छूटा हुआ प्रश्न: महत्वपूर्ण चीजों को प्राथमिकता देने की शिक्षा

छूटा हुआ प्रश्न: महत्वपूर्ण चीजों को प्राथमिकता देने की शिक्षा

मैं एक बार, अपना हाल बताऊँ। संस्कृत की परीक्षा दे रहा था मैं, उसमें पेपर में लिखा था कि छः प्रश्न में पाँच आवश्यक हैं। छः प्रश्नों में पाँच प्रश्न करो लेकिन तीसरा अवश्य करो, और हबड़ हबड़ में बड़े अहंकार में हमने उसी को छोड़ दिया बाकी सब कर दिया। यानी पेपर को पढ़ा भी नहीं ढंग से। क्यों? एक बीमारी थी हमको लड़कपन में कि हम सबसे पहले निकलें परीक्षा देकर के। आधा घण्टे में, पौन घण्टे में सब करकराकर बाहर। जब कोई न आवे तो हम खड़े रहें। अरे भाई बड़ी देर लगाया तुमने तो। सब बेवकूफी की बातें हैं लेकिन थीं। कोई बात हो साइकिल चला रहे हैं, कार चला रहे हैं हमसे आगे कोई जाये हमको बर्दाश्त नहीं और कोई न कोई तो रहेगा आगे। बस इसी ऊहापोह में पूरा सफर तय हो। तो जब मैं बाहर आया तो उसके एक घण्टा बाद, डेढ़ घण्टा बाद और हमारे क्लासफैलो निकले तो किसी ने हमसे पूछा वो तीसरे क्वेश्चन के बारे में, इसके बारे में आपने त्रिपाठी जी क्या लिखा है ? हमने कहा उसको तो मैंने किया ही नहीं। बड़े कॉन्फिडेस से हमने कहा। उन्होंने कहा अपना पेपर दिखाइये। हमने पेपर दिखाया तो टिक मार्क उस पर था ही नहीं। तो कहने लगे त्रिपाठी जी आज धोखा खा गये आप। जरा पढ़िये तो ऊपर की लाइन। पढ़ा। बड़ा धक्का लगा। उस धक्के का अनुभव इस समय तो नहीं कर सकते। उस समय क्योंकि जो क्वेश्चन सेन्ट परसेन्ट हमको आ रहा है और वो बेवकूफी से छूट गया और बीस नम्बर का क्वेश्चन । पाँच ही क्वेश्चन तो करने थे। जरा सी लापरवाही करो तो......। इसी प्रकार ये अनंत जन्म हमारे नष्ट हुए हैं। एक चीज जो भगवान का स्मरण है, उसी को हमने छोड़ दिया और बाक़ी सब किये जा रहे हैं

Source: Divyswarth - 111

← Back to Homepage