उपासना का स्वरूप
- तत्वज्ञान शरणागति से ही होगा
- संसारी क ख ग घ A B C D के ज्ञान के लिए भी हमे टीचर के शरणागत होना पड़ा, अपनी बुद्धि जरा भी नहीं लगाते, ये क है चुपचाप 'मान' लो, इसको ऐसे लिखते हैं 'मान' लो, इंगलिश में साइलेंट होता है मान लो, तो गुरु शास्त्र वेदों के वाक्यों को माने बिना तत्वज्ञान कैसे होगा
- भगवान में जितना अनुराग उतना संसार से वैराग्य
- आप के पास एक ४ गैलन पानी है १ बर्तन में दुसरे बर्तन में बिलकुल पानी नहीं है, अब आप ४ गैलन पानी में से १ गैलन पानी निकाल करके दूसरे बर्तन में रख देते हैं यदि आप तो १ गैलन इस बर्तन में हो गया और इसमें कितना रहा ? अरे कितना क्या रहा १ गैलन कम हो गया अपने आप कम हो गया गया, क्योंकि वही १ गैलन चला गया इस बर्तन में, भक्ति परिपूर्ण हो गई कम्पलीट सरेंडर तो पूर्ण/सहज वैराग्य और फिर पूर्ण ज्ञान
- आपका मन है उसका अटैचमेंट १६ आने संसार में था यदि आपने ४ आने भगवान में अटैचमेंट कर दिया तो ४ आने अपने आप संसार से माइनस हो गया तो वैराग्य हो गया, अपने आप वैराग्य हुआ और ध्यान दो क्योंकि ४ आना आपने ईश्वर भक्ति की इसलिए गुरु कृपा ईश्वर कृपा ४ आना आपके ऊपर होगी जब ४ आना ईश्वर कृपा गुरु कृपा आप पर हुई तो ४ आना ईश्वरीय ज्ञान भी आपको दे दिया गया वो भी ऑटोमेटिक
- जितना अंतःकरण शुद्ध उतना भगवान गुरु के प्रति खिचाव
- अगर आप लोग क्रोध पढ़े हो लक्ष्मण वगैरह का तो आप लोग ये सोचेंगे अकेले में की लक्ष्मण को इतना गुस्सा और लक्षमण भगवान के पार्षद क्या भगवान ही है जनक सरीके परमहंस राम को जितना देख कर मोहित हुए उतना ही लक्ष्मण को देख कर भी मोहित हुए, महापुरुष को देख कर के भी उतना ही आनंद मिला उनको जितना आनंद राम को देख कर के मिला, ब्रह्म जो सुनो कान खोल कर बहुत पढ़ते रहते हो रामायण ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा उभय रूप धरि की सोइ आवा ये क्या ब्रह्म ही २ रूप धारण करके आया है राम लक्ष्मण का, राम लक्ष्मण को देखा जनक ने तो उसको तो ये कहना चाहिए था न, की ये सिंगल १ राम ब्रह्म है क्या जो खींच रहा है मुझको, न लक्ष्मण को देख कर भी वही खिंचाव हो रहा है जो राम को देख कर के हो रहा है महापुरुष और भगवान में १ परमाणु का अंतर नहीं होता खिंचाव तो हमारा होगा भगवान के प्रति वही होगा महापुरुष के प्रति उतनी लिमिट में होगा और अगर कम खिंचाव हो रहा है तो हमारे अंतःकरण में गंदगी अधिक है, ज्यादा खिंचाव हो रहा है तो गंदगी कम है
- १ चुंबक पथर होता है उसको रख दो और चारों और सुइयाँ रख दो बराबर डिस्टेंस में, तो जो सुई केवल लोहे की होगी वो फौरन आकर चिपक जाएगी और जिसमें जितनी मिलावट होगी वो उतनी देर में आएगी, जब बहुत ज्यादा मिलावट होगी तो वो हिलेगी भी नहीं, ऐसे ही संत जब संसार में आतें हैं तो जिसके पूर्व जन्म के संस्कार बहुत अच्छे होते हैं पहले भक्ति की है ह्रदय शुद्ध है वो १ दर्शन से चिपक जाते हैं महापुरुष से और जितना अधिक पाप युक्त अंतःकरण होगा उतना ही वो संत और भगवान के पास धीरे धीरे आएगा
- बुद्धि में बैठ जाए हमारा सुख भगवान में है भगवतप्राप्ति हो जाएगी
- १ भिखारी था, १ चपरासी के घर में गया और कहा बाबा खाना खिला दे मैं तुझको पारस दूंगा, पारस, पारस लोहे में छुआ दो तो सोना बन जाए लोहा, भोला भाला चपरासी था उसने कहा कि लो भैया खाना खा लो, ये पारस है अच्छा हम अपने साहब को देंगे हम क्या करेंगे, साहब आये शाम को ऑफिस से चपरासी ने कहा बिखारी आया था और उसने कहा खाना खिला दो तो हम पारस देंगे तो वो हमको ये पारस दे गया है, साहब ने बड़े गुस्से में कहा बेवकूफ गधा अगर उसके पास पारस होता तो भीख मांगता, ठीक भी है उसका लॉजिक गलत नहीं है तो उसने पत्थर को फेंका ऐसे वो सामने जा कर सीटकनी में लगा वो सोने की हो गयी, उसने देखा गौर से की ये पीली कैसे हो गयी, सीटकनी तो लोहे की है फिर उसने उठा लिया पारस को और जगह छुआया वो भी सोना हो गया अरे ये भी हो गया, जिसको सामने खड़ा होने का उसको साहस नहीं था उसको चिपटा लिया भाड़ में जाए सर्विस हमारे पास पारस है भिलाई में दुर्गापुर में इन सब फैक्ट्रियों में लोहे की छुआ देंगे सब सोना ही सोना हो जायेगा, तो देखो जब उसने जाना की ये कॉमन पत्थर है चपरासी दे रहा है तो फेंक दिया गुस्से में और जब जाना की पारस है तो प्यार हो गया अभ्यास नहीं किया प्यार का इमीडिएटली हो गया, ऐसे ही अगर हमारी बुद्धि में गुरु का वाक्य, वेद का वाक्य बैठ जाए बैठ जाए फिर उठे न, ये जीवन नश्वर है इसलिए आत्मा का जो आनंद का लक्ष्य है वो परमात्मा, श्री कृष्ण से ही हल होगा, बस ये डिसीजन हो जाए फिर भगवत प्राप्ति में कुछ देर नहीं
- 'मेरा' सब दे दो भगवतप्राप्ति हो जाएगी
- १ सूफी फ़क़ीर ने कहा की काबा के मानने वाले मुसलमानों जानते हो काबा किसने बनाया और कब बनवाया है अभी कुछ दिन पहले हज़रत ख़लील ने बनवाया है, १० २० हज़ार वर्ष भी नहीं हुए और दिल के काबे को ख़ुद ख़ुदा ने बनाया है उस काबे में जाकर के तुम्हें क्या मिलेगा, ये जो तुम्हारा ख़ुदा है ये तुम्हारे खुदी के मिटने के क्षण को परख रहा है किस क्षण में तुम खुदी को मिटा दो, सरेंडर कर दो, शरणागत हो जाओ, ये अहंकार चला जाए तुम्हारा मैं करता हूँ बस ख़ुदा मिल जाय, गड़बड़ सब कुछ अंदर है अच्छाई भी सब कुछ अंदर है यानी मन ही सब कुछ गड़बड़ कर रहा है और जिस आत्मा में मन रहता है उसी आत्मा का निवास परमात्मा में है, वहीं वो भी रेहता है आनन्दसिन्धु भी
- १ राजा गया ईसा के पास, उसने कहा आपकी ये दैवी संपत्ति जो आपको मिल गयी है ये कैसे मिलेगी क्या करना होगा इसके लिए, जैसे कोई खिलवाड़ है, तो ईसा ने उसकी शकल देखा और कहा देखो बेटा तुम्हारे जो संसारी सम्पत्ति है न ये सब दे दो तो दैवी सम्पत्ति मिल जाए, सारी संसारी सम्पत्ति दे दें ? हाँ सारी देनी पड़ेगी, अगर सारी संपत्ति चाहते हो स्पिरिचुअल तो संसारी सम्पत्ति दे दो, ये तुम्हारे दिमाग में जो भरा हुआ है मेरे पास १ लाख है १ करोड़ है १ अरब है इतना बड़ा राज्य है ये स्त्री है ये पति है ये बेटा है ये बाप है ये कोठी है ये मकान है ये शरीर है जितने अहंकार तुम्हारी खोपड़ी में लगे हुए हैं ये सब दे दो, तुम खाली हो जाओ तुम्हारे पास कुछ न रहे, ऐसे फीलिंग तुमको हो, अगर इसके रहते हुए कर लो तो कोई बात नहीं है लेकिन कर नहीं सकते, सामने समान हो और वो नहीं है ये फील करो ये योगियों का काम है, ये गृहस्थी नहीं कर सकते, उसको तो समान हटाना पड़ेगा तब फील कर सकता है
- भगवान का कृतज्ञ बनो
- जैसे पुत्र वत्सला अम्बा अपने शिशु के कल्याण के लिए सुधार के लिए दंड विधान करती हैं कभी उसको बांध देती हैं कभी झापड़ लगाती है कभी बोलना बंद कर देती हैं कभी खाना बंद कर देती है ये कोप नहीं है ये माँ के प्यार की अतिशयता है उसी प्रकार आपके सखा श्रीकृष्ण ने भी आपके किए हुए गलत कामों के दंड के स्वरुप में इस संसार में आपको अनेक प्रकार के दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से दंड दे रहे हैं जिससे आप सावधान हो जाए और अपने सखा की ओर देखें, अपने सखा का एहसान मानें उसके कृतज्ञ बनें
- मन को कंट्रोल करने की साधना
- कोई बाजीगर जब बंदर को कंट्रोल करता है तो उसका तरीका ये है की पहले सौ फुट के रस्टी में बांध देता है बंदर को वो सौ फुट के आगे जाना चाहता है बंदर तो गले की रस्सी गला दबाती है जब दर्द होने लगता है तो कहता है बेकार है सौ फुट में कूदेंगे अपन तब ५० फुट की रस्सी कर देता है अब वो सौ फुट जाना चाहता है वहाँ तक तो हम कल जा रहे थे आज हमारी इतनी अवधि हो गयी लेकिन फिर जब जाने की चेष्टा करता है तो गले की रस्सी कष्ट देती है तो ५० फुट में उछल कूद करता है यो करते करते जब १ फुट की रस्सी में कर देता है बंदर को तो बंदर आराम से बैठ जाता है कौन फालतू को पड़ा भंजन करे अपन बैठो यही बंदर के सुभाव वाला आपका मन है परम चंचल, जहाँ भी ये जाए वहाँ श्यामसुंदर को खड़ा करो, बस फिर तुम्हारा रूपध्यान भी पक्का हो जाएगा, जहाँ भी जाओ हर जगह ये फीलिंग रहेगी भीतर से श्यामसुंदर हमारे साथ हैं
- भगवद् विमुखता से सारे दुःख मिल रहे हैं
- ठंड लग रही है और हम बरफ के पहाड़ के पास जा रहे हैं जहाँ आग जल रही है वहाँ नहीं जाते, हमने ये नहीं 'समझा' की संसारी दुःख इसलिए मिल रहा है की हम भगवान से दूर हैं विमुख हैं
- जितना माहात्म्य ज्ञान उतनी जल्दी प्यार
- देखो किसी के पास अंगूठी है हीरे की लेकिन १ ग़रीब आदमी है हमने देखा काँच वाँच की होगी रोज़ देखते हैं झाड़ू बाहरी करती है न वो १ अंगूठी पहने रहती है अब किसी जौहरी ने भी देख लिया उसको, उसने कहा ए इधर आना, ये अंगूठी कहाँ ख़रीदी है ? ख़रीदी नहीं बाबू जी झाड़ू लगा रही थी। मिली थी तो हमने हाथ में डाल लिया, क्यों ? तू जानती है ये कितनी कीमती है, कितनी है ? ५० लाख की है, ५० लाख ? वो १ हजार की नौकरी करने वाली, झाड़ू लगाने वाली सड़क पर, ५० लाख का नाम सुन कर ही सन्न रह गई और उसका प्यार उस अंगूठी के प्रति हो गया, फौरन भागी भागी घर गई, अपने पति को बताया इसको बेचना चाहिए और कोठी खरीदेंगे, कार खरीदेंगे, ये लो सातवें आसमान पर पहुँच गई, ऐसे ही अपने इष्टदेव, अपने सेव्य, अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण के बारे में जितना अधिक महत्व उनका 'समझेंगे' उतना अधिक और जल्दी प्यार होगा
- मानसी सेवा सर्वोच्च
- एक, ब्रह्मवैवर्त्य पुराण में कथा है कि ऐसे ही एक महात्मा उपदेश दे रहे थे मानसी सेवा का, तो एक बिचारा भोला भाला बैठा था, सुन रहा था। गरीब था तो उसने कहा कि भई ये बड़ा अच्छा है। मानसी सेवा किया करेंगे अब तो हम, क्योंकि हमारे पास तो खाने-पीने का भी हिसाब नहीं बैठता है और ठाकुरजी को हम श्रृंगार करें उनको ये सब करें, हो नहीं सकता, बाहर देश के सामान से। तो रोज अपना बैठ करके वह अपने ध्यान में ठाकुरजी को नहला रहा है, धुला रहा है सारे तीर्थों का जल लाके, उसमें अनेक प्रकार के इत्र डाल करके और उसका टैम्प्रेचर मौसम के अनुसार बना करके, किस प्रकार से ठाकुरजी को नहला रहा है, सब अपनी भावना से अपना रोज किया करता था। एक दिन उसने उसी भावना से सोने की थाली मँगाई, उसमें हीरे जड़े हुये थे, उसमें कटोरियाँ रखी, उसमें एक-एक सामान रखा मन से ही और रख के थाली हाथ में लिया। श्यामसुन्दर सामने बैठे हैं उनके पास ले जाने के लिए जैसे आगे बढ़ा तो देखा कि थाली गरम है तो उसने सोचा कि लगता है कि थाली में रखा हुआ सामान अधिक गरम है तब तो थाली गरम हो गई तो ये श्यामसुन्दर अगर कहीं पहले रोज की तरह आदत पड़ी रही और एक दम से उन्होंने डाल लिया मुँह में, तो मुँह जल जायगा उनका। मैं इसका शिकार हो चुका हूँ बहुत बार। मुझे विश्वास रहता है कि ये लोग खाना जो लायेंगे समझबूझकर लायेंगे। अभ्यस्त हैं एक आदमी हमेशा बनाता है। कभी-कभी ये लोग भी गरम-गरम दे देते हैं कोई चीज और हम ठाट से उसको रख लेते हैं मुँह में। बाद में मालूम पड़ता है। तो वह मन से चिन्तन कर रहा है उसने अपनी उँगली डाली एक कटोरी में कि कितना गरम है वो खाना, तो उँगली जल गयी उसकी। वैसे ही मन से चिन्तन कर रहा है। उँगली जल गई, जलने के बाद उसने कहा अरे गरम तो है सो है अब उँगली डाल दिया हमने, अब ठाकुरजी को कैसे खिलायेंगे इसको ? अब दूसरा खाना बनायेंगे। इतनें में समाधि खुल गई तो चिन्तन की धारा कट गई। आँख खोल दिया। देखा, उँगली जली हुई है, प्रत्यक्ष जली हुई। फिर नारायण ने लक्ष्मी से कहा, कि तुम्हें एक भक्त दिखावें। उन्होंने कहा, हाँ दिखाइये। तो उसको बुलाया और कहा देखो इसकी उँगली जली हुई है, कैसे जली है जरा पूछो ? मानसी सेवा। सबसे बढ़िया मानसिक रूपध्यान। मानसिक सेवा जैसी इच्छा हो आठों याम करो। कोई परेशानी की बात नहीं और कोई प्रॉब्लम नहीं। कोई सामान बाहर से लाने की आवश्यकता नहीं, तो स्मरण सबसे बड़ा साधन भक्ति का स्वरूप -
- जहाँ अपना स्वार्थ मानते वहाँ अहंकार मिटाते हैं
- कीतना ही बड़ा आदमी हो और १ नौकरानी में उसकी आसक्ति हो जाए तो अपना ओ बड़े होने का अहंकार मिटना पड़ेगा उसको, सरेंडर करना पड़ेगा उसको, करता है प्यास लगी हो, हम चांदी के गिलास में पानी पीते थे सोने के गिलास में पानी पीते थे हम अरब पती थे और ये लाया है कांच के गिलास में, मैं नहीं पिता ये नहीं बोलेगा, प्यास लगी होगी तो गन्दे नाली का भी पानी पी लेगा अगर किसी को ३ ४ दिन पानी न पिलाओ देखो क्या हाल होता है अरे अगर भूख लगी हो तो वो १० दिन की सूखी रोटी सूखे चने घास की रोटियाँ खाई है बड़े बड़े सम्राट पांडव, नल दमयंती बड़े बड़े इतिहास आप लोग ने पढ़े होंगे, सुने होंगे, तो देखो
- सेंट परसेंट शरणागति से ही काम बनेगा
- बिजली घर में आप चले जाएँ और सब तारों का हाल न जाने और १ तार जो नंगा है उसको पकड़ ले तो ०/१०० हो जाएँगे, सेंट परसेंट शरणागति करनी पड़ेगी, थोड़ी मोड़ी नहीं
- बड़ी सी बड़ी मशीन में जो करोड़ो की मशीनें आती है आज के युग में अगर १ तार अपने ज्वाइंट से अलग हो जाए सारी मशीन बंद, अरे भई क्या बात है नई मशीन है ये तो, हाँ है तो नई जी, आया मैकेनिक अरे १ तार निकाल गया था १ तार जोड़ा हाँ चलाओ मशीन, १ तार के कारण १ करोड़ की मशीन निरर्थक हो जाती है फिर आप कहते हैं हम इधर भी रहेंगे उधर भी रहेंगे ये नहीं चलेगा
- वाल्मीक को गुरु ने कहा तुम राम नहीं बोल सकते अच्छा बेटा मरा मरा बोले जाओ जब तक मैं लौट के न आऊँ, उसने पूछा नहीं आप कब लौटके आयेंगे, गुरु आज्ञा हो गयी वो वाल्मीक महापुरुष बन कर निकला, ऐसी भावना होनी चाहिए अगर सच्चा गुरु मिला हो तो उसके वाक्य पर विश्वास और उसकी बताई साधना का सेंट परसेंट पालन और भगवान की भक्ति ये दवा
- डॉक्टर सही हो, डॉक्टर ने कहा २ बूँद दवा १ चम्मच पानी में डाल के ३ बार पी लेना बुखार चला जायेगा, हमने सोचा इतना बड़ा शरीर और २ बूँद दवा ये बेकार की बात है तो पूरी शीशी पी लो एकदम ठीक हो जाओ, अपनी बुद्धी लगाया और क्या हाल होगा आप लोग सोचिए, ऐसा नहीं सदगुरु के आदेश के अनुसार ही साधना करें भगवान से प्यार करें मन से प्यार करें, रो कर पुकारे कोई बुद्धि नहीं लगाने की आवश्यकता
- १ बार १ संत ने १ संत से पूछा अभी ५०० वर्ष की बात है भगवान कैसे मिलेंगे ? उसने कहा अगर संत मिल जाए बस भगवान मिल गए, केहता है संत संत है भगवान भगवान है, उसने कहा कौन कहता है संत संत है भगवान भगवान है, अगर संत मिल गया तो भगवान तो मिल ही गए संत भी मिल गया डबल फायदा हो गया और डबल फल मिल गया और अगर भगवान मिलेंगे तो भगवान तो मिले लेकिन वो इशारा कर देंगे ऐ उधर जाओ, उधर कहाँ जाए जी, इनडायरेक्ट, उधर जाओ डायरेक्ट मुझसे सम्बन्ध तुमसे नहीं हो सकता है गुरु के पास जाओ अगर कोई गुरु से मिल चुका हो उससे पूछा, भई मिल चुका हो का बहुत सा मतलब होता है कितने परसेंट मिला कितने परसेंट शरणागति उसकी हुई उतने परसेंट मिला तो मिलने का मतलब फिजिकल भी होता है मेंटल भी होता है स्प्रिचैल भी होता है जितने परसेंट हम भीतर से उसके आदेश के अंतर्गत चलेंगे उसकी आज्ञा का पालन करेंगे उसके प्रति अपनी फेथ की बुद्धि जमाएंगे उतने ही परिमाण में हम उसके पास गए ये माना जाएगा ऐसे थोड़ी माना जाएगा की हम उसके सामने बैठे रहते है ५ साल से ऐसा नहीं होता, उनकी खोपड़ी पे बैठे रहे बैठने वैठने से क्या होता वो हमारे अंतःकरण का बैठना कितनी मात्रा का है वो बैठ मशीन जब तब बात बने
- हमारे यहाँ की या किसी देश की मिलैट्री जब हार मान लेती है तो सरेंडर करती है, उस समय क्या करती है ? हथियार नीच करके हाँथ ऊपर कर देती है, अरे आपको कोई रिवाल्वर दिखावे तो आप हाँथ ऊपर कर देंगे, तो सरेंडर माने मैं कुछ नहीं करूँगा, अकर्ता, तो बस इतनी सी बात है उस कृपा को पाने में कारण
- नित्य साधना से ही काम बनेगा
- कोई व्यक्ति कुआँ खोदता है पानी निकालने के लिए ५ फुट खोदा पानी नहीं निकला थोड़ा और खोदते हैं ८ फुट तक गए अब कंकड़ की परत मिल गई, कंकड़ ही कंकड़ नीचे, अरे हम तो पानी के लिए खोद रहे हैं यहाँ तो कंकड़ मिला इस जगह पानी नहीं है, चलो उधर खोदे, वहाँ भी खोद १० फुट तो पत्थर की चट्टान मिली, उसने कहा अरे यहाँ तो ओर खतरा है, ये आप १०० जगह जो कुआँ खोद रहे हैं ये क्यों ? आप निराशावादी हैं, १ ही जगह खोदते जाइए, पत्थर की चट्टान को काटिए, अगर कंकर की पर्त मिल गई है उसको तोड़िए, बस नीचे पानी मिलने वाला है उसी समय आप चूक गए और जगह खोदने लगे, हमें पूर्ण विश्वास होना चाहिए ये वस्तु अवश्य मिलेगी निराशा नहीं लानी चाहिए
- जैसे २ लकड़ी घिसी जाती है बाँस २ घिसे जाते हैं अरणी २ घिसी जाती है तो घिसते घिसते घिसते १० मिनट हो गए आग नई प्रकट हुई २० मिनट हो गए आग नई प्रकट हुई, नई नई आग प्रगट हो रही है आग बन रही है घबराओ मत तुमको दिख नई पड़ रही ओ घिसते जाओ घिसते जाओ ये निकली ये जो नकली २ घंटे बाद ४ घंटे बाद इस आग के पहले भी उसे टेम्परेचर बढ़ रहा था आपके अनुभव में नहीं आ रहा था, अब अगर हम धीरे-धीरे करेंगे तो धीरे-धीरे पहुँचेगे, गड़बड़ बहुत होगी इसलिये तेज स्पीड में चलना चाहिये। प्रतिक्षण सावधान रहना चाहिये, तो अभ्यास करते जाओ निराश न हो निराशा सबसे बड़ा बाधक तत्व है सबसे बड़ा निराशा होते समय १ बात येह भी तो सोचो की चलो ठीक है उसको रसगुल्ला मिलता है तुमको रोटी मिलती है लेकिन अगर तुमने रोटी भी छोड़ दिया तो क्या खाओगे
- देखो मांस, हड्डी और मेदे का ये शरीर है आपका इसको कितना ढक के रखते हैं ठीक ठीक। कोई अंग कोई देख न ले। जबकि सबको मालूम है सारे अंग गन्दे हैं फिर भी इतना हम होशियार रहते हैं हर समय वो टाई ठीक कर रहे हैं वो साड़ी ठीक कर रही है दिन भर। ये शरीर के लिये तो इतने सावधान हो और आत्मा के लिए कहते हो भूल जाता है, भूल जाता है। ये भुलाया जाता है भूल नहीं जाता। अगर केयर हो, परवाह हो तो कैसे भूलेगा अन्तःकरण तो हमारा दास है, मन गुलाम है बुद्धि का, अगर बुद्धि गुरु की बुद्धि में जोड़े रहो उस बुद्धि से गवर्न करो मन को। तो मन तो बुद्धि के अण्डर में सदा रहेगा उसके विपरीत एक क्षण को नहीं जा सकता। अभ्यास करना होगा।साधना बीच में छोड़ो मत चलते जाओ
- १ बार गिरेगा २ बार गिरेगा बच्चा जब चलना सिखता है तो कितने बार गिरता है अबोध है कोई समझाने वाला नहीं की चलना ज़रूरी है लेकिन माँ बाप निराश नहीं होते अरे गिरा है अभी सिख रहा है आ जाएगा घबराओ मत
- क ख ग सिखने गए तो क्या हाल था आपका, अपना नाम लिखने में कितने दिन लग गए, १ अक्षर के ज्ञान में कितनी मुस्किल पड़ी तो ईश्वरीय सब्जेक्ट में क्यों निराश हो, लगे रहेंगे हम
- भगवान की भूख/श्रद्धा नहीं इसलिए मक्कारी
- रसगुल्ला कहाँ से लाए हो ? दुकान से, कौन सी दुकान से लाए हो उस दुकान से, अरे उसके यहाँ तो शीशे विशे नहीं लगे हैं बहार रहता है मक्खियां बैठी है, नहीं नहीं वहाँ शीशे लगे हैं, हाँ नहीं कलकत्ते का रसगुल्ला अच्छा होता है, कलकत्ते से लाए हैं, कलकत्ते से कौन सी कंपनी से लाए हो अरे दीदी क्यों आप छान बीन कर रहे है क्योंकि भूख नहीं है, भूख नहीं है इसलिए इतना बड़ा लम्बा लेक्चर दे रहे है अगर भूख लगी होती तो फिर वो चाहे उसमें चीनी भी न होती केवल गुल्ला होता रस माइनस तो भी हम लोग बड़े आराम से खा लेतें, हँ, ये जितनी बातें हम लोग करते हैं उधार की या बेगारी की या मक्कारी की, भूख नहीं सीधी सी बात इसलिए ये सब बातें ऐणी बैणी बोलता है
- अगर किसी का पेट भरा होता है और वो मांगता है मैं भूखा हूँ तो उसकी आवाज और तरह की होती है और जब सचमुच भूखा होता है और मांगता है तो वो आवाज और तरह की होती है जब हमको विश्वास नहीं होता भगवान पर तो हम लोग बोलते हैं मंदिर में, 'तमेव माता च पिता तमेव' क्या मतलब ? कुश्ती लड़ रहे हो भगवान के आगे, ऐसे मांगा जाता है इसलिए ऐसा मांगते हैं की विश्वास है की वो देंगे तो है नहीं चलो बोल दो खाली, भगवान के यहाँ मांगा और मिला लेकिन मांगने के लिए हृदय निर्मल होना चाहिए ठीक ठीक मांगो
- भगवान चिंतन से ही मिल जाते हैं
- आज हमको रसगुल्ला खाना है, सोचा तो ? तो तो पैसा चाहिए, पैसा है ? नई है, तो ? तो पड़ोसी से मांग ले हँ, तो ? तो पडोसी के घर चले, तो ? तो चले, तो ? माँगा, तो ? बाजार गए, तो ? दुकानदार से कहा, तो ? उसने तौल कर दिया, तो ? खाया, अब काम पूरा हुआ रसगुल्ले का, इतना 'तो' लगा तब काम बना और श्याम सुंदर से मिलने के लिए कुछ नहीं करना सोचा मिल गए, आगे १ भी सोपान नहीं, १ भी सीढ़ी नहीं है इसके आगे ये पहला और अंतिम जंक्शन है सोचा और मिल गए
- आनंद पाने का तरीका
- देखो संसारी बुद्धि से सोचो किसी के पास कोई सामान हो और आप उससे चाहते हो उससे लेना तो २ उपाय है, १ तो ये की उसके हाथ पैर बांध के रिवाल्वर दिखाओ बोलो कहाँ है चाबी अलमारी की दे नहीं तो गोली मार देंगे, सोचता है मर जाऊँगा इससे अच्छा दे ही दो फिर कमा लूँगा, देखो छीन लिया डकैती से और १ तरीका ये होता है की उसके आगे रोओ गिड़गिड़ाओ अगर उसमें मानवता है दया है कुछ अंश में भी तो पिघल जाएगा तो वो दे देगा सामान, भगवान के बराबर ही कोई नहीं , कोई पॉवर ही नहीं है उसके अलावा, वो अपने पॉवर हाउस के स्विच को ऑफ कर दे सब ०/१०० हो जायें जैसे महाप्रलय में होता है, तो उसको परास्त करके और उसको भय दिखा के आप उसका आनंद छीन लें ये तो पॉसिबल नहीं, बाद दूसरा मार्ग है माँगना, जैसे संसार में आप डेली माँगते हैं, आप तो ऐसे भिखारी हैं जिसका कोई हिसाब नहीं रिकॉर्ड है, १ इच्छा पैदा हुई बस भिखारी बन गए, मम्मी डैडी बीवी पति बेटे सबके आगे भीख माँग रहे हैं आप, अगर कामना न बने तब तो आप अकड़ सकते थे लेकिन अनंत इच्छाओं के आगर हो तुम
- स्मरण प्राण के समान
- आपके शरीर में जब तक प्राण हैं तो न कोई गीध आपके ऊपर मंडराता है न कोई कौआ मंडराता है न कोई कुत्ता आता है आपके शरीर को खाने के लिए, आप कहीं भी जा रहे हैं आराम से ठीक है और जब ये प्राण निकल जाए तो आपकी लाश चाहे जहाँ सड़क पर पड़ी हो बिना बुलाए गीध आ जाएँगे, कौओं आ जाएँगे, उनको मालूम पड़ जाता है इसमें प्राण नहीं हैं, तो जैसे ये प्राण गया तो शरीर शव हो गया ऐसे ही स्मरण भगवान का अगर छोड़ दिया तो फिर हज़ारों भक्ति किए जाओ
- उपासना में तल्लीनता
- १ बार अकबर सी आई डी के भेष में कुछ इन्क्वायरी के लिए बाहर निकले और नमाज का समय हो गया, तो जा-ए-नमाज बिछा करके, १ चद्दर होती है नमाज की, नमाज पढ़ने लगे, १ कोई स्त्री थी उसका कोई लवर था वो बाहर से आ रहा था, स्टेशन पर आने वाला था तो स्त्री भागी दौड़ी चली जा रही थी उसको देखने के लिए, स्पर्श के लिए, प्यार के लिए और बेहोश हो गई उसको ये याद नहीं रहा की ये नमाज की चद्दर को इतना पवित्र मानते हैं मोहमदन लोग की खुदा का १ प्रकार से प्रतिनिधि मानते है उसको, उसके ऊपर पैर रखती भागती चली जा रही है वो स्त्री, अकबर बादशाह ने देखा क्रोध में लाल, अरे बाद साहब को छोड़ कोई गधा भी हो और ऐसी पवित्र वस्तु के ऊपर कोई औरत पैर रखते हुए चली जाए तो बुरा सभी को लगेगा, अकबर बादशाह ने बीरबल से कहा इसको फौरन पेश किया जाए दरबार में और सोचा जाए की मौत से बड़ी सदा कौन होती है जो उसको दी जाए, क्योंकि मौत की सजा तो साधारण गुनहगारों को भी दी जाती है इसने तो आज ऐसा गुनाह किया है जैसा आज तक किसी ने नहीं किया और निरर्थक किया है इतनी बड़ी पृथ्वी पड़ी है छोटी सी चद्दर के ऊपर पैर रख के भागना है ये तो जान बुझ कर इसने किया है नमाज़ वमाज छोड़कर के क्रोध में अकबर बादशाह महल में गए, वो स्त्री स्टेशन से पकड़कर बुलाई गई, सामने हाजिर की गयी, बादशाह ने पूछा तुमने ऐसी हरकत कैसी की ? हुज़ूर आप तो बादशाह हैं लेकिन ऐसी हरकत तो कोई आदमी साधारण जा-ए-नमाज पर पैर रखकर चलने की भी नहीं करेगा, साधारण मुसलमान के लिए भी, लेकिन मैंने किया आप कह रहे हैं, मैं कह रहा हूँ झूठ क्या रहा हूँ क्या ? सरकार में झूठ नहीं कह रही लेकिन मैं जानती हूँ आप मुझे मौत की सजा देंगे क्योंकि इससे बड़ी सजा कोई होती नहीं, मैं डरती नहीं मौत से आप भी कान खोल कर सुन लीजिये, मरने के पहले १ बात कहना चाहती हूँ, क्या बात ? मैंने १ संसारी आदमी से प्यार किया और उस प्यार में मैं तल्लीन हो गयी की मुझे अपनी मौत की फिक्र न रही और अपनी मौत पर पैर रख कर के मैं भागी, वरना तो मेरा दिमाग खराब नहीं था, संसार में कोई आदमी चाहता है मरना अनावश्यक ? कोई मुसीबत नहीं, मैं संसारी प्रियतम के लिए संसारी प्रियतम में मन को लीन करके समाधि की अवस्था में भागी लेकिन अफसोस है कि शहनशाह अपने परम प्रियतम खुदा की इबादत करते समय उस तल्लीनता में क्यों नहीं रहे ? उसको कैसे होश रहा है कोई स्त्री जा-ए-नमाज को रौंदती हुई जा रही है, जवाब दे बादशाह, क्या कर लेगा हमारा कोई जब हम मरने को तैयार है तो, हमको पता है फाँसी होगी हो जाए, संसार सुन ले कान खोलकर इस बादशाह को ये होश नहीं है की हमारा भी शहनशाह है खुदा उसकी इबादत करने बैठा है, क्यों नहीं खुदा में तल्लीन हुआ, बादशाह के आँखों से आँसू आ गए, चरणों में गिर पड़ा, ठीक है देवी तुम ठीक कहती हो मुझे लीन होना चाहिए था
- पहले साधना फिर अनुभव
- आप लोग अनेक प्रकार की मशीनों का इस्तमाल करते हैं ये रेडियो है इसमें तमाम देश के लोग जो बोलते हैं न वो आवाज आती है, ये टेपरिकार्डर है, आप जो कुछ बोलेंगे उसमें टेप हो जाएगा, हम नहीं समझते इसका साइंस, तुरंत मान लेते हैं अब आप इसका पूरा ज्ञान चाहते हैं तो ठीक है अभ्यास कीजिए वो समय आएगा वो नॉलेज आपको हो सकती है, पहले ही आप नॉलेज कर लेना चाहें ये तो असंभव, पहले साधना यानी प्रैक्टिस फिर उसके बाद एक्सपीरियंस होगा तब उसको पूर्ण ज्ञान कहेंगे लेकिन पहले तो थ्योरी ही मानना होगा वरना प्रैक्टिस का प्रारंभ कैसे होगा
- बिना साधना के ज्ञान अहंकार बढ़ाता है
- मधुसूदन सरस्वती चारों वेदों के विद्वान थे लेकिन उनको शौंक था कि किसी भी जगह जहाँ सुने बड़ा विद्वान है लड़ गए उससे और उसको हरा कर के तब माने, तो काशी में १ भक्त के पास पहुँचे वो ज्ञानी भी था उन्होंने कहा ये तुम क्या करते हो ये तुम्हारा ब्रह्मज्ञान है किसी को दुख पहुँचाते हो ये तो सबसे बड़ा पाप है कि १ विद्वान को परास्त कर दिया शास्त्रार्थ कर के और अपना अहंकार अलग बढ़ गया जाओ भक्ति करो तो अहंकार टूटेगा जो माया का सबसे बड़ा बलवान सेनापति है, वहीं पर होश आया मधुसूदन सरस्वती को और फिर श्रीकृष्ण भक्ति की वृंदावन में जाकर
- गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं
- जितना गैस अंदर रहेगी जल्दी खाना पकेगी कुकर में और लोक रंजन का लक्ष्य हो गया या प्रतिष्ठा पाने का लक्ष्य हो गया नष्ट हो गया वो
- १ सेठ जी थे वे कभी भगवान का नाम नहीं लेते थे सेठनी जी बहुत परेशान थी बहुत समझाया करती थी पंडितों को बुलाया करती थी इनको समझाओ, किसी प्रकार वो तैयार नहीं हुए, १ दिन सपने में सोते समय करवट लेते समय उन्होंने राम कह दिया और बीवी बगल में सो रही थी, सुन लिया उसने वो बहुत खुश हुई, सबेरे उठकर उसने तमाम ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दिया और हलुआ पूड़ी खीर बनने लगी, सेठ जी ने कहा आज क्या बात है भई न एकादशी है न जन्माष्टमी है न रामनवमी है ये काहे का फंक्शन हो रहा है बीवी से पूछा, उसने कहा आज तो सबसे बड़ा त्योहार है, क्या बहुत डाँटने पर बताया की तुमने आज सोते समय राम कहा, आँ आज राम मेरे ह्रदय मुख द्वारा बाहर निकल गए तत्काल शरीर छोड़ दिया उसने, इतना बड़ा संत था, अब उसकी उपासना का यही तरीका था की 'राम' शब्द को बाहर मत फेंको भीतर ही भीतर लो, भीतर ही भीतर प्यार करो, उपासना के बड़े अड़बंगे अड़बंगे ढंग होते हैं
- सोचो अनंत मात्रा का आनंद वहाँ क्या होता होगा
- किसी का बच्चा खो गया है और २ ३ दिन बाद अचानक वो मिले तो उस माँ को बच्चे के चिपटाने में कितना सुख मिलता है, सब इंद्रिय मन बुद्धि की गति बंद हो जाएगी ये मटेरियल कूड़ा कबाड़ा आनंद में ये हाल है तो सोचो स्पिरिचुअल हैप्पीनेस जो होता है दिव्यानन्द अनलिमिटेड अनंत मात्रा का वहाँ क्या होता होगा
- दुर्भावना सारे साधना को व्यर्थ कर देती है
- जैसे १ हाथी नदी में नहाकर के बाहर निकला और धूल अपने ऊपर डालता हुआ, बड़ा विनोद मनता है बहुत बड़ी कमाई किया और चौरसते पर उसको रखकर के और घर आकर सो गया, अरे वो मैं चौरसते पर रख आया था जाकर लाता हूँ, अरे अब क्या लाओगे, वहाँ हजारों आदमी आते जाते ले गए, अगर गुरु के प्रति दुर्भावना हुई तो तुम्हारा सब साधन व्यर्थ क्योंकि नामापराध हो जाता है
- दूसरे में दोष देखना स्वयं सदोष का प्रमाण
- गौरांग महाप्रभु के सत्संग में १ व्यक्ति बड़े कठोर हृदय का था उसको आँसू न वे और महाप्रभु जी रोज जोर दे इस पर, आंसू बहाओ बिना आंसू के तुम्हारा संकृतन संकृतन नहीं है अहंकार छोड़ो किस बात का अहंकार लिये घूम रहे हो क्या है तुम्हारे पास न शरीर ढंग का है न मन है न बुद्धि है न कोई अनन्तकोटि ब्रह्मांड की प्रॉपर्टी है, है क्या तुम्हारे पास इतना बड़ा अहंकार लिए हो की अपने शरण्य के सामने भी क्षमा तक नहीं मांग सकते, आँसू नहीं बहा सकते, तो वो बेचारा बहुत परेशान हुआ और फिर भी आंसू न आये, तो उसने मिर्ची लिया और मिर्ची को १ कपड़े में बाँधा उसकी पोटली बनाया मिर्ची की, लाल मिर्ची की और बना के सत्संग जब शुरू हो जाए तो जा के वहाँ बैठ जाए सब से पीछे और पोटली को हाथ में ले ले और यों करके धीरे से आँख में छुआ दे उसको की जब मिर्ची लगेगी तो पानी निकलेगा आँख से, तो ये किसी ने देख लिया कि ये क्या हाथ में लिए रहता है और क्या करता है, तो किसी ने पकड़ा और महाप्रभु जी के सामने ले गया उसको, देखिये महाराज ये पाखंड करता है, महाप्रभु जी ने कहा तुम ऐसा क्यों करते हो ? किसलिए करते हो ? तो उसने कहा महाराज जी कया करे हम तो तंग आ है इस मन से, बहुत धिक्कारतें हैं इसको, बहुत फील करते है फिर भी आंसू नहीं आते और आँसू आना कम्पल्सरी है आप कहते हैं इसलिए मिर्ची की पोटली मैं लगा लेता हूँ महाप्रभु जी ने चिपटा लिया और शिकायत करने वाले को डाँटा, की क्यूँ जी तुम यहाँ यही देखने आते हो कौन आँख में मिर्ची लगता है कौन खोपड़ा लगता है अरे तुमको साधना करने के लिए तुम आते हो, तुमको साधना करना चाहिए, तुमको दूसरे से क्या मतलब है ? और इसने तो तत्व को जान लिया, जिसने तत्व को जान लिया उसने ५०% मंजिल तय कर ली, ये तत्व 'बिन रोये किन पाइयाँ प्रेम पियारो मीत' रोना कंपलसरी है निष्काम भाव से ये बात इसने समझ ली है और तुम जो लोगो में दोष देखते हो ये तो इतना बड़ा दोष है दूसरे में दोष देखना कि इससे बड़ा कोई दोष हो ही नहीं सकता, जिसने दूसरे में दोष देखने की आदत डाली वो अपने में दोष कभी नहीं देखेगा और जो अपने में दोष नहीं देखेगा तो दोष के निकालने की दवा क्यों करेगा
- ईश्वर भक्ति से असली वैराग्य होता है बहिरंग त्याग से नहीं
- जैसे आज कल हमारे देश में धूर्त लोग ठगा करते है हम लोगों को वैराग्य की एक्टिंग कर कर के और भीतर गड़बड़ है, आप लाए नोट, फाड़ के दाल दिया धूनी के बाबा जी ने, अरे मैंने नोट दिया उसको फाड़ करके डाल दिया धूनी में सुनो भाइयों बहनों सुनो ऐसे बाबा जी आए हैं, अब वो भाई बहन जो बेवकूफ थे वो भाग पड़े बाबा जी के पीछे, अरे ऐसे बाबा जी आते हैं की साहब वो तो नोटों की गड्डी की गड्डी डाली दे रहे हैं धूनी में, किसी १ आदमी का १० २० रुपए का नोट बाबा जी ने प्रचार के लिए धूनी में डाल दिया, अब उसने जाके जो प्रचार किया तो १ से १ बात बढ़ती जाती है संसार में, अरे साहब गड्डी की गड्डी लाखों रूपया डाल दिया उन्होने धूनी में ये हल्ला मचा, अब भागे आ रहे हैं ऐसे बाबा जी हैं ऐसे बाबा जी और जब ऐसे तमाम लोग आ गए तो बाबा जी ने लाखों रूपया कमा लिया और उसके बाद अपना सूट पेहन करके रात को चले गए बहार, हँ, वैराग्य वो वैराग्य थोड़ी था कोई, वो वैराग्य का अभिनय था, यदि ईश्वर भक्ति नहीं होगी वो ठोस चीज है अरे वैराग्य मन को ही तो करना है
- जैसे गुब्बारा रखा है तो लगता है की बड़ी हैवी चीज है जरा सी हवा आई वो उड़ के चला गया आकाश में, ऐसे ही अगर आप अगर ईश्वर भक्ति नहीं करते तो फिर आपका ज्ञान और वैराग्य दोनों उस गुब्बारा की तरह होगा, मन में यदि ईश्वर के प्रति प्रेम न होगा तो संसार से वैराग्य होगा कैसे ? वो वैराग्य थोथा है बकवास है
- भक्ति से मुक्ति तो हो ही जाएगी उसको क्यों माँगना
- १ रोचक कथा आप लोग हजार बार सुने हैं सत्यवान सावित्री का, यमराज से सावित्री ने कहा मेरे पति को आप मत ले जाइए मैं भी साथ चलूंगी, यमराज ने कहा स्पिरिचुअल लॉ चेंज नहीं हो सकता तुम्हारे लिए तुमको हम नहीं ले जाऐंगे तुम्हारे पति को ले जाऐंगे, पति को छोड़कर तुम्हें जो कुछ मांगना हो मांग लो, स्वराज्य साम्राज्य वैराज्य सब देने को तैयार है तो सावित्री बड़ी चतुर थी उसने कहा की आप देंगे वचन दे रहे हैं बिल्कुल पक्का, यमराज कोई संसारी पावर वाला नहीं है स्पिरिचुअल पॉवर वाला है अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड के जितने यमराज है ये सब भगवान के सर्वेंट है यमो यमयतांहम तो सावित्री ने कहा तो फिर ठीक है मेरे सौ बच्चे हो १०० लड़के हो लड़के, उसने कहा जाओ दिया लौट जाओ, यमराज तुमको इतनी अकल नहीं है की १०० लड़के कैसे होंगे बिना पति के, अगर १ वर्ष में भी १ लड़का होगा तो भी १०० वर्ष की आयु तो पक्की रजिस्टरड हो ही गयी तो उसी प्रकार अगर किसी को श्रीकृष्ण की भक्ति मिल गयी तो फिर मुक्ति तो अपने आप हो गई उसको मांगने की क्या आवश्यकता
- कोई कहे हम स्वस्थ हो गए इसका मतलब बीमारी चली गई, हम विद्वान हो गए इसका मतलब मूर्खता चली गई, हम धनवान हो गए इसका मतलब गरीबी चली गई, उसको कहने की जरूरुत क्या है ? आनंद मिल गया तो दुःख गया, अपने आप बिना कहे मोक्ष मिलता है
- भगवान की अनन्य भक्ति से ही काम बनेगा
- संसारी स्त्री विवाह करती है संसारी स्त्री ये गंदे शरीर को, जिस लड़के से शादी करती है उससे कहती है ऐ अब और तरफ़ देखे तो ख़ैरियत नहीं और पति कहता है ऐ अगर और किसी की ओर देखा तो याद रखना तलाक दे दूँगा, संसार में ये नियम है पतिव्रत बनो स्त्रीव्रत बनो ऐसे ही भगवत् व्रत बनाना गुरुव्रत बनाना, केवल वहीं अन्यत्र कहीं मन न जाए
- हमारे ब्रज की १ कथा है की १ स्वामी जी ८४ कोस की परिक्रमा करवा रहे थे वहाँ बहुत से बाबा करवाते हैं साल में २ ४ बार वो होता है महात्माओं का, उनके चेले सब चलते हैं साथ में और पुलिस भी रहती है पोस्ट ऑफिस भी रहता है बैंक भी रहता है सब खाने पीने का प्रबंध रहता है बड़ा ठाट बाट, उसी समय १ गाँव का गँवार ज्वार का गट्ठर सिर पर लिए जा रहा था उधर से, देखा बड़ी भीड़भाड़ है कोई बाबा जी ऊँचे पर बैठे हैं तो उसने गट्ठर पटका और वहीं खड़ा हो गया, गाँव के गंवार को सभ्यता से तो कोई मतलब है ही नहीं, देख रहा था सब तरफ कौन बैठा है कुछ कथा वथा कह रहे हैं बाबा जी, इतने में बाबा जी ने पूछा अरे तुम कौन हो भाई ? तो गाँव का गंवार कहता है तुम कौन हो ? दिखाई नहीं पड़ता मैं कौन हूँ ? बाबा जी ने कहा मैं तो श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त हूँ, अच्छा मैं श्री कृष्ण का फनन्य भक्त हूँ, बाबा जी मुस्कराये की कितना ये अपढ़ गँवार है की फनन्य कहता है तो पूछा फनन्य क्या होता है ? तो तुम बताओ अनन्य क्या होता है ? उन्होंने कहा की अनन्य माने केवल श्रीकृष्ण की ही भक्ति करता हूँ और इंद्र वरुण कुबेर किसी की भक्ति नहीं करता, अब तुम बताओ फनन्य किसे कहते हैं ? मैं कन्हैया के सिवा किसी देवता का नाम भी नहीं जानता, कन्हैया से ही प्यार करता हूँ, बाबाजी उठे उसके चरणों में गिर गए, हाँ ये अनन्य भोलाभाला, या तो इतना भोला हो वो भगवान को पा सकता है या तो सब शास्त्रों वेदों का ज्ञान प्राप्त करके फेंक दे उसको समुद्र में और भोला बन जाए
- १ स्त्री अपने पति से कहे तुम भी हमारे पति हो, क्या १ और पति है, जी हाँ, निकल जाओ घर से बाहर और हम लोग मंदिर के भगवान के आगे कहते हैं 'तमेव माता' तू ही मेरी माँ है और १ मार घर में और है
- भगवद् भक्ति से सबकी उपासना हो गई
- जैसे कोई पेड़ की जड़ में मूल में पानी डाल देता है अब बस आराम से अपने घर में आकर सोता है माली, क्यों ? जड़ में पानी छोड़ा उसको इतने मोटे तने और उसकी छोटी डलिया शाखा, उपशाखा, पत्र, पुष्प, फल इनमें जल डालने की चिंता नहीं हुई ? न न माली जानता है की यदि जड़ में पानी डाल दिया जाए तो फिर शाखा, उपशाखा, पत्र, पुष्प, फल में स्वयमेव पहुँच जाएगा उसके लिए प्रयत्न नहीं करना अर्थात यदि श्रीकृष्ण की उपासना कर ली तो उसने अनंत कोटि ब्रहमांड को प्रसन्न कर लिया कोई जीव उसके खिलाफ उंगली नहीं उठा सकता, कोई हस्ती नहीं, कोई शक्ति नहीं और अगर कोई गड़बड़ करे तो छोटी मोटी हस्ती नहीं दुर्वासा सरीकी हस्ती को भी सबक दे दिया जाए
- दुर्वासा सरी के ब्रह्मर्षी भी अम्बरीश के खिलाफ उंगली उठाए और भगवान ने कहा अरे कहाँ जा रहे हो दुर्वासा मैं त्रैलोक में मेरी गति अबाध गति ऐसा ब्रह्मर्षी हूँ, हाँ हाँ हो तो लेकिन आध्यात्मिक धर्म वाले के टक्कर लेने जा रहे हो जरा होशयार हो जाओ, मैं लूंगा, ले लिया टक्कर अम्बरीश से, भगवान ने चक्कर छोड़ दिया उनके पीछे भागे घूम त्रैलोक में कहीं किसी ने शरण नहीं दी, बड़े बड़े पावर वाले लोग थे, आप कौन दुर्वासा, क्या बात है, चक्र हो चक्र है ये तो सेंट्रल गवर्नमेंट का मामला है हम नहीं पड़ते इसमें, किसी ने नहीं कहा जरा बैठइए साहब ऐ चक्र महोदय जरा हट जाओ, अरे कौन अपनी शामत किसकी आई है जो मुसीबत मोल ले, वही अम्बरीश के पास जा कर दुर्वासा को नतमस्तक होना पड़ा और क्षमा याचना करनी पड़ी तब आध्यात्मिक धर्म ने क्षमा किया इतने बड़े ब्रह्मर्षि को दुर्वासा अंतिम अथॉरिटी हैं ब्रह्मर्षि के तो अब आप समझ गए होंगे की आध्यात्मिक धर्म के पालन करने में शारीरिक धर्म अपने आप मान लिया जाता है कि इसने पालन कर लिया
- भक्ति करो सब अपने आप होगा(ज्ञान वैराग्य, ५ कोष भस्म)
- जैसे कोई आदमी खाना खाता है तो वो तो खाना खाता है, अरे क्यों खा रहे हो भई, भूख लगी है तो खा रहे हैं, अरे तो समझते भी हो, अपन तो कुछ नहीं समझते अभी अभी तो माँ के पेट से आए, खाना खाने के बाद इस खाने का क्या होता है, अरे होता होगा जो होता है हमको उससे क्या मतलब, यानी बिना आपके सोचे वो खाया हुआ खाना रस बन जाता है फिर उसका रक्त बन जाता है फिर उसका मांस बन जाता है फिर उसका मेदा बन जाता है फिर उसकी हुड्डी बन जाती है फिर उसका मज्जा बन जाता है फिर उसका शुक्र बन जाता है ये सब धातुएँ अपने आप बन जाती है आपने सोचा, अरे मुझे फ़ुरसत है फ़ालतू बात सोचने की बना करें हमको क्या करना है, आप यूज़ तो कर रहें हैं उन धातुओं का, हाँ वो तो कर रहे हैं, छोटे से थे बड़े हो गए, हड्डियाँ बड़ी बड़ी हो गई, लेकिन साइंस हम नहीं पढ़े हम नहीं जानते, तो अपने आप हो जाता हैं बिना जाने भी, हाँ अपने आप हो जाता है, उसी प्रकार श्यामसुन्दर के वियोग में पंचकोष अपने आप भस्म हो जाते हैं
- भगवान को भोलापन प्रिय अहंकार नहीं
- मसनवी ग्रंथ में १ कहानी है जलालुद्दीन रूमी ने लिखा है, १ बार हज़रत मूसा ईसा के पहले की कहानी है, १ पहाड़ से उतर रहे थे तपस्चर्या करके तो नीचे उतरते समय उन्होंने देखो की १ गड़रिया भेड़ चरा रहा है और ऊपर हाथ करके ख़ुदा से कह रहा है, ऐ ख़ुदा तू मुझे दर्शन दे दे मैं और तो कुछ नहीं कर सकता हूँ तेरी चप्पल फटी होगी मैं सीं सूँगा, तेरे कंबल में चीलर पड़े होंगे तो मैं बीन दूँगा, ये हज़रत मूसा ने सुना उनको बड़ा गुस्सा आया, उन्होंने कहा बतमीज ख़ुदा के कंबल में चीलर पड़ेंगे अरे चीलर पड़ना तो मतलब संसार में भी कहीं गाँव में भी कहीं कहीं आप पायेंगे की किसी के कंबल में चीलर पड़े हो कपड़े में, आजकल गाँव वाले इतने गंदे नहीं हैं लेकिन भला ख़ुदा के यहाँ चीलर कहाँ से पहुँच जाएगी जो तू बोल रहा है उनके कंबल में चीलर पड़े होंगे तो मैं निकल दूँ, तून अपमान किया ख़ुदा का तू अपराधी है गुनहगार है, जब ऐसा उसको डिक्लेअर किया तो बेचारा घबड़ा गया और भेड़ बकरी वकरी छोड़कर चला गया दूर और रोने लगा की ऐसा अपराध मैंने कर डाला जो ख़ुदा माफ ही नहीं करेगा, तो हज़रत मूसा के लिए आकाशवाणी हुई ख़ुदा की, मूसा तुमको हमने इसलिए नहीं भेजा दुनियाँ में की तुम लोगों को मुझसे अलग करो, तुमको हमने इसलिए भेजा की तुम लोगों को मेरे पास लाओ, उस गड़रिये ने जो कुछ कहा बिलकुल ठीक कहा, उसके उस भोलेपन से मैं बहुत प्रसन्न हूँ तुम जाओ क्षमा माँगो, हज़रत मूसा गये उस गड़रिये के पास क्षमा माँगने और उससे कहा ओ गड़रिये, उसने कहा फ़क़ीर साहब गड़रिया चला गया अब तो मेरी खुदी भी नहीं है, गड़रिया गया यानी अहंकार गया
- हट योग से नहीं भगवद् उपासना से काम बनेगा
- एक हुआ है डायोजिनीज। वह पत्थर की मूर्ति के आगे, खड़े होकर भिक्षा माँग रहा है, ए बाबा दे दे भूख लगी है। बाबा खाना दे दे, बाबा पहनने को कपड़ा दे दे। पत्थर की मूर्ति के आगे एकान्त में, जंगल में। तो उसका कोई साथी था, उसने कहा क्यों भाई साहब! आज कोई गड़बड़ है क्या, ये पत्थर की मूर्ति के आगे आप माँग रहे हैं? उसने कहा हाँ, जानबूझकर हम माँग रहे हैं कि ये पत्थर की मूर्ति कुछ देगी तो है ही नहीं। तो फीलिंग न हो हमको, इसका अभ्यास कर रहे हैं कि किसी से माँगे और वह न दे, बात न करे, बोले भी ना, तब भी आपको फीलिंग न हो, ये अभ्यास कर रहे हैं। ये तो उनका अपना एक तरीका है कुछ। लेकिन राँग। इससे काम नहीं बनेगा।
- स्वामी रामतीर्थ को सेव से बड़ा प्रेम था। आप लोगों को भी किसी एक खास चीज़ से बहुत प्यार होता है। आप लोग जानिये, समझिये, सोचिये कौन सी चीज है। आपकी अपनी कोई चीज़ होती है, वह चाहे छोटी चीज़ हो, चाहे बड़ी चीज़ हो, चाहे खराब हो, चाहे अच्छी हो। किसी को बैंगन ही बहुत पसन्द है, किसी को रसगुल्ला पसन्द है, किसी को परवल पसन्द है, किसी को कुछ, किसी को कुछ। अपना-अपना सबका एक होता है रोग। तो स्वामी रामतीर्थ का रोग था सेव। उन्होंने कहा बार-बार मन जाता है सेव में, श्यामसुन्दर में लगाओ तो सेव सुन्दर में जाता है। तो उन्होंने एक सेव रखा सामने और उसको देखने लगे, लगातार देखे जा रहे हैं। देखे जा रहे हैं, दिन हो गया, रात हो गई, दूसरा दिन, तीसरा दिन, चौथा दिन, पाँचवाँ दिन, छठा दिन, साँतवाँ दिन । सेव सड़ गया, कीड़े पड़ गये। तब मन से कहते हैं क्यों रे मन ! ये सेव देख सामने, खायेगा ? हैं! ये क्या खायेंगे, यह तो सड़ा हुआ है। ऐसा क्यों कर रहे हैं आप रामतीर्थ ? अभ्यास कर रहे हैं, कन्ट्रोल कर रहे हैं मन के ऊपर कि सामने सेव रखकर के नहीं खायेंगे। तो ये कोई इलाज नहीं है। ये तो दुराग्रह है। आज तुम जीत गये और कल को सामने पड़ा तो खा लिया। ये कोई इलाज नहीं।
- रामकृष्ण परमहंस एक हाथ में रुपया लेकर, एक हाथ में मिट्टी लेकर, इस हाथ की मिट्टी को उधर और उस रुपये को इधर, यों फेंक रहे हैं। दिन भर यही करते रहे। क्या कर रहे हैं स्वामीजी आप ? टाका-माटी, टाका-माटी, टाका माटी। क्या मतलब ? टाका माटी माने क्या ? मतलब यह रुपया जो है मिट्टी है, मिट्टी जो है रुपया है। रुपया जो है मिट्टी है। ये अभ्यास कर रहे हैं, ताकि लालच न आवे कभी। ये सब बता रहा हूँ कुछ-कुछ क्रैक सबको होता है, हमको भी कुछ होगा, आप लोग जानते होंगे। हाँ! बताओ। खामखाह टाका माटी, टाका माटी किये जा रहे हो, इससे क्या होगा जी। अरे तुम माँ के उपासक हो, दुर्गा माँ के। उनमें मन लगाओ, ये टाका माटी क्यों कर रहे हो ? हाँ, जो कुछ नहीं करता, उसके लिए तो कुछ ठीक है, जैसा मैंने आपको बार-बार बताया है टेम्प्ररी रिलीफ मिल जायगा इन सब साधनों से, लेकिन यह मन का निग्रह इम्पॉसिबल ।
- देखिये आप लोग साइकिल चलाते हैं। तो साइकिल अगर चलती रहे सीधे, लेफ्ट, राइट, पीछे कहीं चलाओ, घुमाते रहो, तो साइकिल सवार गिरेगा नहीं। अगर साइकिल चलाना बन्द करने की आपने सोचा तो आप गिर जायेंगे साइकिल का चलना बन्द हुआ कि सवार गिरा। तो उसी प्रकार इस मन को सदा चलाते रहना होगा चाहे संसार में ले जाओ, संसार बुरा है तो भगवान् में ले जाओ। इसको रोक करके पेंडिंग में आप नहीं रख सकते। ये चलने वाली चीज़ है। बस चलती रहे तो खैरियत है। रोकना असम्भव है। ये ऐसी मशीन नहीं भगवान् ने दी है कि आप इसको रोक करके लॉक कर देंगे कहीं पर, चलो जी मन को हमने वहाँ पर लॉक कर दिया है अब हम.....। तुम, अरे तुम क्या, तुम तो कुछ सोच भी नहीं सकते, बोल भी नहीं सकते, चल भी नहीं सकते। मन के बिना क्या वर्क होगा।
- कुसंग से बचो
- कोई आदमी १ लाख का महीना कमाता है सवा लाख खर्च करता है तो उसके ऊपर कर्ज हो जाएगी और कोई १० हज़ार कमाता है और १ हज़ार बचाता है तो १ दिन लखपति बन जाएगा, कमाई भले ही कम करो गँवाई न होने पावे, कुसंग से बचने का मतलब नामा अपराध न होने पावे, कहीं दुर्भावना न होने पावे, घोर पापात्मा के प्रति भी ये सोचो की इसमें भी श्रीकृष्ण बैठे हैं, अगर गुरु तुमको न मिले होते तो तुम्हारा भी यही हाल होता
- देखो जिस अजामिल का इतिहास आप लोग सुनते हैं सबसे बड़ा पापी था वो। उस अजामिल को भागवत में लिखा है कि उस अजामिल को पूरे शास्त्र वेद का ज्ञान था। नम्बर एक प्लस प्रैक्टीकल धर्मात्मा था, प्लस जितेन्द्रिय भी था। ये सब शब्द हैं भागवत में पढ़ लेना लेकिन उसने एक कुसंग देखा। एक कुसंग देखा आँख से उस कुसंग ने उसको इतना गिरा दिया कि वो पापियों में एग्जाम्पिल बन गया। एक क्षण के कुसंग से। तो हम लोग बहुत अधिक ओवर कान्फीडेन्स कर लेते हैं, अपने को पता नहीं हम लोग क्या समझ लेते हैं अजी मेरा कुसंग क्या कर लेगा। मैं सब कुछ समझ गया हूँ। अरे समझ तो गये हो, लेकिन पा नहीं गये अभी। अभी बचो सम्भलो, सावधान रहो। अभी गंगा पार नहीं हुए नाव डूब जायेगी, हाँ मर जाओगे। हाँ आखिरी क्षण तक सावधान रहना है। भगवान् उनका नाम, उनका रूप, उनका गुण, उनकी लीला, उनके धाम, उनके सन्त इनके खिलाफ न कुछ सुनना है, न कुछ बोलना है, न कुछ सोचना है न कुछ पढ़ना है ये प्रमुख नामापराध हैं। सबसे बड़े पाप ब्रह्म हत्या वगैरह इसके नीचे हैं सब। सब पापों का प्रायश्चित शास्त्रों में लिखा है। लेकिन नामारापराध का कोई प्रायश्चित नहीं। इसलिये हमको इन सब अपराधों से बचना है। सत्संगी सत्संगी के घर में जाते हैं। जाने दो लेकिन उनसे कह दो भई देखो हमारे पास आओ तो केवल राधाकृष्ण और गुरु की चर्चा ही करो, तब तो आओ और अगर तुमने कहा वो बड़ा मक्कार है, वो बड़ी मक्कार है, वह बड़ा वैसा है, ये सब करना है तो भाई नमस्ते। हमारे यहाँ मत आओ, साफ जवाब, भले ही वो फील करे और पचास गाली दे के जाय कि तुम्हारे घर कदम न रखेंगे। बड़ा अच्छा हुआ आपने प्रतिज्ञा कर लिया, हमारा कल्याण हो गया। अब आप मत आइये
- देखो अगर आग लग जाती है किसी की धोती में महिलाओं के खाना बनाते समय वहीं तुरन्त दबा देती हैं। तमाम महिलाओं को ऐसा हो चुका है कहीं शरीर नहीं जलता, वहीं कपड़े को दबा दिया और अगर वह बढ़ गई आग तो फिर आप लोग जानते हैं जब बड़े-बड़े घरों में और बड़े बड़े नगरों में जब बड़ी-बड़ी आग लग जाती है तो फिर बड़े-बड़े फायर ब्रिगेड फेल हो जाते हैं। हफ्तों लग जाते हैं आग नहीं बुझती उसी प्रकार ये हमारे दोष जो हैं, अगर हमने वहीं नहीं काट दिया उसको कुसंग को और चिन्तन करते चले गये कुछ दूर तक कुछ दिन तक, तो उतने ही वो बलवान हो जायेंगे फिर पीछे लौटने में उतनी मेहनत पड़ेगी हमको और फिर क्या पता हो सकता है न भी लौटें ऐसा भी हो सकता है, बाहर के कुसंग से भी यथा शक्ति बचिये। जहाँ तक हो सके बचिये। कोई जबरदस्ती ही कभी कोई बात आ जाय तो उसको समझ बूझ के काट दीजिये। आगे न बढ़ने दीजिये।
- संसार में जैसे घोर कृपण होता है कमाना ही कमाना जिसका लक्ष्य है इस प्रकार हमें स्पिरिचुअल प्रॉपर्टी को बचाना है यानी कुसंग से बचाना है, कुसंग सबसे भयानक है, अजी कुसंग मेरा क्या करेगा मैं सब कुछ समझ गया हूँ, अरे समझ तो गए हो लेकिन पा नहीं गए अभी, अभी बचो संभलो, सावधान रहो, अभी गंगा पार नहीं हुई है डूब जाओगे मार जाओगे, आखरी क्षण तक सावधान रेहना है, आजमील example
- १ सौभरी मुनी थे यमुना जी में डूब के सिर अन्दर करके जप करते थे इतने बड़े तपस्वी, १ दिन १ मछली को संभोग करते देख लिया आँख से बाहर आये उसी का चिंतन शुरू किया, चिन्तन चिन्तन चिन्तन चिन्तन १ दिन २ दिन ३ दिन ४ दिन, बस डिसिजन हो गया हम भी ब्याह करेंगे, १ राजा के पास गए मानधाता के पास उनके ५० कन्यायें थीं उनसे कहा मुझे कन्या दे दो, उन्होंने कहा ये बूढ़े हैं और इनके कोई प्रॉपर्टी नहीं है ये क्या खिलाएंगे पिलायेंगे हमारी बिटिया को लेकिन अगर नहीं देते तो ये पचासौ बिटिया को खत्म कर देंगे इनमें इतनी पॉवर हैं मालूम था उनको, तो उन्होंने कहा देखिये मैं तो बूढ़ा हो गया हूँ अब मेरी लड़कियाँ हैं ये आपको जो भी पसंद कर ले उसे आप ब्याह कर लीजिये स्वयंवर हो जाए, राजा ने सोचा की ये इनको कौन पसंद करेगा भला तो सौभरी मुनि ने जान लिया की ये ४२० कर रहा है राजा, तो उन्होंने अपने शरीर को १८ वर्ष का १ सुन्दर बालक बना लिया इतने बड़े योगेश्वर, बस अब जब वो आये तो सब लड़कियों ने माला पहना दिया ५० लड़कियों ने, तो राजा साहब बड़े परेशान हुआ, क्या सूझा इनको, अब ५० लड़की १ लड़के को अगर पति बनाएंगे तो आपस में लड़ेंगे क्या होगा, तो सौभरी मुनि ने कहा राजन घबराओ मत मैं भी ५० बनूंगा, साधारण योगी नहीं थे आठों सिद्धियां उनके पास थी उनका इतना पतन हो गया साधारण मनुष्य की क्या गिनती है, अब योग माया से उन्होंने अपने ५० महल बना दिए जैसे भगवान श्री कृष्ण के १६ हजार १०८ महल थे ऐसे ही हो गए और उन ५० कन्याओं से फिर ५००० बच्चे हुए, तो १ दिन ये गंगा जी के किनारे बैठे सोचने लगे मैं कहाँ जा रहा था और कहाँ पहुँच गया तो चिल्ला कर बोले 'ओह इम पश्यत में विनाशम' अरे मनुष्यों मेरा सर्वनाश देखो, तुम लोग तो संसारी साधारण जीव हो, फिर चले गए यमुना के किनारे और अब की बार बड़े सावधान रहे किसी के चक्कर में नहीं आए
- भगवान से आनंद माँग लो मिल जाएगा
- हमारे संसार में पॉलिटिक्स में कुछ नेताओं को जब गवर्नमेंट विरोधी पार्टी को बंद कर देती है और कहती है की जो माफी माँग ले उसको छोड़ दे, तो बहुत से लोग कहते हैं अपने घर चलो जी माफी माँग ले हटाओ झगड़ा और बहुत से ज़िद्दी होते हैं वो कहते हैं हम तो नहीं जाएँगे जी, हम तो जेल में ही रहेंगे, ऐसे ही भगवान कहते हैं की भई जो माफी माँग लेगा उससे हम माया को हटा लेंगे और अपना ज्ञान दे देंगे बात खत्म, हम कहते हैं भई हम तुमसे नहीं माफी माँगेंगे, तो फिर कैदियों से माँगोगे ? कैदियों से कैदी माफी माँगेगा, कैदियों से कैदी माँग रहा है पिता जी आनंद दे दो, बेटा जी, मेमसाहब आनंद दे दो, वो कहता है हम क्या दें दे बाबा, हम तुमसे आनंद चाहते हैं, सब धोखे में हैं और १ दूसरे को धोखे में डालने में लगे हैं
- कर्म बंधन को भक्ति के कर्म से कांटो
- किसी के पैर में कांटा चुभ गया है अब वो कहता है कांटे से हमको नफरत है हमको कांटे से दुख मिला है ये हमारे पैर में चुभा है १ आदमी दूसरा कांटा दिखाता है कांटा लो, फिर कांटा लाये तुम हमारे पैर में चुभा है हमे कष्ट हो रहा है फिर तुम कांटा दिखा रहे हो, अरे साहब घभराइए नहीं इस कांटे से उस कांटे को निकालना है, तो क्या मतलब है आपका ? जहाँ कांटा चुभा है वहाँ इस कांटे को चुभाओ, अजीब आदमी हैं आप १ कांटा तो चुभा ही है दूसरा कांटा जबरदस्ती चुभावे हम, जी हाँ अगर नहीं चुभाएँगे तो वो चुभा हुआ कांटा निकलेगा नहीं और आप लंगड़ाते चलेंगे ऐसे रोज जब दुसरे कांटे से उस चुभे हुए कांटे को निकाल दिया, अब क्या करें जी ? अब दोनो कांटा फेंक दीजिए अब आपको कांटा न बाहर से लाने की जरुरत है न पैर के भीतर है अब दोनों कांटों से आपको छुट्टी तो उसी प्रकार धर्म से धर्म को यानि कर्म बंधन को कर्म से कर्म बंधन को कांट कर फिर दोनो कर्मों को छोड़ दिया उसने ये धर्म के साथ जब भक्ति का प्लस हुआ तब होता है
- वैधी रागानुगा भक्ति में अंतर
- एक रसोइया होता है, वह खाना बनाता है। साहब को खाना खिलाना है तो ठीक-ठीक नमक, घी सब चीजें डाली जायँ नहीं तो साहब की डाँट पड़ेगी और फिर ये भी हो सकता है गेट आउट। तो हमारे बीबी बच्चे भूखों मर जायेंगे। ये डर है। और अगर अच्छा-अच्छा खाना खिलायेंगे तो साहब की मौज आ जाये तो तनख्वाह बढ़ा दें। इनाम कुछ दे दें, कपड़े लत्ते। इसलिये बहुत सम्भल कर, सावधान होकर, ठीक-ठीक, बढ़िया खाना बनाकर खिलाता है साहब को और एक उसकी बीबी बनाती है या माँ बनाती है, वह भी खाना ठीक-ठीक बनाती है, उसी तरह। खाना बनाने का तरीका दोनों का एक। दोनों का लक्ष्य है कि खाना ठीक-ठीक बने, स्वादिष्ट बने। लेकिन वो स्त्री या वो माँ जो अपने बच्चे के लिये खाना बना रही है, उसकी भावना और है। ऐसा खाना बने कि बच्चे का स्वास्थ्य अच्छा रहे, बच्चे की आदत भी खराब न हो, उसके शरीर को कोई हानि न हो ये सब ममता भरी बुद्धि है उसकी। और उस नौकर की, रसोइया की डर भरी बुद्धि है, भय है उसके अन्तःकरण में इसलिये वह भी अच्छा खाना बनाता है। हो सकता है कि कल रसोइया का भी प्यार हो जाय साहब से तो वो प्यार युक्त भी खाना बनाने लगे लेकिन ये बाद की बात है। तो इसी प्रकार वैधी भक्ति वाले कुछ ऐसे भी हुये हैं कि बाद में रागानुगा में चले गये, उनकी बात समझ में आ गई कि ये बिना वजह का लेबर करो और स्थान भी नीचे मिले। तो रागानुगा में भी वैधी भक्ति वाले जा सकते हैं। लेकिन वैधी और रागानुगा का यही प्रमुख अन्तर हैं कि वैधी में शास्त्र के शासन को मानना होता है। ६४ अंग हैं भक्ति के, वैधी भक्ति
- गुरु शरणागत को ही भगवान मिलते हैं
- धन्नाजाट था एक, सन्त हुआ है वह कहीं अपना ऐसे ही हल जोत रहा था कोई पण्डित जी उधर से निकले तालाब के किनारे बैठ गये, नहाये धोये अपना पूजा पाठ करने लगे सालिग्राम की मूर्ति लिये थे। वह देख रहा था दूर से क्या कर रहे हैं, पण्डित जी कुछ मंत्र भी बोलते जा रहे थे चंदनं समर्पयामि पुष्पाणि समर्पयामि। तो हल बन्द करके वह गया अँगूठा छाप बेपढ़ा लिखा गाँव का गवाँर था बोला पण्डित जी आप ये क्या कर रहे हैं ? क्या कर रहे हैं, भगवान् की उपासना कर रहे हैं, भक्ति कर रहे हैं, पूजा कर रहे हैं। उसने कहा इससे क्या होता है ? क्या होता है ? क्या नहीं होता है बेवकूफ! गधा। अरे मोक्ष मिल जायेगा, भगवान् मिल जायेंगे, जो चाहो वह मिल जायेगा। तो महाराज हमको भी दे दो भगवान् हम भी पूजा करेंगे। अरे तू क्या पूजा करेगा बेपढ़ा लिखा, ऐसे कैसे पूजा होगी। नहीं हम तो करेंगे। हठ पड़ गया वह। पण्डित जी भंगेड़ी भी थे ज़रा भाँग भी पीते थे। तो उनके पास एक पुराना भंगघुटना था भाँग घोंटने वाला, खराब था ऐसे ही टूटा फूटा उन्होंने कहा ले जा ये सालिग्राम हैं। तू क्या पूजा करेगा ? ऐसा करना नहा के तब नहलाना इनको, और इनको खिलाकर तब खाना खाना। ये दो बात याद कर ले, बाकी क्या करेगा अण्डबण्ड करेगा बाकी काम। ये दो ही बात तू कर लिया कर। रट लिया। हाँ तब इनको नहाकर नहलायेंगे, और इनको खिलाकर तब खायेंगे। ठाकुर जी को अपना ले गया, भंगघुटना को ले गया बड़े प्यार से भगवान् की भावना करके और रख दिया अपने टूटे फूटे घर में वो रहता ही था गरीब था। एक ताक होता है जैसे पक्षी घोंसला सा बना लेते हैं कच्चे मकान में एक कोई पुराना कपड़ा रख दिया नीचे और नहा धोकर के फिर उसको नहलाया वहलाया। नहलाने के बाद माँ ने जब मोटी रोटी जो गाँव में बनती हैं दिया खाने को, तो उसने कहा कि आज तो भगवान् को लाये हैं अपने घर में, उनको खिलाकर खायेंगे। माँ ने कहा बड़ा खिलाने वाला आया, खायेंगे भगवान् कोई। जा खिला ले। वह पण्डित जी की बात पर दृढ़ था, उसको दृढ़ विश्वास था। देखिये, अस्ति शब्द का क्या अर्थ होता है ? जो वेद कहता है- वेद कह रहा है बार बार, अगर कोई भगवान् है ये मान ले बस भगवत्प्राप्ति उसको हो जाय और कुछ करना धरना नहीं है। उसने उस भंगघुटना को भगवान् मान लिया, सेन्ट परसेन्ट और रोटी मोटी मोटी रख दिया ठाकुर जी के आगे। अब भला भंगघुटना क्या खाता ? तो उसने ये समझा कि भई देखो जैसे हम लोग गाय भैंस वगैरह जब बेचते हैं और दूसरे के घर जाती है वो गाय, वो भैंस तो दो एक दिन खाना वाना नहीं खाती। क्योंकि मालिक बदल गया, जगह बदल गयी उसकी। उसको भी फीलिंग होती है पशु होते हुए भी। तो ये ठाकुरजी के जगह बदलने के कारण, ये पण्डित जी के ठाकुर जी हमारे यहाँ आये हैं गरीब के यहाँ, शायद इसलिये नहीं खा रहे हैं। ठीक है नहीं खा रहे हैं तो मैं भी कैसे खाऊँ ? पण्डित जी ने कहा है इनको खिला कर खाना। तो ठीक आप रूठे हैं तो मत खाइये मैं भी नहीं खाता। माँ ने कहा अरे नहीं खायेगा तो फिर गाय चराना है तो फिर हल जोतना है सब काम कैसे होगा ? माँ चाहे जो कुछ हो अब इनको ले आये घर में ये न खायें, मैं खा लूँ ये कैसे होगा ? दो दिन, तीन दिन, चार दिन, पाँच दिन, छः दिन, सात दिन बीत गये। अब चलना फिरना मुश्किल हो गया हल कैसे जोते। गिर-गिर पड़े चक्कर आने लगा। भगवान् तो भंगघुटना में भी हैं और श्रीकृष्ण मूर्ति में भी भगवान् वही हैं। सर्वव्यापक हैं वह तो। कोई छोटे बड़े भगवान् नहीं होते कि बाँके बिहारी के मन्दिर के भगवान् बड़े हैं और भंगघुटना में जो व्याप्त हैं वह छोटे भगवान् हैं। ऐसा नहीं होता, प्रभुव्यापक सर्वत्र समाना समाना, व्याप्त हैं। वह चाहे पाखाने का पत्थर हो और चाहे बद्री नारायण की मूर्ति हो, कोई हो। भगवान् सबमें एक से हैं। भगवान् से नहीं रहा गया। भक्ति के अण्डर में होना पड़ेगा न। तो सातवें दिन फिर जब रोटी रखा तो भगवान् सामने प्रकट हो गये उसी भंगघुटना से। और बाकायदा रोटी खाने लगे। आधी रोटी जब खा गये तो उसने कहा, महाराज ! हम तो समझ रहे थे कि तुम बड़े दयालु हो ऐसा बताया था पण्डित जी ने। अरे हम भी सात दिन के भूखे हैं (हँसी) और तुम सारी की सारी खाये जा रहे हो। अरे कुछ तो दया होनी चाहिये। भगवान् की आँखों में आँसू आ गये।, भगवान् या तो उस घोर मूर्ख को मिलते हैं जो गुरु वाणी पर अटल हो जाय, बुद्धि लगाना बन्द कर दे और या तो इतना बड़ा विद्वान् हो कि बुद्धि से परे हो जाय
- किस अहंकार से भगवान को भूले हो
- राम ने कहा था मेरा १ ही मित्र है सुग्रीव, सुग्रीव के समान कोई मित्र नहीं हो सकता। और मेरे समान कोई बाप का बेटा नहीं हो सकता और भरत के समान कोई दूसरा भाई नहीं हो सकता। लक्ष्मण ! कान खोल कर सुन लो, ये राम ने कहा था। वह सुग्रीव भूल गया कि सीता की खोज़ करना है इतना बड़ा काम किया है राम ने मेरा। कम से कम उसके बदले में ही सही व्यापारी बुद्धि से ही सही, कुछ तो अहसान मानना चाहिये था। अब जब लक्ष्मण जी ने कहा सुग्रीव ! उसने कहा कहिये "कैसे आये आप?" अरे तुमको कुछ काम बताया गया था ? काम ? कौन सा काम ? कौन सा काम पूछ रहे हो ? बताऊँ कौन सा काम (गुस्से में) जब तरकस के बाण में हाथ लगाया तो उसने कहा ओ सॉरी याद आ गया। महाराज ! गलती हो गई। क्या बतायें राजमद है। मैं राजा बन गया तो मैं भूल गया, राम का काम करना है मुझे। कहाँ मैं मारा मारा फिरता था। जिस पर्वत पर बाली के जाने की परमीशन नहीं थी, शाप था उसको, वहाँ जाकर शरण ले रखी थी सुग्रीव ने। तब बचा है, वरना उसको बाली मार डालता। ऐसी अवस्था बुरी अवस्था में, जो सुग्रीव था आज राजा बन गया। भूल गया। आप सब लोगों का यही हाल है, आप सब लोग ये न समझें कि हम सुग्रीव से कम हैं। अरे सुग्रीव राजा होकर के भूल गया और आप लोग भूल गये हैं, तो कुछ न कुछ तो समझते ही होंगे अपने आपको वरना क्यों भूलते ? कुछ न कुछ तो समझते ही हैं आप चाहे कुछ भी न। लेकिन समझते हैं फिर भी कुछ। तभी भगवान् का विस्मरण हो रहा है।
- जड़ में जड़ की भावना का कोई फल नहीं
- जैसे गोबरगुल्ला में रसगुल्ला की भावना करने से हमें रसगुल्ला का फल नहीं मिलेगा क्योंकि गोबरगुल्ला में रसगुल्ला की जो भावना की तो रसगुल्ला गोबरगुल्ला में व्याप्त नहीं है। रसगुल्ला अलग पदार्थ है जड़ है। गोबरगुल्ला अलग पदार्थ है वह भी जड़ है। तो वो रसगुल्ले की भावना का फल गोबरगुल्ला नहीं दे सकता। न गोबरगुल्ला चैतन्य है न रसगुल्ला चैतन्य है इसलिये प्रश्न ही नहीं पैदा होता फल मिलने का
- जड़ में चेतन की भावना का कोई फल नहीं
- जैसे हमारा रमेश से प्यार है और उसको पता नहीं है उसका फोटो देख कर हम मरे जा रहे हैं, रोये जा रहे हैं और यहाँ तक कि एक दिन मर भी गये। हमको कोई फल नहीं मिला। देखो जड़ वस्तु में चेतन की भावना किया। जड़ फोटो में, जड़ मनुष्य की मूर्ति में चेतन मनुष्य की भावना हमने किया, हमने रमेश का फोटो लिया और खूब प्यार बढ़ाया, वह भी फल नहीं देगा क्योंकि रमेश अल्पज्ञ है प्लस सर्वव्यापक नहीं है प्लस एक देशीय है
- चेतन में चेतन की भावना का कोई फल नहीं
- कोई चेतन वस्तु है प्रवीण, उस प्रवीण नाम के लड़के में हमने रमेश नाम के किसी दूसरे लड़के की भावना बनाई उसका भी कोई फल नहीं मिलेगा क्योंकि रमेश को पता ही नहीं चला कि तुमने क्या भावना बनाई। वो फल क्या देगा बिचारा, उसको खबर ही नहीं हुई क्योंकि जीव अल्पज्ञ है प्लस सर्वव्यापक नहीं है प्लस एक देशीय है
- जड़ या चेतन में भगवान की भावना से उनका फल मिल जाता है
- जड़ वस्तु या चेतन वस्तु में अगर भगवान् की भावना किया तो भगवान् का फल मिला, क्योंकि भगवान् सर्वव्यापक है प्लस सर्वज्ञ है प्लस सर्वान्तर्यामी है एक नहीं पच्चीस रीज़न हैं भगवान् मूर्ति में भी व्याप्त हैं। विश्व का कौन सा धार्मिक नेता है मूर्ति पूजा का खण्डन करने वाला, यह नहीं मानता कि भगवान् सर्वव्यापक है। सब मानते हैं। जब सर्वव्यापक है तो मूर्ति में भी है। हाँ है। तो मूर्ति में जो भगवान् व्याप्त है, हम उसकी उपासना कर रहे हैं, मूर्ति की उपासना नहीं कर रहे हैं। हम मूर्तिमान की पूजा कर रहे हैं। मूर्ति की पूजा नहीं कर रहे हैं। और जो मूर्तिमान की उपासना नहीं करते, मूर्ति की पूजा करते हैं उनको पत्थर का फल मिलेगा नेचुरल है। इसीलिये आप लोग गहराई से नोट करें, तो मन्दिर के पूजा करने वाले पुजारी उस मूर्ति से लाभ नहीं ले पाते जितना लाभ दूर से जाने वाले लेते हैं। बद्रिकाश्रम भगवान् को देखा, जय हो, जय हो बदरीनारायण महाराज की जय हो। और जो रोज पूजा कर रहा है उसको लाभ तो क्या, हानि और अधिक हो जाती है। आप जाकर देखिये तीर्थों में भगवान् के जेवर तक चुरा लेते हैं पुजारी लोग, मुकदमे चलते हैं। पुजारी ही चोरी कर लेते हैं भगवान् के जेवर की। तो मूर्ति में भगवान् व्याप्त है, इसलिये भी हमें भगवान् का फल मिलता है
- अहंकार भगवान का शत्रु
- द्वारिका में सत्यभामा और गरुड़ और चक्र तीनो को अहंकार हो गया, सत्यभामा को अहंकार हुआ की अनंत कोटि ब्रह्माण्ड में सबसे सुन्दर मैं हूँ और फिर कृष्ण हमारे दीवाने और चक्र को अपनी पॉवर का अहंकार हो गया मैं अनंत ब्रह्मांड भस्म कर दूं १ सेकंड में इतना टेम्परेचर है चक्र का और गरुड़ को अपने वेग का इतना तीव्र हूँ मैं, तीनों के अहंकार को देखकर भगवान ने कहा इसको मिटाना है तो गरुड़ से कहा देखो जा करके हनुमान जी को बुला लाओ, तो गरुड़ बड़ी तेज वेग में गए तो हनुमान जी लेटे हुए थे वृद्ध हो गए थे ओ डाटा गरुड़ ने, अे बंदर क्या नाम है तेरा और देखा हनमान जी ने तो उन्होंने कहा तुझसे मतलब, अरे तुम हनुमान हो, हाँ हाँ हनुमान हूँ, हमारे श्री कृष्ण भगवान ने तुझको बुलाया है चल, देखो भई मैं तो सीता राम का भक्त हूँ मैं नहीं जानता श्रीकृष्ण कौन है उनके बुलाने पर मैं नहीं जाता, बड़ा अहंकारी बंदर है लौट आये, भगवान से कहा महाराज वो तो कहता है हम तो सीताराम के भक्त हैं हम नहीं जाते, उन्होने कहा अरे बाबा तो उनसे कह दो कि सीताराम बुला रहे, तो फिर गए और कहा कि सीताराम बुला रहे हैं तो उन्होंने कहा अच्छा सीताराम द्वारिका में आए हैं तू चल मैं आ रहा हूँ, अरे आप बूढ़े हो गए हैं हमारी पीठ पर बैठ लीजिये मैं अभी पहुँचा देता हूँ आप चलके आएंगे तो बहुत देर हो जाएगी सीताराम परख रहे हैं, तो उन ने कहा बकबक बंद कर जा यहाँ से मैं आ रहा हूँ, फिर भी जिद किया, तो उठा करके अपनी पूंछ में पकड़ के फेंक दिया गरुड़ को समुन्द्र में जाके गिरी और हनुमान जी आ गये, अब जब आ गए तो गेट टीपर चक्र था द्वारिका का, कोई अन्दर घुस नहीं सकता था चक्र के डर के मारे, चक्र चलता रहता था हमेशा, तो उसने कहा बंदर कहा जा रहा, हनुमानजी ने उसे कहा ये क्या है खिलौना तो पकड़ा मुँह में भर लिया चक्र को, अब श्रीकृष्ण ने कहा सत्यभामा इधर आओ ऐसा करो की तुम सीता बन जाओ और मैं राम बन जाता हूँ नहीं तो हनुमान आ रहे हैं सारी द्वारिका को उखाड़ के समुद्र में फेक देंगे वो पहाड़ उखाड़े थे न जानते हो लक्ष्मण को जब शक्ति बाण लगा था तो पूरा पहाड़ उठा लाए थे, उन्होंने कहा ठीक है भई ऐसा कोई बंदर होगा सीता बन गयी, श्रीकृष्ण राम बन गए तो श्रीकृष्ण का तो राम का स्वरूप जो पूरा था ही, सत्यभामा सीता बन गई, तो जब आकर खड़े हुए श्रीकृष्ण के सामने राम के रूप में देखा तो प्रणाम किया हनुमान जी ने, श्रीकृष्ण ने कहा ये मुँह में क्या रखे हो हनुमान, तो उन्होंने कहा महाराज कुछ नहीं आपके गेट पर १ खिलौना बकबक कर रहा था तो हमने उसको डांटा और हमने मुँह में धर लिया, अच्छा अच्छा अरे तुमको हमने बुलाने को गरुड़ को भेजा था वो कहाँ गया, इतने देर में गरुड़ आ गए, देखा की हनुमान जी हाँ पहले से बैठे, महाराज मैंने कहा था कि तुम चलो मैं आ रहा हूँ ये पक्षी नहीं सुना जिद्दी था तो हमने उसको उठा के फेंक दिया समुद्र में गिरा इसलिए देर में आया मैं पहले आ गया, प्रभु १ बात बताओ की माँ सीता कहाँ हैं ये नौकरानी कैसे बगल में बैठी है सत्यभामा को काँटो तो खून नहीं, गरुड़ ने बताया था कि सीताराम बुला रहे है आपको हम माँ के दर्शन नहीं कर पा रहे, तब खैर सीता को बुला लिया श्री कृष्ण ने, फिर हनुमानजी से कहा अच्छा तुम जाओ तुमसे मिलने के लिए बुलाया था चले गए, तो चक्र, गरुड़ और सत्यभामा तीनों को बुलाया और कहा देखो १ बंदर ने तुम तीनों को हरा दिया अब तुम लोग बड़े पॉवर फुल हो कभी अहंकार नहीं करना मेरी मेरी, मेरे बल से तुम लोग बलवान हो तुम्हारा अपना कुछ बल नहीं है संसार को शिक्षा देने के लिए कोई चक्कर को अहंकार नहीं हुआ था, न गरुड को हुआ था, न सत्यभामा को हुआ था लेकिन अहंकार की एक्टिंग करते हैं और भगवान उसके मर्दन की एक्टिंग करते है बनावटी ताकि लोग पढ़े और सुने और कभी अहंकार न करें ये शिक्षा देने के लिए करते हैं उनको कोई बीमारी नहीं है माया की, की अहंकार कर बैठेंगे
- तन बिनु भजन वेद नहीं वरणा
- कोई चीज देखते हैं आप ? हाँ, कैसे देखते हैं ? आँख वाला कहता है आँख से, आँख से ? हाँ जी बिलकुल ठीक आँख हो तो ये सामान दिखाई पड़ेगा की ये पलंग है, लाइट ऑफ कर दो, ये क्या है ? कहाँ ? अरे ये तुम्हारे सामने, कुछ नहीं अंधेरा है, तुम तो कह रहे थे आँख से दिखाई पड़ता है, नई बड़ी तेज आँख है हमारी लेकिन अंधेरे में दिखाई नहीं पड़ता आँख से भी, वो भी जीरो हो गई, आँख भी आवश्यक लाइट भी आवश्यक तब कोई वस्तु दिखाई पड़ती है, उसी प्रकार शरीर के लिए संसार आवश्यक, आत्मा के लिए परमात्मा आवश्यक
- निष्काम प्रेम
- १ बच्चा रसगुल्ला से प्यार करता है बच्चे ने कभी नहीं सोचा क्यों रसगुल्ले तुम भी हम से प्यार करते हो की नहीं, हम तुम्हारे लिए रोते हैं, रसगुल्ला प्यार करे न करे भाड़ में जाए, हमको अच्छा लगता है हम प्यार करते हैं, अगर हम किसी से प्यार करते हैं तो वो हमसे प्यार करता है की नहीं ये जानने की जिज्ञासा क्यों, ये प्यार नहीं है धोखा है बिजनेस है
- ठाकुर जी ने ऐसी एक्टिंग की अरे मैं तो मर जाऊँगा नहीं बचूंगा हाय हाय, अब सारी स्त्रियाँ भागी १६१०८ अरे क्या हो गया, सबसे अधिक स्वार्थ पति से स्त्री का होता है इसलिए सबसे अधिक दुःख भी उसी को होता है अरे क्या बात हुई क्या हुआ सबने घेर लिया, ठाकुर जी ने कहा सब लोग हट जाओ कोई बोल मत मैं अब बचूंगा नहीं, भगवान भी नहीं बचेंगे सुना इतने में नारद जी आ गए वहाँ, अरे सबके भगवान अन्दर तो बैठे ही हैं नारद जी से कहा हे चलो मेरे पास आओ, आ गये, देखा क्या विचित्र दृश्य है सब स्त्रियाँ के आँखों से आंसू ढुलक रही है और ठाकुर जी की हालत खराब है बात क्या है ये मामला सीरियस है अपन इस मामले में नहीं पड़ते लेकिन रुकमणि ने कहा नारद जी कुछ करो, नारदजी ने कहा, हुआ क्या ये तो बताओ ? अरे देख तो रहे हो क्या हुआ तबियत खराब हो गई, अच्छा जाते हैं गए ठाकुर नारायण जेसे बैठे बैठ जैसे कोई मरना सन्न होता है न बोलता है ऐसे ठाकुर जी से पूछा, क्या हाल क्या हुआ क्या तकलीफ है ? उन्होंने कहा मत पूछो नारद, तो नारद जी ने कहा सोचा की इन्हीं से पूछना चाहिए कि तुम्हारी इस बीमारी का दवा की दवा क्या है जब इन्होंने बीमारी पैदा की है तो ये दवा जानते होंगे, आपको जो कष्ट है ये कैसे जाएगा ? उन्होंने कहा नारद जी अगर कोई भक्त अपने चरण धूली दे दे तो मैं अच्छा हो जाऊ और कोई इलाज नहीं है इसका, नारद जी ने कहा मैं भी तो भक्त हूँ लेकिन मैं नहीं पड़ता झगड़े में १ बार तो बंदर बन चूका हूँ बंदर का मुँह मिल चुकी है लेकिन ये माताएं जो है भगवान की स्त्री बनने का सौभाग्य कोई संसारी जीव को तो मिलेगा नहीं इन्ही से चरण धूली मांग लेते हैं नारद जी ने कहा माताओ चरण धूली दे दो थोड़ी सी, स्त्रियों ने कहा तुम्हारा दिमाग तो सही है संसार में सनातन धर्म में कोई स्त्री अपने पति को चरण धूल देगी अरे पति के चरण धूल लगती है स्त्री नारद जी तुम्हें क्या हो गया है अरे मैं भी शास्त्र वेद जानता हूँ लेकिन अब क्या करूँ इसका इलाज और कोई नहीं है चलो उन्हीं से पूछते हैं गुरु घंटाल से, हाँ बताओ जी वो कौन सा महात्मा है जिसके चरण धूल से आप अच्छे हो जायेंगे, तो उन्होंने कहा तुम ब्रज में जाओ वहाँ राधा रानी है पूछ लेना पता उनकी नौकरानियाँ है वो सब दे देंगे तुमको, फिर रुकमणी ने देखा फिर राधा रानी राधा रानी क्या हो गया है इनको, नारद जी कहते हैं चलते हैं वहाँ भी देख लेते हैं भई वो कैसे महात्मा हैं जो चरण धूलि दे रही है भगवान को, नारद जी पहुँचे, हमारे प्राणवल्लभ की भी कोई खबर लाये हो द्वारिकाधीश की ? हाँ लाये हैं, क्या खबर हैं ? बहुत हालत खराब है उनकी, क्यों ? अरे बड़ा दर्द है बड़ा हार्ट अटैक होने वाला है क्या है पता नहीं लेकिन वो कहते है की चरण धूली दे दे अगर तो ठीक हो जाएँगे, तो सबने पैर फैला दिया जल्दी लो और जाओ हमारे प्राणवल्लभ अच्छे हो जाए, नारद जी ने कहा की माताओं १ बात पूछूं, श्री कृष्ण भगवान हैं ये जानती हो उनको चरण धूली दे रही हो लोक में वेद में ये बड़ा पाप है क्या कहेंगे लोग भविष्य में, नारद जी लेक्चर बाद में देना जल्दी जाओ ऐसा मैं जानती हूँ उनको सुख मिले वो अच्छे हो जाये, नरक फरक भोग लेंगे हम अनंत बार नरक भोगे हैं पहले भी तो भगवत प्राप्ति के पहले १ बार और सही, नारद जी ने कहा पहले मैं लगा लूँ चरण धूली ऐसे भी महापुरुष होते है, नारद जी गए, जरा सा छुआ दिया चरण धुली ठाकुर जी को ठीक हो गए
- गोपी प्रेम भक्तवश्य
- १ गोपी कहती हैं ठाकुर जी से गोबर उठा दे, गोबर उठा दे मैं नौकर हूँ क्या उठा लूं, ज्यादा मत बोल १ लोंदा मक्खन दूंगी १ बार उठाने का, जितनी बार तू टोकरा उठायेगा उतने लोंदा लोंदा मक्खन दूंगी, अब तो उठाएगा ? हाँ अब उठाऊँगा लेकिन १ बात बता तू भी बेपढ़ी लिखी मैं भी बेपढ़ा लिखा तो कितने बार उठवाया तू ने ये कौन गिनेगा ? तो गोपी ने कहा ऐसा है जितनी बार तू उठायेगा १ गोबर का टीका तेरे गाल में लगा देंगे, ऐसे हम टीका लगते जायेंगे बाद में फिर किसी से गिनवा लेंगे उतने लोंदा मक्खन दे देंगे तुझको, ठाकुर जी बेवकूफ़ बन गए ठीक है ठीक है ठीक है चल उठता हूँ, अब छोटा सा तो गाल ठाकुर जी का उसमें ५ ६ ८ आ गए उसके बाद खत्म, तो माथे में लगाना शुरू किया तो गोबर गोबर हो गया मुख, अब ला मक्खन दे ? अरे तो यहाँ कहाँ मक्खन हैं घर चल, ठाकुर जी पीछे जा रहे है जैसे कोई भिखारी हो, गये घर में उसने शीशा लिया हाथ में शकल तो देखो, जल्दी जल्दी गए मटके में पानी भरा था और धो लिया ठाकुर जी ने, अब तो ला मक्खन, अरे सब तो खत्म हो गया, तुमने धोया क्यों ? अरे इतने बेईमान हैं तू इतना मैं थक गया उठाते उठाते, अच्छा धर दिया आगे मक्खन जितना तेरा पेट भरे खा, ये गोपियाँ ठाकुर जी को दास बना का नचाती थी ये गोपी प्रेम है
- १ दिन की छुट्टी हो जाती है कभी स्कूल से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक तो सर्विस वालों को कितनी ख़ुशी होती है, भगवान संसारी गुलाम की तरह नहीं, बेगारी से काम कर रहे हैं सुख नहीं मिल रहा सर्विस करने में
- दिव्य प्रेम का स्वरूप
- जैसे गूँगा व्यक्ति रसगुल्ला खाए और उससे पूछा जाए की ये जो कुछ खा रहे हो कैसा है ? अब वो गूँगा है बिचारा क्या बताए, प्रेम अनिर्वचनीय है वाणी/शब्द की गति नहीं
- प्रेम दिव्य अंतःकरण में ही ठहरेगा
- जब हनुमान जी लंका की और बढ़े तो उनके भर को कोई भी सह ही नहीं सका, वो जिस पहाड़ पर जम्प करें की यहाँ से लंका को जम्प करें १ जम्प में पहुँचे वो पहाड़ ही चला जाए पाताल में, ऐसे ही जब तक पात्र न हो तब तक, हमारे देश में तमाम ऐसे कमजोर पुल बनाते हैं अधिक भीड़ हुई की चला गया नीचे वो, कई छतें मकानों की होती है जुलूस जा रहा है और छतों पर बाज़ार में लोग बैठे हैं १ में १ सटे हुए, टूट गया वो, तो भार सहने की शक्ति हो, तो प्रेम नाम की दिव्य वस्तु उस अंतःकरण में आएगी, जब अंतःकरण को साधना भक्ति के द्वारा अविद्या विद्या दोनों मायाओं को स्वरूप शक्ति समाप्त कर देगी
- १ भिखारी की १ करोड़ की लाटरी खुल जाती है तो हार्टफेल हो जाता है जब मायिक बहुत बड़ा सुख ही हम लोग सहन नहीं कर पाते तो अगर बिना अंतःकरण शुद्धि के दिव्य प्रेम दे दे तो हुड्डी के भी चूरे नहीं मिलेंगे, इतना बड़ा आनंद अनलिमिटेड हैप्पीनेस उसको ये मटेरियल मन कैसा सहन करेगे
- प्रेमानंद का सौरस्य ब्रह्मानंद के मुकाबले
- १ बार सनकादिक घूमते घूमते भगवान के लोक गए, ये चारों सदा निर्गुण निर्विशेष निराकार ब्रह्मानंद में लीन रेहने वाले हैं भगवान के चरण कमल पर रखी हुई तुलसी की मकरंद वायु जैसे नासिका में प्रविष्ट हुई तो अपने निर्गुण निर्विकार समाधि भूल गए और भगवान से कहते है महाराज हमको नरक में वास दे दो, भगवान के अवतार पैदा होने के पहले ही परमहंस ब्रह्मज्ञानी, आत्मज्ञानी नहीं हम ब्रह्मज्ञानी, हमको नरक में वास दे दो हम स्वीकार करते हैं लेकिन आपके चरणों की भक्ति दिए रहो बस
- जैसे किसी माँ के पेट में बच्चा है बड़ी खुश है मैं माँ बनने वाली हूँ मेरा बच्चा होगा, लड़का होगा की लड़की होगी ? सुंदर होगा, कैसा होगा, काला होगा, गोरा होगा, तमाम चिंतन करती रहती है जब लड़का हुआ उसको देखा, उसका स्पर्श किया, उसकी बाल लीलाएं देखी, अब उस माँ से पूछो क्यों जी जब ये पेट में था तो वो आनंद और अब बाहर आ गया ये आनन्द इनमे क्या अंतर है ? अरे बड़ा अंतर है क्या बात करते हैं आप भी, अरे जब अंदर था तो हमको तो कष्ट था और न दिखाई पड़ रहा था, न कोई लीला, न कोई शब्द, न रूप है अरे बहुत बड़ा अंतर है अरे लड़का तो वही है, हाँ है तो वही लेकिन फिर भी
- देखो सबसे खुशबू वाला पेड़ होता है चंदन भगवान को भी चढाते हैं, हाँ, अगर चंदन में फूल होता तो, देखो ब्रह्मा की खोपड़ी, सब तमाम हजारों वृक्षों में तो फुल बनाये और चन्दन में बनाया ही नहीं, भूल गया या क्या हुआ पता नहीं, अगर फूल होता चंदन में तो कितनी खुशबू होती उसमें, ऐसे ही अंतर है निराकार ब्रह्मानंद में और साकार प्रेमानंद में
- गन्ना देखा है आप लोगों ने ? हाँ, अरे साहब गन्ने की क्या बात है उसी से गुड बनता है चीनी बनती है मिश्री बनती है सारी दुनिया दीवानी है अगर ये गन्ना न हो तो न लोग दूध पियेंगे, न चाय पियेंगे, न कॉफी पियेंगे, लेकिन फिर गलती किया ब्रह्मा ने, गन्ने में फल नहीं बनाया, अगर गन्ने में फल बनाता ब्रह्मा तो जैसे आम के पेड़ से आम के फल में फर्क है अंतर हैं ऐसे ही होता, कितना मीठा होता हो वो फल ? बस ऐसे ही अंतर है निराकार ब्रह्मानंद में और साकार प्रेमानंद में, वो २ नहीं हैं, है १
- निष्काम भक्त
- महाभारत में कथा है १ बार अर्जुन श्रीकृष्ण जंगल में गए और प्यास लगी, उन्होंने देखा की १ बाबा जी सूखे पत्ते खा रहे और हाथ में तलवार है अर्जुन ने कहा श्रीकृष्ण देख रहे हो ये क्या है श्री कृष्ण ने कहा बड़ा आश्चर्य है कि सूखे पत्ते खा रहे बाबा जी और हाँथ में तलवार चलो पूछते हैं कौन है क्या मामला है इतना बड़ा त्यागी होके सूखे पत्ते खाते हो महात्मा जी, बड़ी देर में महात्मा जी ने देखा, इतने बड़े त्यागी महात्मा आप हाँथ में तलवार क्यों लिए हो, उन्होंने कहा की मेरा कुछ काम करेगा तो बताऊँ मैं क्यों लिए हूँ तलवार, सेवा करेगा मेरी, हाँ महाराज आप जो कहें करेंगे, उन्होंने कहा हमारे प्राण वल्लभ श्याम सुंदर को भृगु ने छाती में लात मारा था ये तलवार तैयार रखता हूँ अगर मिले तो मार दूँगा, हमारा काम करेगा, अर्जुन ने कहा महाराज वो तो ब्राह्मण है ब्रह्म हत्या लगेगी, ये दूसरा करेगा कोर क्या अर्जुन है कोई, अर्जुन घबराए, वो हमारे प्राण वल्लभ से रथ हकवाता है स्वयं तो राजा बनके बैठता है और हमारे प्रभु से अपने घोड़े की मरहम पट्टी करता है काम करेगा और अगर इनको पता चल गया मैं ही अर्जुन हूँ तो ये महात्मा ठहरे हम क्षत्रिय हैं धनुष सब कुछ है लेकिन इस स्पिरिचुअल पॉवर के आगे हमारी पॉवर क्या काम देंगी, श्री कृष्ण मुस्कराते हुए पीछे पीछे अरे ठहरो अर्जुन क्या बात है अरे आगे जल्दी जल्दी आओ तो बताएँगे क्या बात है
- वेद की ऋचा भगवान के बहिरंग ऐश्वर्य को जानती है अंतरंग माधुर्य को नहीं
- आप साहब, गवर्नर साहब हैं कलक्टर साहब हैं कमिश्नर साहब हैं आप के ४ ५ मिले हैं आपके ५० फ्लैट हैं लेकिन अंतरंग बात को आपकी श्रीमति जानती है उससे कम माँ जानती है उससे कम सखा लोग जानते हैं दोस्त और उससे कम नौकर जानता है ऐसे ही वेद की ऋचाएं भगवान के अंतरंग स्वरुप को नहीं जानते बहिरंग स्वरुप को जानती है बहिरंग है ऐश्वर्य और अंतरंग है माधुर्य
- योगमाया असंभव कार्य करने में समर्थ है
- योगमाया भक्त को भुला देती है कि तुम दास हो और भगवान को भुला देती है कि तुम स्वामी हो तो उल्टा हो जाता है भक्त अपने को भगवान मानने लगता है भगवान अपने को भक्त मानने लगता है अन्यथा शबरी जूठे बेर खिलाने की सोच भी सकती है भला अरे शबरी को छोड़ दो आप लोग नहीं सोच सकते कूड़ा कबाड़ा जीव, हँ, ये विदुरानी केले के छिलके खिलाएगी, आप अपने संसारी रिश्तेदारों को जहाँ हल्का फुल्का प्यार हो या प्यार बिल्कुल न हो आपके घर में कोई गेस्ट आवे और आप केले का छिलका उसे खाने को दे ये आप कम से कम पागल होने के पहले तो नहीं कर सकते, हँ, और अपने प्राण वल्लभ के लिए ऐसा करें, शरीर वल्लभ नहीं ये तो माँ बाप बेटा पति शरीर वल्लभ है मैं प्राण वल्लभ की बात कर रहा हूँ लेकिन मजबूर है मोह हो गया, जब बुद्धि ही मोहित हो गई तो फिर क्या है वो जो चाहे सो करें मजबूर है फिर तो योगमाया के द्वारा
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