भगवान और महापुरुष का स्वरूप
- भगवान केवल कृपा करते हैं
- इतनी सारी कृपायें वो तब भी करें जब हम उसको रोज सबेरे से शाम तक शिशुपाल की तरह गाली दे तब भी करता, अरे तुम मेरे दोस्त हो दे लो गाली कोई बात नहीं है लेकिन हम तुम्हारे लिए सही काम ही करेंगे शिशुपाल के लिए पानी वही मिलेगा जो तुलसी सूर मीरा को मिलता है ऐसा नहीं है कि तुमने हमें गाली दी ऐ पानी तू पाइजन बन जा शिशुपाल के लिए इसको सबक मिले ऐसा नहीं या ऐ पानी शिशुपाल जब पीने लगे तो तुम सूख जाना आग बन जाना ये सब भगवान के संकल्प से खिलवाड़ है हो सकता है लेकिन किसी के लिए नहीं यहाँ तक की रावण ने इतना विरोध किया तो भगवान के जो डायरेक्ट सरवेंट हैं यमराज वगैरह उनको भी उसने दास बना लिया और भगवान कुछ नहीं बोले, की ये हमारा सरवेंट हैं इस पर हाथ लगते हो तुम यमराज १० २० नहीं हैं १ ब्रह्माण्ड में १ ही यमराज होता है उसको भी सरवेंट बना लिया तो भगवान इतना दयालु सखा हितैसी सखा नित्य साथ रहने वाला सखा है
- भगवान की हर चीज २ विरोधी धर्म वाली है
- आपके शरीर में बाल है नाई बाल काँट रहा है और आप सो गए ठाठ से, हुजूर उठिए बाल बन गया आपका, अच्छा अच्छा, ये जड़ वस्तु चेतन से पैदा हो रहा है
- १ पेड़ को ले लो, ये क्या है ? गुलाब, इसमें काँटे भी है फूल भी है, फूल को देखा अरे क्या बढ़िया फूल है पेड़ तो धन्य है ऐसे फूल बनाता है अरे अगर काँटा लग गया, अरे बेवकूफ पेड़ है हमारे तो काँटा लग गया खून निकल रहा है, अरे वही पेड़ तो है जिसकी आपने तारीफ की थी
- भगवान इंद्रिय मन बुद्धि में कर्म करने की शक्ति देता है
- आप लोग कहेंगे माइक बोल रहा है, माइक नहीं बोल रहा महाराज जी की रसना बोल रही है, रसना नहीं बोल रही ये सब तो बाहर की चीज है, एक से एक care-off चला जा रहा है हिसाब किताब, पॉवर हाउस तो कोई और है
- भगवान गुरु सहनशीलता की अंतिम पराकाष्ठा होते हैं
- भगवान कहते हैं हम तो भई समुद्र हैं, आओ ऊपर से बरसो, तुम भी आओ, नदियाँ सारी तुम भी आओ, बाढ़ नहीं आएगी हमारे अंदर, संतों को सबसे अधिक गाली मिलती है क्योंकि संतों के खिलाफ संसार में सुख मानने वालों की बहुत बड़ी पार्टी है कोई जाबन से गाली न दें, मन से देता है ये ऐसा क्यों करते हैं इन्होंने हमको डाँटा क्यों ? वो तो अपनेपन से डाँट रहा है की मेरा बेटा मेरे शरणागत है, इसमें गड़बड़ी आ रही है आप लोग उल्टा सोचते हैं कितने तो अबाउट टर्न होकर के चले जाते हैं
- भगवान में देह देही का भेद नहीं
- जैसे दिवाली के समय चीनी की मिठाई बिकती है चीनी का घोड़ा, चीनी का ऊँट, चीनी के हाथी, चीनी का साहब, चीनी की मेम तो वो चीनी की जो शकल है पूरी वो चाहे उसका सिर खाओ, चाहे पैर खाओ, चाहे पेट खाओ सब में १ सी मधुरता है १ सी मिठास है वो चाहे शूकरा अवतार हो चाहे नरसिंह चाहे राम कृष्ण सब १ रस क्योंकि वो सारा शरीर चीनी का बना है तो ऐसे ही श्याम सुंदर का शरीर आनन्द से बना है श्याम सुंदर की नासिका या चरण का नाखून सब १ सा है आनंद से बना है आनंद से spritual happines दिव्यानंद अनलिमिटेड अनंत मात्रा का आनंद जो भूमा सुख है उससे शरीर बना है उसको सच्चिदानंद भी कहते हैं
- भगवान सर्वव्यापक हैं
- जब मीरा विष पीती है तो जो व्याप्त भगवान विष के अंदर है वो विष पी लेता है और मीरा को विष का अनुभव नहीं होता, उस विष की मारक शक्ति को भगवान खिंच लेता है और उसको केवल १ तरल पदार्थ पीने का फल मिलता है
- किसी भी जल में शर्करा छोड़ देने से उस जल के कण कण में मिठास आ जाती है, नमक छोड़ देने से उसके कण कण में नमक व्याप्त हो जाता है ऐसे ही भगवान सर्वव्यापक हैं लेकिन उनका लाभ नहीं मिल रहा क्योंकि हमारी रसना उस व्याप्त नमक और चीनी का तो अनुभव कर लेती है क्योंकि वो मायिक है और नमक और चीनी भी मायिक है किन्तु भगवान दिव्य है अतएव उसको हमारी इंद्रिय मन धारण नहीं कर सकती
- जैसे तिल के १ १ कण में तेल व्याप्त है दूध के १ १ कण में घी व्याप्त है लकड़ी के १ १ परमाणु में अग्नि व्याप्त है फूल के १ १ अंश में खुशबू व्याप्त है ऐसे समस्त विश्व में, १ १ परमाणु में भगवान व्याप्त हैं
- जैसे चींटी नमक डालकर के मुँह बंद कर ले और चीनी के पहाड़ पर घूम कर लौटे और कहे हम जहाँ गए सब जगह नमक मिला, ऐसे ही भगवान सर्वव्यापक हैं फिर भी उसके आनंद का अनुभव जीव को नहीं क्योंकि जीव माया युक्त है
- भगवान अंतःकरण में बैठे ideas नोट करते हैं
- किसी घोर कंगाल गरीब भिखमंगे से कोई कहे तुम्हारे बाप का अरबों का सोना तुम्हारे घर में गड़ा है अरबों का और तुम भीख माँग रहे हो और उसको उसकी भूख है पैसे की भूख है ऐशो आराम चाहता है उसका महत्व समझता है पैसे का, कहाँ गड़ा है ये भी बताइए, यहाँ इस कमरे में इस जगह पर गड़ा हुआ है, अब वो खोद लिया खोद कर मालामाल हो गया तो उसी प्रकार हम अनंत कोटि कल्प तक अपने आप शास्त्र वेद को पढ़ कर कुछ भी नहीं समझ सकते इतने उलझते जायेंगे की पागल हो सकते हैं लेकिन समझ नहीं सकते, ऐसे ही भगवान सबके ह्रदय में बैठे हैं जिसने मान लिया वो आनन्दमय हो गया
- हम लोग BA MA पास कर ले अगर, दो कौड़ी की डिग्री और कोई कहे कहे की हम नौकरी चाहते हैं और नौकरी देने वाला कहे, की वो हमारे यहाँ लैट्रिंग साफ करने का काम है भई करोगे ? ऐन क्या कहा आपने मैं ग्रेजुएट हूँ मैं ऐसी सर्विस नहीं करता और हमारे सब गंदे ideas नोट करते हैं भगवान बिना कहे, बिना पे लिए और अच्छे भी नोट करते हैं, अगर अच्छे कर्मों को नोट न करेंगे तो आप इस जन्म में ५०% भगवान के पास पहुँच गए, अगले जन्म में फिर शुरू करेंगे A B C D, तो कभी भगवान के पास नहीं पहुँच सकते
- हाथ में लड्डू है वो नहीं खाता, अमृत का ग्रास है वो नहीं खाता, भूखा अपनी कोहनी चाट रहा है यानी भीतर भगवान बैठे हैं उसको realize नहीं कर रहा और बाहर भाग रहा है, बद्रिनारायण, रामेश्वरम, जगन्नाथ जी, वैष्णव देवी, तिरूपति देव, सब देवी देवता के पास भागे जा रहे हैं सब लोग, अरे वो साक्षात बैठा है ह्रदय में
- भगवान प्रायोजक करता जीव प्रयोज्य करता
- भिन्न भिन्न बीज से भिन्न भिन्न जातीय के वृक्ष आदि की उत्पत्ति होती है और उनके फूल, फल, स्वाद, गुण, आदि सभी भिन्न भिन्न होते हैं किन्तु केवल बीज के रहने से ही ये सब वृक्ष उत्पन्न नहीं हो सकते उसके लिए प्रयोजन है वृष्टि का, मेघ जल बरसाते हैं साधारणत: सभी जाति के बीज और वृक्षों के ऊपर, भिन्न भिन्न जातिय बीज या वृक्ष के लिए भिन्न भिन्न प्रकार की वर्षा नहीं होती, १ ही वर्षा के जल से भिन्न भिन्न जातिय वृक्ष एवं भिन्न भिन्न जातिय फूल, फल आदि उत्पन्न होते हैं सब वृक्षों की एवं उनके फूल, फल आदि की भिन्नता का हेतु उनका बीज ही है और केवल बीज होने से ही वृक्ष आदि उत्पन्न नहीं होते वर्षा की अपेक्षा रहती है तो वर्षा होने से भी वृक्ष आदि उत्पन्न नहीं हो सकते यदि बीज न रहे, उसी प्रकार पूर्व, पूर्व कर्मों के फल से मायाबद्ध जीव के चित्त में जो कर्म की वासना उत्पन्न होती है उसी वासना के अनुसार जीव जिन कर्मों के लिए प्रयास करता है उन कर्मों को करने की शक्ति मात्र परमेश्वर देता है जैसे मेघ जल दान करके बीज को अंकुरित करता है बीज के भीतर सूक्ष्म रूप से वृक्ष, वृक्ष के फूल, फल आदि हैं वृष्टि के जल से वो विकास प्राप्त करते हैं उसी प्रकार जीव का प्रयास या प्रयास के भी मूल में जो इच्छा है उसके भीतर, जीव के कर्म आदि सूक्ष्म रूप से विद्यमान है जैसे बीज में उसके फल, फूल आदि वही इच्छा कार्य रूप में विकास प्राप्त करती है, जीव कास्ट पत्थर आदि की तरह इच्छा प्रयास हीन वस्तु नहीं है यदि ऐसा होता तो जीव के सभी कर्मों के लिए परमेश्वर ही उत्तरदायी होते किंतु ऐसा नहीं है
- बड़े बड़े नगरों में तार के योग से बिजली इलेक्ट्रिसिटी विद्युत शक्ति सर्वत्र ही प्रसारित होती है किन्तु अपनी अपनी इच्छा के अनुसार उसके द्वारा कोई प्रकाश प्राप्त करता है अर्थात बल्ब जलाता है कोई पंखा चलाता है कोई पानी ऊपर को उठता है कोई और प्रकार के तमाम यंत्र चलाता है जिनके घर में जितनी विद्युत शक्ति है अथवा उनको जितनी आवश्यकता है जैसे मान लो किसी को केवल बल्ब जलाने का ही प्रबंध है अन्य कोई भी प्रबंध नहीं उनके घर में, वो शक्ति केवल बल्ब ही जलाती है पंखा या यंत्र आदि नहीं चलाती, तो जीव के लिए ईश्वर की शक्ति विद्युत के समान हैं और उसके विभिन्न कर्म बल्ब, पंखा चलाना आदि विद्युत शक्ति के विभिन्न कार्यों के समान है साधु कर्म में अथवा असाधु कर्म में लगना यह अनुग्रह और निग्रह है ये जीव की इच्छा या प्रयत्न है जीव जैसी इच्छा करता है या प्रयत्न करता है वैसा ही कर्म करता है कर्म करने की शक्ति मात्र परमेश्वर की देन है
- पर्वत से नदी रूप में जल आता है जीव उस जल का ये यथेक्छ भाव से व्यवहार करता है नदी के जल से कोई प्यास बुझाता है, कोई खाना बनाता है और कोई स्वयं डूब कर मर जाता है और कोई दूसरों को भी डुबा कर मार देता है इन सब कामों का उत्तरदायित्व नदी पर नहीं है इन कार्यों का फल भी नदी नहीं भोगती, परमेश्वर अन्तरयामी रूप से सभी जीवों के चित्त में विराजमान है अन्तरयामी रूप से ही वे जीव को अपने अपने प्रयत्न या इच्छा के अनुरूप कार्य में प्रवर्तित करते हैं
- भगवान जैसे सृष्टि पहले थी वैसे ही प्रकट कर देते हैं
- जैसे आप लोगों ने क्रिकेट का खेल देखा होगा टेस्ट मैच ५ दिन का होता है तो जिसने आज शाम को ५ बजे तक जितना रन बनाया है और जो आउट हो गया है इसी पोजिशन में कल शुरू होगा ऐसे ही प्रलय में जो जीव जिस योनी में जिस तरह से जिन कर्मों के अनुसार था वैसे ही प्रकट कर देते हैं भगवान अन्यथा तो भगवान के ऊपर मुकदमा दायर हो जाए १ को मनुष्य बनाया १ को मच्छर बनाया, अब मनुष्य में भी १ को सुंदर १ को कुरूप, १ को बड़े आदमी के घर पैदा किया १ को भिखारी के यहाँ ये सब कर्म के अनुसार होता है, जो लोग पूर्व जन्म नहीं मानते उनसे पूछो तुम्हारे भगवान ने घपड़ सपड़ क्यों किया
- भगवान ही आनंद है
- आपने समुद्र देखा होगा समुद्र, आपके पड़ोस में है, कोई आदमी कहता है समुद्र में पानी भरा है समुद्र में पानी भरा है, समुद्र माने कोई बर्तन है क्या समुद्र समुद्र माने समुद्र माने समुद्र माने पानी का ढेर, तो पानी के ढेर में पानी भरा है ये कौन सा वाक्य हुआ आपका, समुद्र में पानी भरा है, हम समुद्र से पानी ले आए, हम समुद्र के पानी में नहाये थे ये समुद्र का पानी क्या होता है, अरे समुद्र माने ही पानी है और समुद्र में क्या होता है, समुद्र माने जल निधि, अम्बुधि, बारिधि माने पानी का १ अनलिमिटेड बहुत बड़ा समूह, १ राशी, पानी की बड़ी लिमिट को, सबसे बड़ी लिमिट को समुद्र कहते है, तो सबसे बड़ी लिमिट जो पानी की है उसमें पानी रहता है ये क्या बात हुई उसी प्रकार आनंद सिंधु, आनंद सिंधु भगवान हैं उसमें आनंद क्या रहता है वो तो आनंद सिंधु हैं आनंद सिंधु में आनंद रहता है ये तो बोलना ही उसी प्रकार है जैसे कोई कहे जल निधि में जल रहता है, तो भगवान में आनंद ही आनंद है ये समझाने के लिए बोलते है, वस्तुत तो भगवान ही आनंद है आनंद ही भगवान है और जीव उसका अंश है इसलिए प्रत्येक जीव आनंद ही चाहता है ये उसका नेचुरल नेचर है
- १ अरब के आए थे, बीमार हुए १ घर में, तो वो घर वालों से पानी माँग रहे थे, 'आब आब आब' कह रहे थे, तो लोगों ने कहा की हाँ मैं आ गया, आब आब क्या कह रहे हो बोलो ? कहे आब आब, अरे मैं आ गया हूँ बोलो न क्या कह रहे हो ? आब आब आब आब, मर गया, आब माने पानी, वो हम समझे ही नहीं 'आब' माने पानी होता है तो हम आनंद आनंद बोल रहे हैं, कैसे मिले, क्या करें, ४२० करें तब भी नहीं मिलता, पाप किए इतने सारे तब भी नहीं मिला, पुण्य किए इतने सारे तब भी नहीं मिला, अच्छे कर्म से स्वर्ग मिल गया बस वो भी दुःख और बुरा किए तो नरक मिला वो भी दुःख, क्या करें ? श्रीकृष्ण की भक्ति करो, फिर श्रीकृष्ण का नाम लिया, अरे वही आनंद है रे, ऐसे भोलेभाले हैं हम लोग
- भगवान बुद्धि से परे हैं
- अरे १० हजार गधे हैं उनमें १ खच्चर है वो टॉप कर गया, १० हजार गधों के बीच में १ खच्चर है तो खच्चर कहता है मैं टॉप करता हूँ, टॉप करने का मतलब तो ये है कि तमाम मूर्ख है उसे जो सबसे कम मूर्ख है वो कहता है हम बुद्धि में टॉप करते हैं, हाँ, टॉप शब्द का ये अर्थ नहीं होता की परिपूर्ण ज्ञान उसका है
- अगर यूनिवर्सिटी में सब लड़के ५० परसेंट से नीचे है तो ५० परसेंट नंबर जिसको मिला है वो टॉप का विद्यार्थी कहलाएगा, नंबर कितने परसेंट है ५० परसेंट, और आप टॉप किए है ? हाँ, फर्स्ट डिवीजन भी तो नहीं है क्या टॉप किए, हँ, तो ब्रजधाम को कोई नहीं समझ सकता वो बुद्धि से परे है
- जब इंडिया का कानून रशिया में लागू नहीं हो सकता तो हमारे मैटीरियल आइडिया स्पिरिचुअल जगत में ले जाना ही अपराध है उसकी प्रवेश ही नहीं वहाँ पर, मनुष्य का दिमाग है कितना बड़ा, वो अपने लेवल से देखता है यद्यपि जानता है की हमको अपना दिमाग लगाना नहीं चाहिए भगवत विषय में फिर भी लगता है
- १ हजार गधों की बुद्धि इकट्ठा हो के १ मनुष्य की बुद्धि के बराबर नहीं हो सकती, तुम्हें जो अनुभव होगा वही तो तुम्हारी कॉमन सेंस होगी और मटेरियल त्रिगुणात्मक अनुभव है तुम्हारा, तो कॉमन सेंस से कैसे दिव्य आनंद का निर्णय करोगे
- केवल १ ब्रह्म ही है और कुछ नहीं
- ये मिट्टी है ये कारण है और इसकी सुराही बन गई ये कार्य हो गया रीजन क्या है मिट्टी और उसका कार्य क्या है सुराही, सुराही फूट गई तो फिर मिट्टी बन गई वो फिर सुराही बन गई फिर मिट्टी बन गई, ये करोड़ो मकान जो आप लोग देखते हैं मंदिर देखते हैं मस्जिद देखते हैं गिरजाघर देखते हैं मयखाने देखते हैं ये सब क्या है अनंत बार सृष्टी में वहीं मयखाना बना फिर वहीं मंदिर बना फिर वहीं मस्जिद बनी फिर वहीं बड़े बड़े बंगले बने फ्लैट्स बने ये सब ऐसा ही बदलता रहता है पृथ्वी वही है तो कारण कार्य बन जाता है इसी का नाम सृष्टि फिर कार्य कारण बन गया तो योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम्(भाग २-९-३२) १ भगवान बचा इसलिए बोला जाता है कि भगवान ही सृष्टि बन गया और फिर सृष्टि भगवान में लीन हो गयी फिर १ भगवान बचा केवल, १ ब्रह्म ही परसनैलिटी है और बाँकी कुछ नहीं सब उसी के अंदर का सामान है
- जैसे आम हैं तो हम हर १ को आम कह देते हैं यह क्या है ? फल हैं अरे फल तो देख रहे हैं अंधे हैं क्या ? अरे है क्या ये ? आम है आम, अरे ये किसका पेड़ है ? आम आम, ये किस का पत्ता ले आये तुम ? आम आम, हम सबको आम बोल देते हैं ऐसे ही बोल दिया गया भगवान जीव और माया तीनों को ब्रह्म कह दिया गया क्योंकि शक्ति शक्तिमान में भेदाभेद संबंध होता है कुछ मात्रा में भेद, कुछ मात्रा में अभेद
- १ भगवान के अनेक अभिन्न स्वरूप
- मान लो जोई जज है वो आपके घर में आया या रास्ते में कहीं मिल गया और उसने कहा जज साहब वो मुकदमा है आपके यहाँ उसमें ऐसा ऐसा है, देखो भई तुमको जो कुछ भी कहना है कोर्ट में बोलो, जज तो वही है लेकिन वो कहता है ये तुम्हारा बयान न मैं सुनूँगा, न समझूँगा, न मानूँगा, कोर्ट में बोलो, उसी प्रकार ब्रह्म/भगवान २ ४ नहीं हुआ करता, ब्रह्म में शक्तियाँ सब रहती है लेकिन उनका प्राकट्य नहीं होता
- जैसे संसार में आपका पिता है पति है ऑफिस में बैठता है तो उसका स्वरूप कुछ और ही होता है गंभीर स्वरुप सीरियस लेकिन जब वो घर आता है और अपनी बीवी से बीवी मानकर व्यवहार करता है अपने बच्चे से बच्चा मानकर व्यवहार करता है अपनी माँ से उसको माँ मान कर व्यवहार करता है तो ये रस कुछ और ही होता है ऑफिस वाले रूप से तो वो बिचारा बोर हो जाता है अरे दिन भर वहाँ एक्टिंग करके सीरीएस बैठे रहे, क्या करते कलेक्टर है कमिशनर हैं गवर्नर हैं पोस्ट के अनुसार व्यवहार करना पड़ता है, पड़ता है जबरदस्ती और जो अपने घर में आया तो घर में भी थोड़ा अंतर है जैसे नौकर के सामने खड़ा हुआ ठीक है तैहमत मारकर खड़ा हो कर बात कर रहा है लेकिन फिर भी दूरी है दोस्त से बात कर रहा है ड्राइंग रूम में गले में हाथ डाल कर और नजदीक आ गया लेकिन फिर भी कुछ दूरी है और माँ से बात कर रहा है तो और नजदीक आ गया लेकिन फिर भी कुछ दूरी है और जब स्त्री पति आपस में बात करते हैं तो और नजदीक आ गए लेकिन वहाँ भी दूरी है बहुत सी बातें पति स्त्री से छुपाता है स्त्री पति से छुपाती है एक्टिंग में १ दुसरे की बात मानकर संसार चलाते हैं किसी प्रकार उससे भी अंतरंग हमारा शरीर है उससे भी अंतरंग हमारा मन है उससे भी अंतरंग हमारी बुद्धि है उससे भी अंतरंग हमारी आत्मा है उससे भी अंतरंग आत्मा की आत्मा परमात्मा है वहाँ तक आपको जाना है
- जैसे पानी बर्फ भाप तीनों १ चीज है लेकिन काम अलग अलग है, पानी में ठंडक अधिक हुई तो बर्फ बन गया, पानी में गर्मी अधिक हुई तो भाप बन गया, १ होते हुए भी पानी बर्फ और भाप की क्रियाओं, उनके प्रयोग में, उनके गुण में अंतर है, ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा और भगवान तीनों १ होते हुए भी तीनों के स्वरूप में अंतर है, निर्गुण निर्विशेष निराकार ब्रह्म में सबसे कम शक्ति प्रकट, अपनी सत्ता की रक्षा और स्वरूपानंद, परमात्मा सगुण सरकार में सब शक्ति प्रकट, नाम रूप गुण धाम, लीला और परिकर नहीं, सगुण साकार भगवान में सब शक्ति प्रकार लीला और परिकर भी
- जैसे आम को देखा, दशरी आम है, सूंघा, चूसा, ३ काम हो गए न, दूध को देखा, छुआ, पिया, ऐसे ब्रह्म का वर्क अलग, परमात्मा का अलग, भगवान का अलग
- जैसे जब कोई MA का प्रोफेसर पढ़ा रहा है तो पूरी योग्यता प्रकट होती है, हाई स्कूल के बच्चो को पढ़ा रहा है तो हाई स्कूल के क्लास में उतरेगा, अपने बच्चे को क ख ग पढ़ा रहा है तो और नीचे उतरना पड़ेगा, ऐसे ही भगवान के समस्त अवतार परिपूर्ण हैं उनके टुकड़े नहीं हुआ करते, जिस अवतार में जितनी शक्ति रस प्रकट करना है उतना ही प्रकट होता है
- भगवान जीव में व्याप्त हैं
- गले में कंठी पहने हो और पूछता है मेरी कंठी देखा है आपने ? तो किसी ने कहा श्रीमान जी कंठी तो आपके गले में है, अरे गले में है, वो दिखाई तो पड़ती नहीं आँख से जो गले में कंठी है भ्रम हो गया, अब फिर गले में कंठी को देखने के लिए सिर झुकना पड़ेगा तब भी नहीं दिखाई पड़ेगी, भगवान तो आत्मा के अंदर बैठे हैं, मुँह बंद किए है पानी में डूबे है, प्यासे हैं लेकिन मुँह बंद कर रखा है जोर से की १ बूँद पानी अंदर जाने न पावे
- माया के गवर्नर भगवान
- देखो ये हाथ है इसमें हथौड़ा रख लो और किसी को मारो, तो मारने वाला जितना बड़ा है उनका हथौड़ा उतना ही बड़ा है लेकिन १ ने मारा तो लोहा २ टुकड़ा हो गया और १ ने मारा तो पिट पिट, कुछ पता ही नहीं चला, क्यों ? क्योंकि मारने वाले का बल अलग अलग है तो ये माया भगवान के द्वारा गवर्न होती है जड़ है चेतन हो गई है, ऐनऽऽ, ये देखो तौलिया चेतन हो गई हिलने लगी, ये तो हाथ ने हिलाया, हाँ हाँ हाथ ही ने हिलाया लेकिन हिल रही है न, वो हथौड़ी ने मारा, हाँ, उससे आप मर गए, हाँ, तो हथौड़ी से मर गए ? अरे नहीं साहब हथौड़ी का बेचारी मारती, वो हाथ से हथौड़ी मारी गई, वो हाथ बिचारा क्या मारता, वो आत्मा है अंदर उसने ऑर्डर दिया हाथ को मारो, वो निकल गई अब वो हाथ पड़ा है
- आनंद अनुभव गम्य है
- १ नीम के कीड़े को कोई भी 'मीठा' क्या होता है ये बोध नहीं करा सकता क्योंकि शब्द की गति वहाँ तक नहीं है वो अनुभव गम्य विषय है ऐसे ही जीव जिसको मायिक सुख के अलावा कुछ अनुभव नहीं वो नहीं समझ सकता की दिव्यानन्द क्या है, भगवान क्या
- १ महापुरुष और १ मायाबद्ध रसगुल्ला खा रहे है दोनों वैसे ही मुँह बना रहे हैं, तीसरा व्यक्ति दोनों को देख कर रसगुल्लानंदी कहता है, लेकिन महापुरुष को रसगुल्ला में व्याप्त ब्रह्मानंद मिला था और मायाबद्ध को रसगुल्ला में व्याप्त चीनी का रस मिला था, आनंद के भोग में अंतर है बाहर देखने का अंतर नहीं है वो अनुभव गम्य विषय है, अभी हमने केवल माया को देखा, सुना, सूंघा, रस लिया, स्पर्श किया, सोचा, जाना और महापुरुषों ने इसमें व्याप्त जो ब्रह्म है उसको देखा, सुना, सूंघा, रस लिया, स्पर्श किया, सोचा, जाना, उसका अनुभव कर रहे हैं
- भगवन्नाम अशुद्ध को शुद्ध कर देगा
- गौरांग महाप्रभु के जमाने में १ भक्त इतना भगवन्नाम लेता था कि जब वो लघुशंका के लिए जाए दीर्घशंका के लिए जाए लैटरिंग बाथरूम के लिए तो उसे रोका न जाए जबान से ‘हरे राम हरे राम’ तो वो अपने मुँह को दबा कर के तब लैटरिंग जाए बाथरूम जाए तो लोगों ने शिकायत किया महाप्रभु जी से की महाराज जी ये ऐसा ऐसा करता है तो उसने कहा हँ महाराज जी बात ये है की वो मुझसे रहा ही नहीं जाता और निकल जाता है और मैं ब्राह्मण हूँ लघुशंका करते समय दीर्घशंका करते समय तो वैसे भी शब्द नहीं बोलना चाहिए शास्त्र के अनुसार फिर भगवान का नाम लेना, तो उसने कहा की नई नई नई तुम किसी की मत सुनो और मुँह बंद न किया करो बोलते रहो भगवन्नाम भगवन्नाम अशुद्ध को शुद्ध कर देगा अशुद्ध वस्तु भगवन्नाम को अशुद्ध नहीं कर सकती गंगा जी में गन्दा नाला जायेगा तो गंगा जी बन जाएगा, गंगा जी को गन्दा नाला नहीं बना देगा वो, अग्नि में कोई चीज जाएगी तो अग्नि स्वरुप बन जाएगी वो वस्तु अग्नि को गंदा नहीं कर सकता कोई, ये मटीरियल वस्तुओं का ये हाल है तो फिर भगवान को कौन गन्दा करने वाला है वो तो सर्वव्यापक है कहाँ गन्दा हुआ वो १ १ पाखाने के १ १ परमाणु में व्याप्त है वही श्रीकृष्ण गंदा हो गया क्या उससे घोर राक्षसों के हृदय बैठा हुआ नोट कर रहा है गन्दा हो गया क्या वो इसीलिए तो उसने कोई नियम नहीं बनाया देश का
- परमात्मा जीवात्मा का आलिंगन करते हैं
- जैसे घोर कामी घोर कामिनी का आलिंगन करता है और उसके सुख में न उसको कामिनी की याद रहती है और न उसको अपने प्रियतम की याद रहती है न भीतर की कोई फीलिंग न बाहर की कोई फ़ीलिंग, शून्य जड़ हो जाता है, इंद्रिय मन बुद्धि सब जड़ हो जाती है ऐसे ही परमात्मा जीवात्मा का गहरी नींद में आलिंगन करते हैं तो होता है
- भगवान से जितना प्यार करो उतना उनको करना पड़ता है
- १ कबीर दास थे वो गए रामानंद के पास, आपके शिष्य बनना चाहते हैं उन्होंने कहा कि तू हिंदू है की मुसलमान है क्या है ? कहाँ से पड़ा हुआ मिल गया था जाती पाती का भरोसा नहीं पता नहीं है और मैं शिष्य बनना चाहता हूँ, उसने जाकर के अकेले में सोचा की रामानंद ने लेक्चर में कहा था कि भगवान और महापुरुष ये २ पर्सनैलिटी ऐसी है कि इनसे जितना प्यार करोगे उतना इनको करना पड़ेगा, तो अगर हम इनको गुरु मान कर प्यार करेंगे तो उनको शिष्य मानना पड़ेगा, हमारी जाति पाती नहीं पूछेंगे, अहा, महापुरुष हुए हैं कबीरदास, रामानंद को ह्रदय से लगना पड़ा, तो भगवान के बारे में ये डाउट करनी नहीं है बुद्धि नहीं लगाना है की वो हमसे प्यार करते हैं की नहीं
- भगवान गुरु समर्थ है उनकी नकल नहीं करना है
- शंकर जी हालाहल पी गये और नीलकण्ठ की डिग्री मिल गयी लेकिन तुम अगर मामूली पॉयज़न, संखिया, अफीम भी ज्यादा मात्रा में खा लोगे तो ०/१०० हो जाओगे। तुमको नकल नहीं करना।
- एक तहसीलदार है वो डी. एम. की कुर्सी पर जाकर नहीं बैठ जायगा, सस्पैण्ड कर देगा फिर वो। यहाँ कैसे हमारी कुर्सी पर बैठे ? साहब ! आप भी तो हमारी कुर्सी पर बैठे थे। मैं बैठ सकता हूँ तेरी कुर्सी पर, तू कैसे बैठ सकता है मेरी कुर्सी पर ?
- आप लोग जो बड़े विद्वान् हैं वो मूर्खता की एक्टिंग कर सकते हैं। जैसे- आपको बोलना आता है, भाषा ज्ञान है लेकिन आप मूर्खता की एक्टिंग करना चाहते हैं कहीं पर, तो आप कह देते हैं- मैं जाती थी, उसने बोली थी, ऐसी अण्डबण्ड भाषा में बोलो, तो लोग कहेंगे ये तो घोर मूर्ख हैं जी। डोन्ट टॉक को बोलो डीन्ट टॉक। लोग समझ लेंगे कि ये बेवकूफ है पढ़ा लिखा नहीं है। यानी समझदार नासमझ की एक्टिंग कर सकता है तो समर्थ असमर्थ की एक्टिंग करते हैं, किया है। सब भगवान् के अवतार और महापुरुषों ने किया है ।
- आपको मकान बनवाने की इच्छा है ? हाँ, मकान बनवाने की बड़ी इच्छा है। अच्छा तो फिर नक्शा वक्शा बनवा रहे हो ? हाँ हाँ जा रहे हैं बनवाने। तो फिर तुमको नक्शा दे दें बना बनाया बढ़िया। वाइसराय भवन का नक्शा हमारे पास है। अरे क्या बात करते हो, पच्चीस लाख रुपया तो हमारे पास है ही नहीं और वाइसराय भवन का नक्शा हमको दे रहे हैं आप। अरे भाई पच्चीस हजार में मकान बन जाये हमें तो ऐसा नक्शा बनवाना है। हाँ हम उस नक्शे का क्या उपयोग कर सकेंगे क्योंकि हमारे पास पैसा नहीं है, सामर्थ्य नहीं, शक्ति नहीं। तो जो अनन्त शक्तिमान हैं भगवान् या सन्त उनकी नक़ल करने हम जायेंगे तो क्या गति होगी। हम तो संसार में ही अपने से आगे वाले की नक़ल नहीं कर सकते। अगर करते हैं तो दण्ड मिलता है।
- गवर्नर का चपरासी गले में हाथ डाल देता है, तो सर्विस से निकाल दिया जाता है। तुम नौकर हो सखा नहीं हो, गले में हाथ डाल दिया, दण्ड है, अपराध किया तुमने। तो संसार में हम बड़े चालाक हैं, समझदार हैं, अपने क्लास के अनुसार ही चलते हैं।
- गाउन पहना दो किसी अँगूठा छाप को और खड़ा कर दो हाईकोर्ट में। साहब ! आप हमारी वकालत कीजिये। अरे ! यह क्या वकालत करेगा बेचारा, उसको क ख ग घ नहीं आता। नासमझ समझदार की एक्टिंग कैसे करेगा ?
- कोई ऐसा साहस नहीं करता कि एल.एल.बी. नहीं पास किया और साइनबोर्ड लगा दे एडवोकेट हैं आओ हमारे यहाँ सब लोग। एम.बी.बी.एस. नहीं हुआ, कोई डिग्री नहीं लिया और लिख दिया हम डॉक्टर हैं, आ जाओ हमारे पास क्योंकि वो जानता है ऐसा करना जुर्म है, दण्ड मिलेगा, सजा मिलेगी और फिर इतनी बड़ी नक़ल की बात सोचना, जहाँ सरस्वती बृहस्पति भी नहीं जा सकते, जहाँ इन्द्र, वरुण, कुबेर और यमराज की भी पर्सनैलिटी फेल हो जाती हैं। वो सीट है महापुरुष और भगवान् की। उनकी नक़ल नहीं करना चाहिये इसलिये शास्त्रों में यह कहा है
- पिताजी तो कभी नहीं जाते यूनिवर्सिटी पढ़ने और हमसे कहते हैं जाओ तुम्हारी अटेंडेंस कम हो जाएगी, अरे पिताजी तो यूनिसर्सिटी पास कर चुके हैं गधे वो क्या जाएँगे गधे, अरे तुझको पढ़ना है तू जाया कर, कब तू यूनिवर्सिटी पास कर जाएगा न तब तू भी नहीं जाना कभी कोई नहीं कहेगा
- अग्नि सब कुछ खा लेती है उसमें पाख़ाना डाल दो, मुर्दा डाल दो, जिन्दा डाल दो, सोना चाँदी डाल दो, हीरा मोती डाल दो, लक्कड़ पत्थर डाल दो, अग्नि सबसे प्यार करती है सबको अपना स्वरूप प्रदान करती है वो गंदी नहीं होती अपनी पर्सनालिटी में बनी रहती है और सब कुछ खा जाती है, सर्वभुक्त उसका नाम है
- गंगा जी में हज़ारों गंदे नाले बह कर जाते हैं और आप लोग आचमन लेते हैं वो जीतने नाले गंगा जी में गए सब गंगा जी बन गए, गंगा जी गंदी नहीं हुई
- जैसे कोई बीज होता है गेहूँ चना इसका लावा बन जाए, भाड़ में डाल करके चबेना बन जाए, तो उस भुने हुए चने को, भुने हुए गेहूँ को फिर आप खेत में डाल दे तो अंकुर नहीं पैदा होगा, उसकी जो बीज शक्ति थी वो समाप्त हो चुकी, ईश्वर लोग समर्थ हैं मायातीत हैं इनके व्यवहार मत देखो, ये धर्म अधर्म इनको नहीं बाँध सकता
- संसारी आदमियों की एक्टिंग कर रहे हैं भगवान् और सारे सन्त भी। हनुमान जी राम से पूछ रहे हैं- आप कौन हैं? और राम हनुमान जी से पूछते हैं- आप कौन हैं? हाँ, जरा सोचिये, ये सुप्रीम पावर का यह हाल है। तो मायाबद्ध मायातीत का अनुकरण नहीं कर सकता, मायातीत मायिक का अनुकरण कर सकता है।
- कोई कहे राम सीता के लिए रो रहे हैं नकल कर लें हम भी, खूब स्त्री से प्यार कर लें, अच्छा और अगर कहीं कोई चुड़ैल तुम्हारी स्त्री बनकर बैठ जाए पेड़ के नीचे और तुम देखो, अरे आ गई तुम, तुम नहीं पहचान सकते की ये पार्वती है, राम ने तो पहचान लिया वो सर्वज्ञ हैं क्या तुम सर्वज्ञ हो ? नहीं, तो फिर नकल नहीं कर सकते तुम
- देखो १ आदमी १०० सीढ़ियाँ नीचे उतरता है ५०० सीढ़ियाँ नीचे उतरता है वैष्णव देवी आप लोग गये हों तमाम सारे पहाड़ो पर सीढ़ियाँ बनी हुई है, तो १ आदमी ऊपर की सीढ़ी पर है उसने देखा की नीचे वाले आदमी ने १ सीढ़ी नीचे पैर रखा और ज़मीन पर चलने लगा तो उसने कहा की मैं इतनी सारी सीढ़ीयाँ क्यों उतरूँ सीधे मैं भी पैर रख दूँ जहाँ वो खड़ा है तो बताओ पैर वैर तो नहीं जाएगा सिर पहले जाएगा और हो सकता है सिर जाने से पहले प्राण पखेरू भी चले जाए
- भगवान गुरु समर्थ है उनकी नकल नहीं करना हैं
- १ नट सौ फुट की ऊँचाई पर रस्सी बांध कर उस पर चल रहा है नीचे बैठा हुआ १ पहलवान देख रहा है है ये दुबला पतला चल सकता है तो मैं भी चल सकता हूँ और सौ फुट की रस्सी बांध के वो भी खड़ा हुआ और गिरा हड्डी पसली सब १ हो गयी, तो कोई ऐसा नहीं करता अरे भाई इन्होंने बड़ा अभ्यास किया होगा कई साल बचपन से तब ऐसा कर रहा है हम ऐसा नहीं करने जाएंगे, तो तुम संसार में अपने से बड़े योग्य की नकल नहीं कर सकते और महापुरुष भगवान की आचरण का नकल सोचे भी तो बेमौत मरे
- भगवान को अपने उपास्य को वर देना पड़ता है
- १ राक्षस ने भस्मासुर ने शंकर जी से वर मांगा जिसके सिर पर हाथ रखे वो भस्म हो जाए, उन्होने कहा जाओ बेटा दिया और उसके वर मांगने की मंशा थी पार्वती को हड़प ले, तो शंकर जी के ऊपर सिर पर हाथ धर देंगे वो भस्म हो जायेंगे तो पार्वती को ले उड़ेंगे, ऐसे ऐसे उसने बड़ी तीव्र भक्ति तपस्या की और शंकर जी भोले भाले दे दिया वर, अब उसने खदेड़ लिया शंकर जी को, अरे क्या कर रहा है ? क्या कर रहा हूँ मैं देख रहा हूँ तुम्हारा वरदान सही है की गलत है, अरे तो और किसी पर कर हमारे ऊपर क्यों कर रहा है, तो शंकर जी भागे श्री कृष्ण के पास महाराज बचाओ, क्या बात है ? उन्होंने कहा वो वरदान दिया सिर पर हाथ रखने से वो भस्म हो जायेगा, तब भगवान ने मोहिनी का रूप बनाया, कहाँ भंगेड़ी के चक्कर में आ गया तू, वो तो भांग पीते हैं धतूरा पीते हैं नशे में रहते हैं ऐसे बोल देते हैं अगर तुझको हमारी बात पर विश्वास नहीं है तो सिर पे हाथ रख के देख और वो उसमें आसक्त तो था ही, रखा अपने सिर पर जल्दबाजी में भस्म हो गया, तब शंकर जी की जान बची है
- महापुरुष कृतकृत्य होते हैं
- देखो मक्खन जब पकता है तो आवाज करता है पट पट पट पट पट पट पट पट चुप हो गया क्यों चुप हो गया पक गया अब नहीं बोलेगा, अब टेम्परेचर दिए जाओ वो घी बन गया अब नहीं बोलेगा तो या तो चुप रहेगा या अगर बोलेगा तो कब बोलेगा, जब उबलते हुए उस घी में कच्चे आटे की रोटी पड़ेगी, जिसको आप लोग पूड़ी कहते है जब रोटी पड़ी तो फिर बोला, अपने लिए नहीं बोला उस रोटी को पकाकर पूड़ी बनाने के लिए बोला, ओ अपने लिए तो कुछ है ही नहीं वो तो कृत कृत हो चूका, करना कर चूका अब क्या करना है उसको, चुप, परिपूर्ण हो गया
- भोज पत्र का पेड़ जैसे होता है वो पूरा छिलका उतारते जाओ कागज उसका और पेड़ खत्म ये स्वभाव होता है भगवान महापुरुष का, वो अपना सर्वस्व दान कर देते है उनको अपना कुछ प्राप्तवय है ही नहीं क्या करें बिचारे या तो पत्थर सरीके पड़े रहे और अगर कुछ करेंगे तो अपने लिए कर ही नहीं सकते
- जैसे ये हमारी पृथ्वी है इस पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है कोई चीज अगर आप ऊपर से छोड़ दें तो पृथ्वी खींच लेती है लेकिन ये ऊँचाई की १ लिमिट है जहाँ तक की वस्तु को पृथ्वी खींच सकती है अगर उस ऊँचाई की लिमिट के आगे चली जाए वस्तु तो पृथ्वी नहीं खींच सकती उसी प्रकार जिसने माया को अतिक्रमण कर लिया, माया से परे हो गया, भगवान को छू लिया, उसके लिए ये शास्त्र वेद के कानून फिर लागू नहीं होते वे स्वेच्छा चारी होते हैं स्वेच्छाचारी स्वैरं चरन्ति उनको न पाप छू सकता है न पुन्य छू सकता है दोनों नहीं छू सकते वो दोनों से अलग हो गए, जीरो में जीरो घटाओ तो जीरो, जीरो में जीरो जोड़ तो जीरो, जीरो में गुना करो जीरो से तो जीरो, जीरो में भाग दो जीरो से तो जीरो, चाहे अनंत से गुणा करो जीरो में तो भी जीरो
- जैसे लावा होता है चना लइया आप लोग खाते हैं भुना हुआ तो चने को जब भाड़ में डाल दिया और वो लावा बन गया चबेना बन गया तो फिर उसको खेत में डालो उसमें सुपर फास्फेट अमोनियम सल्फेट और जितने भी खादें हैं वो सब दो और पानी दो सूरज की किरण दो हवा दो दुनिया भर के साइंस उसमें लगा दो वो बीज पेड़ नहीं बनेगा क्योंकि बीज शक्ति नष्ट हो गयी उसी प्रकार महापुरुष के द्वारा किए हुए कर्म का बंधन महापुरुष को नहीं होता क्योंकि महापुरुष का वर्क भगवान स्वयं करते हैं महापुरुष कुछ करता ही नहीं
- महापुरुष में पूर्ण वैराग्य होता है
- १ बार १ देवी में प्रह्लाद के लड़के की आसक्ति हो गई और प्रह्लाद के गुरु के पुत्र की भी आसक्ति हो गयी उसी लड़की में, अब दोनों लड़ गए, १ तो राजकुमार, सारी पृथ्वी के राजा थे प्रह्लाद उनका लड़का और १ उनके गुरु का लड़का, अब उन दोनों ने कहा की भई, हम दोनों में जो बड़ा हो उसको ये लड़की मिले आपस में समझौता हो गया है और १ बात और अगर हमारी बात सही निकली, प्रह्लाद का लड़का कहता है तो तुमको फांसी दी जाएगी, अगर ये सिद्ध हुआ के मैं बड़ा हूँ क्योंकि राज पुत्र हूँ और अगर तुम बड़े हो ये सिद्ध हुआ तो मुझे फांसी पर लटका देना, इतनी भयानक शर्त १ लड़की के पीछे लेकिन फैसला कौन करेगा ? तो प्रह्लाद के लड़के ने विरोचन से कहा हमारे पिता जी करेंगे वो राजा है तुमको उनका फैसला मंजूर है ? राजकुमार की इस बात को सुनकर गुरु पुत्र ने कहा बिल्कुल मंजूर है हमारे पिता ने कहा है प्रह्लाद कभी अन्याय नहीं कर सकता उसका कहीं अटैचमेंट है ही नहीं, तुम ये तो नहीं कहोगे कि तुम उनके बेटे हो इसलिए तुम्हारे पक्ष में फैसला कर दिया ? नहीं नहीं कभी नहीं, हम सोच भी नहीं सकते, चलो मुकदमा पेश हुआ, प्रह्लाद ने कहा हमारे गुरु जी हमसे पूज्य हैं इसलिए हमारे बेटा विरोचन गुरू के पुत्र से हार गया, गुरु पुत्र बड़ा है हमारे बेटे से है एऽ पकड़ लो विरोचन को लटका दो फांसी पर, ऑर्डर, मुस्कराते हुए, इकलौता बेटा, राजा का बेटा, फिर आये आगे गुरु पुत्र उन्होंने कहा नंबर २ क्वेश्चन, तुम हमसे बड़े हो के मैं तुमसे बड़ा हूँ ? प्रह्लाद से पूछा, उसने कहा की नहीं आप बड़े हैं हम तो राक्षस के पुत्र हैं हिरण्यकश्यपु के, आप ब्राह्मण पुत्र, गुरु पुत्र हैं आप बड़े हैं उन्होंने कहा मेरी आज्ञा मानना होगा, उन्होंने कहा बिल्कुल, छोड़ दो बेटे को फाँसी मत दो, एऽ छोड़ दो, दोनों वाक्य बोलते समय १ सी स्थिति भगवत प्राप्ति के बाद ऐसा होता है
- महापुरुष और भगवान को अपनी बुद्धि से पहचाना असंभव
- ३ लड़कियाँ जा रही थीं स्त्रियाँ, १ लड़की थी, १ उसकी माँ थी और १ उसकी माँ थी बुढ़िया, १ बाबा जी जा रहे थे उन्होंने अपने शिष्य से कहा ऐ देख, अगली न पिछली कुर्बान जाऊँ बिचली, यानी अगली तो बुढ़िया है बेकार है और जो सबसे पीछे है वो छोटी सी बच्ची है ५ साल की, ये जो बीच वाली है न ये बढ़िया है, शिष्य को ये बात सुनकर बात ठनका की आज गुरुजी को क्या हो गया है ? और उन तीनों ने भी सुन लिया, ये बाबा जी ने जो ये कहा, वो जिस गुरु के पास जातें थे तो वहाँ वो तीनों भी जाती थी, उन्होंने कहा चलो इनके गुरु के पास आज खबर लेंगे इनकी, उन्होंने जाकर गुरुजी से कहा, गुरुजी ने बुलाया और कहा की क्यों रे तूने क्या कहा था ? हमने तो गुरुजी ये कहा था, सच सच बोल दिया, क्यों कहा था ऐसा ? गुरुजी बात ये है की जब हम ५० साल के ऊपर हो गए तब आपके पास आया था, मैं ऐसा मूर्ख था की अगर पहले ही समझ जाता तो ये शादी ब्याह ये सब बवाल के चक्कर में न पड़ता, तो बीच की उमर जो है वो बहुत अच्छी होती है भगवत प्राप्ति के लिए, साधना के लिए क्योंकि छोटे बच्चे तो कुछ समझ नहीं सकते
- पार्वती जी, गरुड़ जी, अर्जुन, ब्रह्मा, जय विजय, सनकादिक ये सब अज्ञान की एक्टिंग करते हैं हनुमान जी, अर्जुन, परशुराम, लक्ष्मण क्रोध की एक्टिंग करके हत्याएँ कर रहे हैं
- महापुरुष भगवान की वाणी कोई नहीं समझ सकता उनके इशारे क्या हैं
- १ बार ब्रह्मा ने अपने बच्चों के लिए हमारे कल्याण के उपदेश दिया, देवता मानव दानव देखा तीनों पार्टियों की ओर और कहा द द द हो गया, तीनों ने सोचा क्या मतलब होगा इसका तो अपने अपने गुरु के पास गए, देवता लोग बृहस्पति के पास गए, बृहस्पति ने बताया देवताओं को कहा है 'दम' करो दम, दम माने तुम्हारे यहाँ ऐशो आराम के सामान आसानी से मिल जाते हैं तुम लोग बहुत विषयी हो गए हो तो इंद्रियों पर कंट्रोल करो, दम मन पर निग्रह करने को दम, दानव लोग शुक्राचार्य के पास गए उन्होंने कहा दानव लोग बड़े निर्दयी होते हैं तुमको 'दया' करने को कहा है कि तुम दया करो दया भाव पैदा करो, तुम दुसरे को सताओगे नहीं तुम्हारा कल्याण हो जायगा और मनुष्यों से कहा 'दान' करो तुम्हारी जो भी हैसियत है उसके अनुसार दान करो, दान करेगा कल्याण तुम्हारा, कलयुग में दान ही १ मात्र तुम्हारे कल्याण का साधन है
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