोट खाकर भी नहीं गिरा। मुझको भी गुस्सा आया, 'मैं इसको तोड़ के मानूँगा'। मैं चढ़ गया पेड़ पर और वह बड़ी पतली डाल थी। लेकिन, अब जिद्द तो जिद्द। मैं पतली डाल पर चढ़ता गया, चढ़ता गया। आम हाथ में आया और खुशी हुई और डाल टूट गई। वो डाल टूट के बीच में, दूसरी डाल पर हम आ करके गिरे और वह डाल भी टूट गई। अब दोनों डाल लेकर हम जमीन पर धराशायी हुए। थोड़ी देर चक्कर-फक्कर भी आया होगा लेकिन घा में नहीं बताया, कुछ चोट-वोट तो लगी ही। तो अगर हम ऊपर से गिरे और आधार ही कमजोर है, तो दोनों को ले के हम नीचे गिरेंगे। वह इन्द्र हो, वरुण हो, कुबेर हो, जिसका हमने अवलम्ब लिया है, जब वही बेचारा निराश्रय है तो हमको क्या अवलम्ब देगा ? और फिर सीधी सी बात यह भगवान कहते हैं या तो हम या हमारी फैमिली रहेगी तुम्हारे अन्तःकरण में और या तो हमारे माया वालों को रख लो। यह घपड़-सपड़ नहीं चलेगा।

Source: Narad Bhakti Darshan - 189

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