चित्रकूट का भव्य सम्मेलन: अहंकार की जंजीर, ज्ञान का पथ अवरुद्ध

चित्रकूट का भव्य सम्मेलन: अहंकार की जंजीर, ज्ञान का पथ अवरुद्ध

हम बहुत पहले जब १६ वर्ष के थे तो तब हम लेक्चर नहीं देते थे। पहली बार हमने सम्मेलन कराया चित्रकूट में और सब जगदगुरुओं को और सब बड़े- बड़े फिलॉसफर्स को बुलाया। बहत्तर फिलॉसफर्स बुलाये। बहुत बड़ा सम्मेलन हुआ था, उसमें करीब दो लाख आदमी करीब आये थे। बड़ा प्रचार किया। एक सेठ थे जयपुरिया, कानपुर के अरबपति, वो लाखों रुपया खर्च किये थे। उनके घर में पहले ठहरे थे तो उन्होंने प्रभावित होकर के सब खर्चा किया था। बड़ा प्रचार किया था। पहली बार हम स्वागताध्यक्ष की सीट पर थे कि सब महात्माओं का स्वागत करेंगे। ऐसे सफेद धोती कुर्ता जैसे आप लोग पहनते हैं, ऐसे पहनते थे और ढोल से कीर्तन करा देते थे। तो जो कोई आवे भी पढ़ा लिखा और देखे कि 'हरे राम हरे राम' का कीर्तन हो रहा है। अरे चलो जी, बड़ी तारीफ कर रहे थे इनकी ? क्योंकि हम बोलते थे ही नहीं, लेक्चर देते ही नहीं थे, पब्लिक में। तो वहाँ पर सारे विद्वानों के बीच में, मैंने चार क्वेश्चन रख दिये थे कि आप सब लोग इन प्रश्नों को हल कीजिये। क्योंकि जनता में ये कन्फ्यूजन है कि इसमें क्या सही है ? तो लोग परेशान हो गये। वो ऐसे प्रश्न रखे थे हमने कि खोपड़ा भंजन हो जाय वेदज्ञों का। तो लोगों ने आपस में मीटिंग किया पाँच दिन बाद। सोलह दिन का सम्मेलन था। पाँच दिन बाद विद्वानों ने मीटिंग किया हमसे चोरी चोरी कि ये हम लोगों को परेशान करने के लिये बुलाया है? बताओ ये इतने विरोधाभास हम कैसे हल करेंगे ? अच्छा ऐसा करें कि चैलेन्ज कर दो इनको कि कृपालु स्वयं आकर के इन प्रश्नों का उत्तर दें। तो मैं तो पब्लिक में घूमता था, दौड़ता था, सब इंतजाम करता था और डेली सब महात्माओं के पास जाकर के पूछता था कि आपको कुछ चाहिये क्या ? छोटी-सी तो उमर थी उछल कूद की। तो दूर मैं था खड़ा, जब ये चैलेन्ज हो रहा था। पथिक जी महाराज एक थे, तो उन्होंने चैलेन्ज किया कि हम लोग सब अतिथि विद्वत् वर्ग ये चैलेन्ज करते हैं कि ये सब प्रश्न कृपालु जी महाराज, उस समय हमें परमहंस कहते थे, वो आकर स्वयं हल करें। मैंने कहा कि ये क्या हो गया है इन लोगों को! ये बड़े बड़े नीलमेघाचार्य, बड़े- बड़े विद्वान सब ये आये हैं सारे भारत के। अरे! मैं जल्दी दौड़ता हुआ आया, मंच पर बैठा। मैंने कहा कि अगर सब महात्माओं की आज्ञा है कि मैं ही बोलूँ, तो जनता से मैंने कहा कि आप लोग ये न समझियेगा कि इन प्रश्नों का उत्तर आप लोग, विद्वान लोग नहीं दे सके। वे लोग तो इसलिये हमको उत्तर देने के लिये कहे हैं कि एक ये तो छोटा सा बच्चा ही उत्तर दे देगा इन प्रश्नों का। सब विद्वान बूढ़े-बूढ़े थे वे लोग। तो लेकिन ऐसा है कि मैं कम से कम तीन घण्टे का रोज समय लूँगा, क्योंकि ग्यारह दिन बचे हैं और प्रश्नों का समाधान करना है। तो खैर हमने ग्यारह दिन वहाँ बोला। तो पहली बार हमारा प्रवचन पब्लिक में, इतनी बड़ी पब्लिक में हुआ है। लेकिन उसके पहले कोई १०, ५. १५ लोग आ जाते थे किसी के घर में और वो भी थोड़ी देर बैठें और कहें कि अरे यार कुछ नहीं है, बड़ी तारीफ सुनते थे। तो बहुत से लोग बस इसी के शौकीन हैं कि लेक्चर सुनेंगे बस भगवद् विषय में घुसेंगे, नहीं नहीं। ये क्या सब, जिसको देखो वो रो रहा है। अरे भगवान् तो आनन्द देने वाला है, रोने की जरूरत क्या है ? बड़े बड़े ये भक्ति के आचार्य कहलाने वाले लोग, जीवन में एक बार आँसू नहीं बहाये। छः दर्शनों के आचार्य हैं। तो वो अभागे हैं और वो अपने पाण्डित्य के अहंकार में हैं कि हम सब कुछ जानते हैं। तो ऐसे जीवों का उद्धार तो बड़ा कठिन है

Source: Main kaun mera kaun 5 - 1622

← Back to Homepage