मन का स्वरूप
- मन का स्वरूप जिसके लिए पिघला उसका फल
- जैसे लाह होती है जो आप ठप्पा लगते हैं लाह को पिघला कर के तो लाह जब पिघल जाती है खूब तो उसमे कोई रंग डाल २ लाल पीला नीला तो वो लाह में १ हो जाती है फिर वो अलग नहीं हो सकती ऐसे ही मन जब पिघल जाता है प्यार में या दुश्मनी में दोनो में पिघलता है तो वो पर्सनैलिटी मन में समा जाती है शुद्ध है तो शुद्ध कर देती है मन को अशुद्ध है तो मन को और गन्दा कर देती वो केवल वैराग नहीं हो सकता केवल अनुराग नहीं हो सकता, ऐसे ही अगर भगवान का दर्शन, भगवान का स्पर्श, भगवान का सामान की कामना करें तो मन उनके लिए पिघेलगा, वो आके समाय जाएँगे
- बिना मन के इंद्रियाँ कुछ भी ग्रहण नहीं कर सकती
- १ बार रामकृष्ण परमहंस रथ यात्रा देखने जा रहे थे जगन्नाथ जी की रथयात्रा, रथयात्रा निकाल गई उनको देर हो गयी, तो उन्होंने १ चित्रकार से पूछा क्यूँ भाई इधर से सवारी गई है क्या जगननाथ जी की ? उसने कहा नहीं तो, किन्तु उसके कर्मचारी ने कहा क्यों साहब इतने बड़े महात्मा से आप झूठ बोल रहे हैं अभी तो गई सवारी, लाखों आदमी साथ में थे, उसने कहा नहीं नहीं मुझे नहीं मालूम, बहरे हो तुम ? नहीं नहीं भला मैं बहरा कैसे हूँ ? रामकृष्ण परमहंस वहीं बैठ गए और समाधि लगाया और देखा कि यह चित्रकार झूठ नहीं बोल रहा है ये चित्र बनाने में इतना तल्लीन हो गया था कि इतना लम्बा चौड़ा जुलूस बाजे गाजे के साथ गया लेकिन इसने नहीं अनुभव किया, कान में आवाज तो पड़ी होगी यानि मन क्षेत्र में है तो बाहर का अनुभव नहीं, कान का विषय ग्रहण नहीं हो सका
- अगर इस समय आपका मन कहीं और चला जाए तो आप जो सुन रहे हैं वो कुछ 'समझ' में आये क्योंकि कान तो है लेकिन मन युक्त नहीं है इसलिए कुछ ग्रहण नहीं हुआ, कहीं भी यदि आपका मन किसी जगह पर केन्द्रिति हो गए तो फिर आप इन इंद्रियों से कुछ भी नहीं ग्रहण कर सकते
- अन्न का मन पर प्रभाव
- १ वेद में कथा है १ उद्दालक ऋषि हुए हैं तो उनके शिष्य थे श्वेतकेतु तो उद्दालक ने श्वेतकेतु से कहा कि देखो बेटा खाने पीने का मन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है इसलिए खाना पीना सात्विक रखना ऐसा नहीं कि जो मन में आया खा रहे हैं ठाठ से, आज तो रसगुल्ला खाएँगे, आज तो पूड़ी, आज तो कचौड़ी, ये जो तमाम खाने पीने की बीमारी हम लोग लगाये हुए है अपने साथ, अरे भई आज क्या बना है, दही बड़ा बना है, अच्छा अच्छा लाओ लाओ, ये जो बीमारी है हमारे अंदर इसका प्रभाव पड़ता है मन पर, तो श्वेतकेतु ने कहा ये बात समझ में नहीं आई गुरु जी, खाना तो शरीर के लिए होता है अंतःकरण तो सूक्ष्म है उस पर प्रभाव कैसे पड़ जाएगा खाने का, अरे खाना पीना ये फिजिकल बात है, हमने रसगुल्ला खाया चाहे हमने सूखी रोटी खाई इससे मन से क्या मतलब है, असल में ये जो हम खाना खाते हैं उसका ३ भाग होता है ३ भाग का १ भाग तो मल बन जाता है और १ भाग में रस रक्त मांस मेदा हड्डी मज्जा शुक्र आदि धातुएँ बनती है ये शरीर आपका स्वस्थ्य रहता है जितने पार्ट्स आपके शरीर के हैं उनके काम में आता है खाने का १ भाग और खाने का तीसरा भाग है उसे मन का संवर्धन होता है पालन होता है पोषण होता है वर्धन होता है यानि हमारे आइडियाज पर उसका प्रभाव पड़ता है खाने पीने का लेकिन १ कक्षा है अन्नमय कोष, उस क्लास तक अन्न का प्रभाव पड़ता है उस क्लास को जब क्रॉस कर जाएं आप, लांघ जाए आगे पहुँच जाए, साधना के उच्चें दर्जे में पहुँच जाए, ५ कोष होते है उसमे से १/५ आप मंजिल पार कर ले तो फिर आपके ऊपर खाने का असर नहीं, लेकिन जब तक उस क्लास में ले जाओगे पहुँचोगे तब तक तुम्हारे पर खाने का भी प्रभाव पड़ेगा मन पर, तो श्वेतकेतु ने नहीं समझा बात उसको आश्चर्य बना रहा गुरु जी की ये बात खोपड़ी में नहीं बैठी, अब कह रहे हैं तो मान लो, तो उद्दालक ने ऑर्डर किया श्वेतकेतु आज तुम्हें खाना नहीं मिलेगा, जैसी आज्ञा, दूसरे दिन फिर गुरु जी आज क्या आज्ञा है, खाना नहीं मिलेगा, तीसरे दिन, खाना नहीं मिलेगा, १६ दिन तक उद्दालक ने श्वेतकेतु को यही आज्ञा दी खाना नहीं है आज, अब १६ दिन के उपवास में श्वेतकेतु की हालत खराब हो गई, चलाना फिरना मुश्किल चक्कर आ रहे हैं, १६ दिन के उपवास के बाद उद्दालक ने श्वेतकेतु से वेद की ऋचाओं का उच्चारण पूछा, अब उनकी आँख ही नहीं खुल रही बेचारे की वो क्या बताए, १७ दिन उद्दालक ने कहा दूध पिलाओ इसको, १ २ दिन दूध पिलाया फल का रस दिया, उन्होंने कहा बेटा वो वेद मंत्र बोलो तो, तो वो बोल गए, तो बेटा १ बात बताओ, तुमसे हमने परसों भी पूछा था ये वेद मंत्र तुम बोल नहीं पाए थे कुछ बता नहीं पाए थे, तो देखो बेटा ये मन पर प्रभाव अन्न का पड़ता है सात्विक खाना खाओगे सात्विक बुद्धि होगी, राजस खाओगे राजस, तामस खाओगे तामस, इसलिए खाने पीने में भी सावधानी बरतनी चाहिए, गुलाम नहीं होना चाहिए
- मन के वर्क का क्रम
- बाजार में आप जाते हैं हजारों लड़के लड़कियों को सबको देखते रहते हैं। मकान देखते रहते हैं, दुकान देखते रहते हैं। यह हमारा नहीं है, यह हमारा नहीं है, बुद्धि कहती जा रही है और जहाँ कोई आपका दोस्त मिल गया, कोई प्रिय मिल गया, हैल्लो ! आप कब आये ? यह जो आप विभोर हो जाते हैं यह बुद्धि ने निर्णय दिया मन को, यह हमारा है। इसलिए मन ! इन्द्रियों से कहो यह शब्द बोले इसके लिए रिस्पेक्टेड है, यह हमारा प्रिय है। अभी तक इतने सारे मिले वहाँ तुमने ऐसा ऑर्डर नहीं दिया। उनसे हमारा कोई मतलब नहीं था। तो देखो, मन का वर्क दो बार हुआ, पहले उस वस्तु को संकल्प विकल्प के द्वारा निर्णय के लिए मन ने बुद्धि के पास भेजा फिर बुद्धि ने जो कुछ डिसीजन दिया, उसके अनुसार मन ने इन्द्रियों को ऑर्डर दिया ऐसा बोलो, ऐसा करो, ऐसा देखो, ऐसे चलो, जो जो वर्क आप लोग करते हैं बाद में, शत्रु के प्रति या मित्र के प्रति ।
- पहले मन ने इन्द्रियों से विषय को ग्रहण किया नम्बर एक, बुद्धि को भेजा नम्बर दो, फिर बुद्धि ने अपना निश्चय मन को बताया, फिर मन ने इन्द्रियों को ऑर्डर दिया, फिर उस विषय का ग्रहण हुआ। यह क्रम है आपके भीतर की मशीन का जो प्रतिक्षण आप लोग किया करते हैं, उसको रीड नहीं कर पाते, समझ नहीं पाते ठीक से, लेकिन सब होता रहता है। इतना बड़ा अभ्यास है उसका। सब काम चल रहा है। अँगूठा छाप का भी चल रहा है सब काम, बड़े बड़े बुद्धिमानों का, जो तत्वज्ञ होता है उसके मन में भी संसार देखा उसके मैने भी बुद्धि के पास भेजो और उसकी बुद्धि गुरु की बुद्धि से जुड़ी है इसलिए उसकी बुद्धि ने कहा कि नहीं यह हमारा नहीं है इसलिए मन इंद्रियों को उधर मत ले जाओ खबरदार मन को कोई एतराज नहीं है इंद्रियों को कोई एतराज नहीं है जो कुछ कहो यस सर वह जरा भी ऐतराज नहीं करती उनका क्या मतलब पड़ा है जड़ सर्वेंट है घोड़े से तुम कहो इस सड़क पर चलो कर से ड्राइवर कर है इस रोड पर पहिया तू चल चलो हमको क्या करना है कहीं चलो अपना क्या बिगाड़ा है अरे अपने को तो चलना है इधर ही चलो
- ये सामने जो है क्या वस्तु है, ये स्त्री है की पुरुष, इसके ऐसे ऐसे अंग है स्त्री है, इस स्त्री को प्यार से देखना है की खार से की उदासीन होकर, इसने हमारा हित किया है की अहित, अनुकूल है की प्रतिकूल है, मन ने इस स्त्री रूप को जो देखा तो बुद्धि के पास भेज दिया, बुद्धि ने जजमेंट दिया ये हमारी कोई नहीं है आगे बढ़ो, मन इंद्रियों के विषय को ग्रहण करके संकल्प विकल्प करता है अपने पूर्व स्मरण से
- सबका मन वश में है
- १ पाँच साल का लड़का स्कूल जा रहा है रास्ते में जलेबी है गरम गरम, देखा, मुँह में पानी आ गया लेकिन जेब में हाथ डाला आज पैसा नहीं लाया, अरे तो ले लो न हाथ तो ऑर्डर मानेगी ही, अरे नहीं बुद्धि ने कहा ऐऽऽ, क्या सोचता है अंडबंड पिट जाएगा अभी, बुद्धि ने डाँटा मन को, मन ने कहा इंद्रियों से ऐ उधर मत जाना चुपचाप चलो स्कूल, चला गया, मुँह में जो पानी आया था उसको पीते हुए, उसका मन भी वश में है, अगर मन वश में न होता हो जलेबी उठा लेता और ऐसा कर भी सकता है कोई बच्चा लेकिन ऐसा करने वाले की भी जब बुद्धि कहेगी, निकाल ले रे पिट जाएँगे तो पिट जाएँगे
- मन शत्रु है उसको मित्र माने बैठे हो
- १ क्षण के इस जोश में रसगुल्ला है सामने गरम गरम और जेब में पैसा है औ भई कुछ खाएं देखा जाएगा, तो शास्त्र/गुरु जी कहते है की मन के बहकावे में न आओ, वो भी अपना ठीक है उनकी जगह पे लेकिन अपन तो रसगुल्ला खाएंगे, तुमने सब बिगाड़ लिया, इस समय देखो ‘डिसीजन’ हो रहा है शास्त्र वेद गुरु सबकी आज्ञा का उल्लंघन करके अपने मन के अनुसार बुद्धि का डिसीजन, मन की लिफ्ट बढ़ती जाएगी, आज मन ने ये कहा हमने उसकी मान ली सुन ली कल और कुछ कहेगा तो वो भी सुन लेंगे तो फिर इस तरह कहाँ पहुँचेंगे हम लोग, हम हारते गए मन से और मन हमारे ऊपर हावी होता गया उसी का ये दुष्परिणाम है कि ८४ लाख योनियों का चक्कर लगाते लगाते अनंत जन्म बीत गए
- जैसे कुलटा स्त्री पति की गोद में रहते हुए भी दुसरे पुरुष का चिंतन करती है और पति को नहीं मालूम पड़ता इस प्रकार ये मन है योगियों के मन में भी इतनी तेज धार होती है की जरा सा समाधि के बाहर आया की लपेट लिया माया ने संसार में मन को, कौन बुद्धिमान है जो मन पर विश्वास कर लेगा, उससे दोस्ती कर लेगा हमेशा उसको दुश्मन समझो, मन अनेक प्रकार से घुमा फिरा करके बेवकूफ बनाता रहता है इस आत्मा को
- १ बच्चे को माँ कहती है ये बिल में हाथ न डाला करो बिल में साँप रेहता है मैं तो दसियों बार बिल में हाथ डालता हूँ मम्मी कहती है न डाला करो हमको अच्छा लगता है अरे गधे साँप बिल नहीं बनाता वो दूसरे की बिल में रहता है तुमने १० बिल में हाथ डाला मान लिया अगर ग्यारहवीं में साँप हुआ तो इसलिए मैं रोकता रोकता हूँ बेटा किसी बिल में हाथ मत डालो, क्या पता पहले ही बिल में साँप हो, नियम का पालन बहुत आवश्यक है किसी के कहने की जरुरत नहीं स्वयं को आपको अपने मन पर शासन करना है ये सबसे बड़ा दुश्मन है
- प्रत्येक कर्म का करता मन है
- कान से सुना मधुर शब्द आप विभोर हो गए, आप बेवकूफ हैं दुखी हो गए, कान से शब्द जा रहे हैं केवल बस, मन को ही सुख दुःख मिलता है
- मन का अटैचमेंट जहाँ उसकी भक्ति हो रही है
- आपके बेटे में आसक्ति है आपका बेटा सीरियस बीमार है, जी हाँ, मान लीजिये आप डॉक्टर के पास भागे जाते हैं, जी हाँ, डॉक्टर के पास जाकर कितनी विह्वलता है, डॉक्टर साहब, क्या है भई उधम मचा रखा है, अरे मेरे बेटे की हालत बहुत सीरियस है, अरे भई ऐसे कैसे चलेंगे १ मरीज का आपरेशन कर रहे है, अरे डॉक्टर इतनी देर वेट करना ठीक नहीं है क्या होगा हमारे बच्चे का, ये जो व्याकुलता से डॉक्टर से बात कर रहा है तो क्या ये डॉक्टर का भक्त है ? ये भक्त अपने बेटे का है इसका अटैचमेंट अपने बेटे में है ये डॉक्टर के जो पैर छू रहा है हाथ जोड़ रहा है रुपया भी दे रहा है ये सब जो खुशामद कर रहा है ये डॉक्टर की भक्ति नहीं है ये अपने बेटे की भक्ति है तो उसी प्रकार अगर हम आंसू बहाते हैं भगवान के आगे और मांगते हैं संसार तो वो संसार की भक्ति मानी जाएगी भगवान की नहीं, अरे भक्ति माने मन का अटैचमेंट हो भगवान में, वो तो हमारा है नही, हमारे मन का अटैचमेंट तो कमाओ में है जागतिक कामनाओं में सांसारिक कामनाओं में
- उपासना मन से होती है
- १ कहानी है ईसाइयों में, ये रोमन कैथोलिक लोग मंदिर बनवाते हैं गिरिजाघर, उसमें मूर्ति रखते हैं ईसा की मूर्ति रखते हैं मरयिम की मूर्ति रखते हैं सबकी मूर्ति रखते हैं अपने संतों की भी, तो मरियम की मूर्ति थी बड़े बड़े पादरी जाते थे वहाँ अरदास करते थे प्रार्थना करते थे और अपना याचना करते थे उनसे, १ नट था वो नट का काम करता था बिचारा फिर भी उसका पेट नहीं भरता था, उसने पादरी से पूछा आप लोग अभी क्या कर रहे थे मरियम के आगे, उसने कहा अरे उनके आगे जो कुछ भी माँगो मिल जाता है, अच्छा तय कर लिया उसने की हम भी खुश करेंगे उनको, हम भी उनसे माँगेंगे, हमारा पेट नहीं पलता इतनी मेहनत करते हैं दिन भर, लोग हमारा खेल देखते हैं देखकर चल देते हैं पैसा तो कोई देता नहीं ऐसे कंजूस लोग हैं और कहते तो हैं बड़ा अच्छा खेल दिखाया, जैसे आप लोग किसी महापुरुष का लेक्चर सुनें और कहे वाह बहुत अच्छा बोलते हैं मानेंगे नहीं उसको प्रैक्टिकल नहीं करेंगे उसको, तो जब पादरी चले गये तो उसने पट बंद कर लिया गिरिजाघर का और नट का खेल दिखाना शुरू किया मरियम की मूर्ति के आगे, तो १ पादरी ने दराज से झाँक करके देखा की इस आदमी ने पट क्यों बंद किया कोई गड़बड़ तो नहीं कर रहा गिरजाघर में, तो देखा की वो नट का काम कर रहा था मरियम को दिखा रहा था, तो धक्का देकर के और दरवाजा तोड़ करके सब पादरी लोग तमाम इकट्ठा हो गये और जनता इकट्ठी हो गई ईसाइयों की उस मज़हब वाले और कहा देखो ये बदमाश अंदर नाटक कर रहा है इस प्रकार से मूर्ति के आगे, ऐसे भला खुश करता है मरियम को, तो लोग जब उसे मारने लगे तो बड़ा तेज पुंज, बड़ा प्रकाश हुआ और मरियम स्वयं प्रकट हुई और उन्होंने उसका पसीना पोंछा उस नट का तब लोगों ने क्षमा माँगा, मरियम ने कहा भई देखो ये भोलभाला इसने ये विश्वास किया की भई मेरे पास और तो कोई गुण है नहीं की मैं खुश कर सकूँ मरयिम को, नट विद्या मैं जानता हूँ तो मैं यही दिखा दूँ तो शायद ये खुश हो जायेंगी तो मैं इनसे कुछ मागूँगा, इस भोलेपन से तो मैं खुश हो गई और तुम लोग जो अहंकार ले करके आते हो यहाँ पर और बड़े अड़े उच्च शब्दों में मेरी स्तुति करते हो उससे मैं खुश नहीं होती
- इंद्रियों के वर्क का कोई लाभ नहीं अगर मन का अटैचमेंट नहीं है
- गंगा जी में मछली पैदा हुई उसी में पली उसी में मरी उसको क्या वैकुण्ठ मिलेगा, साँप हवा खा के रहता है क्या वो गोलोक जाएगा, शेर चीते जंगल के जानवर बिना वस्त्र, बिना घर के रहते हैं कितने बड़े त्यागी है क्या वो गोलोक जाएँगे, भेड़ बकरी पत्ते खा के रहते हैं उनको वैकुण्ठ मिलेगा ? अगर ब्रह्मचर्य के पालन से भगवान मिल जाएँ तब तो जीतने नपुंसक हैं इनको भगवतप्राप्ति सबको हो जाएगी, अगर बच्चे पैदा करने से मुक्ति मिलती हो तो बिल्ली कुत्ते १ बार में ४ ४ इकट्ठा होते हैं, अगर मन का अटैचमेंट नहीं तो बहिरंग इंद्रियों के वर्क का कोई लाभ नहीं
- प्रश्न है कि गंगा जी में डुबकी लगाने से सब पाप धुल जाता है गंगा जी में डुबकी लगाने से सर्वपाप विनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते शास्त्र कहता है सारे पाप धुल जाते हैं १ बेटे ४, १ बेटे ८ नई और गंगा जी में ये नास्तिक लोग कहते है हम तो पचासो बार नहाये हैं हमारे पाप तो नई धुले, हमारे आइडिया गंदे हैं अब भी, तो फिर आपके शास्त्र झूठे हैं की सच्चे आग को कोई जान कर छुए या अनजाने में छुए चाहे कोई आग अचानक लग जाए किसी के कपड़े में और जल जाए वो स्त्री और अगर कोई १६ सिंगार करके पति के मरने पर चिता में बैठती है उसको भी आग जला देगी आग ये नहीं देखती सती होने आई है कि एक्सीडेंटल मामला है क्या है, आग अपना काम करेगी उसी प्रकार गंगाजी में कोई गंगा जी की भावना करे न करे, कोई मोहमदन नहा रहा है कोई नास्तिक नहा रहा है गंगा जी को पाप धोना चाहिए, फिर गंगा जी में १०० बार नहाए, चारो धाम की मार्चिंग भी १०० बार किया, सब तीर्थों में भी गए और वहीं के वहीं खड़े हैं ये क्या नाटक है कोई जहर जान कर पिए या अनजाने में पीले मरेगा फिर गंगा जी आदि का फल शास्त्रों में लिखा है क्यों नहीं मिलता ये क्वेश्चन था बढ़िया क्वश्चन है, खामखा गाली दे रहे हो प्रश्न करने वालों को, अरे ये प्रश्न तो सबकी खोपड़ी में रहता है वो चोरी चोरी रखते है लोग उसको कहते नहीं है कहीं कहेंगे तो लोग नास्तिक कहेंगे हमको लेकिन ये खोपड़ी में सवाल तो है भई हम सब कुछ करते है लेकिन क्या बात है गड़बड़ में पड़े हैं प्रोग्रेस नहीं हो रही कुछ अरे भई न, १०% पाप नष्ट हो २०% ४०% कुछ तो हो वहीं ० बटे १०० खड़े हैं वहीं के वहीं, मैंने कहा और कुछ प्रश्न है यही प्रश्न है, वाह इस प्रश्न के लिए हमको बुलाया गया है नागपुर से, हमने कहा वो प्रश्न करता लोग कहाँ है कृपया मंच पे आके बैठ जाए, मैं उत्तर देने बैठ रहा हूँ, मैं तब तक बोलूंगा जब तक वे न कह देंगे कि मेरी समझ में आ गया, १ मिनट २ मिनट १ घंटा २ घंटा १ दिन २ दिन, मैं बहुत बोलता हूँ १८ घंटे २० घंटे लगातार बोलता हूँ, मैं थकता वकता नहीं बोलने से, वो आके बैठ गए, मैं कुल मुश्किल से ५ ६ मिनट बोला, १ मामूली सी बात कही, मैंने कहा की १ शीशी लो शीशी, कांच की शीशी उसमें पेशाब भर दो गन्दी चीज पेशाब और पैक कर दो शीशी और पैक करके गंगा जी में छोड़ दो, घंटे २ घंटे दिन २ दिन फिर गंगा जी से निकाल लो शीशी पैकिंग खोल दो, आचमन करेगा कोई नई, क्यों गंगा जी में वो गन्दी चीज मिली नहीं है हजारों गंदे नाले बह के जाते हैं गंगा जी में जब गंगा जी में वो ‘मिल’ जाते हैं तो सब लोग आचमन करते हैं लेकिन ये तो शीशी के अन्दर बंद है गन्दी चीज इसके ऊपर शीशे का आवरण हैं गंगा जी मे डूबे ही नहीं ये तो गंदगी का पानी अलग हैं गंगा जी का पानी अलग हैं शीशी आपने डुबोया और फिर पैकिंग आपने खोल दिया तो गंगा जी का सम्बन्ध ही नहीं हुआ उससे, वो कैसे शुद्ध होगा उसका आचमन नई लेंगे हमे कहा अच्छा १ बात बताओ ये पाप पुण्य अच्छाई बुराई कहाँ रहती है नाक में आँख में कान में खोपड़ी में पैर में कहाँ रहती है, अरे अंतःकरण में रहती, मन में रहती है, माइंड कहो मन कहो मन कोई चीज है कोई स्थूल पदार्थ है क्या नहीं सूक्ष्म है, सूक्ष्म होता है मन वो कोई ऐसा पार्ट नई की साफ कर दिया जाए धो दिया जाए किसी चीज से साबुन वगैरह से, हाँ, तो उस मन में ये पाप पुण्य रहा करता है जहाँ से आइडियास पैदा होते है ऐसी मशीन का नाम मन अंतःकरण हूँ, तो १ बात बताओ की गंगा जी में तुम्हारा मन डूबा कि शरीर डूबा, गंगा जी में शरीर डूबा मन बाहर है, वो नाव जा रही है वो लड़की नहा रही है वो हमारा पर्स रखा है जो पंडे के पास कहीं वो पार न कर दे इत्यादि बातों में आपका मन है न हाँ, मन बाहर चक्कर काट रहा है, ठंड भी लग ही है और डुबकी लगा रहा है तो गंगा नाम की स्पिरिचुअल पर्सनालिटी में, ध्यान दीजिए प्रत्येक शब्द पर, गंगा नाम की स्पिरिचुअल पर्सनालिटी में क्या तुम्हारा मन डूबा, टच किया मन ने उसको, तुम कहते हो आग अगर लग जाए किसी आदमी को तो जला देगी ठीक है लेकिन अगर कोई लोहे का कवच पहने हो या पाउडर आते है ऐसे वो लगा लीजिये फिर आग में बैठ जाइए, नहीं जलिएगा, तो अगर कोई कवच है आपके ऊपर फिर आग में बैठते हैं तो क्या आग जला देगी नहीं, उसी प्रकार अंतःकरण में पाप पुन्य है अंतःकरण से विचार पैदा होते हैं अच्छे बुरे और अंतःकरण का टच नहीं हुआ स्पिरिचुअल पर्सनालिटी में गंगा जी हो या कोई हो शंकर विष्णु हो ब्रह्मा हो भगवान हो कोई हो, उस पर्सनैलिटी में मन का अटैचमेंट नहीं हुआ मन तो बाहर घूम रहा है और आप शुद्धी चाहते हैं मन की और टच कर रहे हैं शरीर का, शुद्धि कैसे होगी अगर तुम्हारा मन भगवान को छू ले गंगा जी को छू ले किसी भाव से छू ले, बाप मान के बेटा के दुश्मन मान के छू ले, कंस ने दुश्मनी किया श्रीकृष्ण से लेकिन मन से किया, मन छू गया, तो लोहे में पारस चाहे प्यार से छुआ दो चाहे लड़ा दो छूना चाहिए सोना बन जाएगा, और अगर छूएगा नहीं तो फिर पारस का क्या दोष, डिबिया में लोहा बंद, डिबिया में पारस बंद दोनों को छुआ रहे हो वो दोनों तो आपस में छुए नहीं, ये गंगा जी का पानी ये गंगा जी नहीं, ये तो गंगा जी का पानी है जिसमे आप लोग नहाते हो, गंगा जी तो १ स्पिरिचुअल पावर का नाम है उसको भी आप नहीं जानते और जिस मन को डुबोना है उसको भी आप नहीं जानते तो गंगा के मटेरियल पानी में मटेरियल बॉडी आप डुबोते हैं और लाभ चाहते हैं स्पिरिचुअल ये कैसे हो, कुल ६ मिनट में हाँ समझ गए समझ गए
- १ स्त्री धान कूट रही थी गाँव की धान चावल जो आप लोग खाते हैं तो वो मूसल होता है उससे कूटती है स्त्रियाँ गाँव में जब मशीनें नहीं थी तो कूटने में पति कहीं से आ गया और उसने कहा पानी लाओ तो मूसल ऊपर को था उसने ऊपर ही छोड़ दिया हाँथ, पति ने कहा है पानी के लिए अब मूसल को नीचे ला के रखे आज्ञा उलंघ हो जाएगा, वो मूसल टंगा रहा उसी प्रकार आकाश में, जाकर पति को पानी दे दिया फिर मूसल को पकड़ लिया फिर कूटने लगी, पड़ोसिन बैठी थी, उसने कहा ये क्या जादू है रे ? ये मूसल ऊपरे टंगा रहा ये कौन सा सिद्ध किया है मंत्र तंत्र यंत्र क्या है उसने कहा बेहन वो जंत्र मंत्र नहीं है ये तो पतिव्रत धर्म का कमाल है, पतिव्रत मैं भी तो पतिव्रता हूँ, तो तू भी है तो तू भी कर सकती है कोई सिद्धी नहीं मैं अपने पति की सौगन्द खा के कह रही हूँ भगवान की सौगन्द खाकर के, वो गई बड़ी खुश खुश अपने घर में गयी और पति से कहा देखो जी आज मैं तुम्हे पतिव्रत धर्म का चमत्कार दिखाती हूँ तो पति हँसने लगा पहले, की मैं तुम्हे कब कहता हूँ दूसचरित्रा हो ये काहे को तुम चमत्कार दिखाने के लिए तैयार हो, नई नई तुम्हें शायद कभी डाउट हो तो आज मैं तुमको दिखाई ही दूँ प्रमाण दे दूँ, तो कैसे प्रमाण देगी तू हमको, पति को आश्चर्य हुआ की क्या मुह से बोलेगी की लिख कर देगी क्या प्रमाण देगी १ आदमी अपने जीवन भर का प्रमाण किसी को कैसे देगा, जबानी जमा खर्च में देगा या कोई टेलिविजन है की हाँ सारे जीवन का पिछले सामने रिकॉर्ड दिखाएगा, देखो मैं मूसल को ऊपर उठाऊँ तो तुम कहना पानी लाओ तो मूसल टंगा रहेगा ऊपर तो तुम मान जाओगे न, पति ने कहा हा ऐसा कमाल, अरे मैंने पतिव्रता तो बहुत सारी देखी है लेकिन ऐसा तो मैंने नई देखा लेकिन सुना है अनुसूया वगैरह के बड़े किस्से, अच्छा ठीक है, तुम कूटो हम मंगाते है पानी तुमसे, अब वो बहार चला गया वहाँ से लौटा तो देखा की मूसल ऊपर गया उसने कहा पानी लाओ, उसने छोड़ दिया मूसल और नाक के ऊपर होता हुआ हल्का फुलका आपरेशन करता हुआ निचे गिर गया, अब बेचारी शर्म के मारे मर गयी अब क्या मुँह दिखावे मुँह तो काला हो गया, १ दुनियादारी की प्रतिष्ठित स्त्री के लिए जो अपने शरीर को किसी को नहीं दी अब तक ये उसका अनुभव कहता है अब वो तो मर गई बिचारी, की अब मैं क्या कहूँ पति से, क्या कहूँ किसी से, ये बात अब तो आउट होगी मोहल्ले में, क्या गति होगी मेरी ओ सारा गुस्सा पड़ोसिन के ऊपर, पति तो हँस के चला गया अपना, अरे ये सब कहीं होता है कहाँ से सुन के आई है बेवकूफ, पति ने कोई बुरा नहीं माना की नई तुम दूसचरित्रा जरूर है ऐसा कुछ नहीं वो चला गया हँस करके, लेकिन उसको बड़ा बुरा लगा पड़ोसिन के पास गई, उसने कहा क्यों री तूने मेरी आज नाक कटा दी, ये क्या किया मैंने बेहन, तूने ऐसा कहा मैंने वैसा किया तो ऐसा हो गया, अब हो गया होगा मैं क्या जानूँ तेरी बात, मैं तो अपनी बात जानती हूँ, न न तेरे और कोई चमत्कार है तूने और कोई सिद्धि कर रखी है और हमको बेवकूफ बना दिया तुमने, वो नहीं समझ सकी तो उसने कहा अगर मैं ये कहूँ की तू पतिव्रता नहीं है तो मेरे सर के बाल नहीं रहेंगे क्योंकि पतिव्रता शब्द का अर्थ वो पड़ोसीन इतना ही जानती थी खाली शरीर का मिलन किसी और पुरुष से न हो वो पतिव्रता इसके आगे और कोई परिभाषा तो उसको पता ही नहीं था, लेकिन ये तो पतिव्रता की परिभाषा नई, पतिव्रत हो मातृव्रत हो गुरु व्रत हो भगवत व्रत हो उसका अर्थ तो ये है की मन से भी उसके विपरीत कभी कुछ न सोचे हो मन से शरीर से नहीं उसके विपरीत न सोचे हो, अगर थाली में खाना रख कर के वो पाखाना डाल दे पति और हंसने लगे स्त्री हँसती हुई खा जाए, है हिम्मत, नहीं है तो तुम पतिव्रत नहीं हो सकती सपना मत देखो इसका, कोई भी व्रत करने में मन का संयोग है शरीर का नहीं और जो स्त्री इतनी तपस्चर्या करने गई हो की कभी पति के खिलाफ कुछ सोचे ही नहीं, पति ने डाँटा स्वीकार, प्यार किया स्वीकार, जो कुछ दिया सब स्वीकार कभी किसी में ऐतराज नई, दिन में १० बार स्त्री पति से लड़े और पतिव्रताओं के अग्रणी होने का दावा ये कैसी पतिव्रता है, समझ में फिर उसके आ गया हाँ लड़ती तो मैं बहुत हूँ हमेशा लड़ती हूँ, वो १ कहता है मैं २ कहती हूँ, तो तुम कैसी पतिव्रता हो, तो पतिव्रत धर्म तो भगवतव्रत के समान है जैसे भक्त भगवान की इच्छा में इच्छा रखता है कभी विपरीत चिंतन नहीं करता जैसे शिष्य गुरु की इच्छा में इच्छा रखता है
- मंदिर में बोलते हैं 'तमेव माता च पिता तमेव' अगर अपने बाप के सामने किसी दूसरे को बाप कह दो तो वो झापड़ लगा दे, चूँकि भगवान की मूर्ति है, कोई भगवान वगवान तो है नहीं वहाँ इसलिए झूठ बोलो कोई बात नहीं, मंदिर में जाते हैं आप लोग कभी किसी मूर्ति में भगवान की भावना हुई, आपको कोई विश्वास नहीं की ये भगवान है, कपड़ा कैसा पहने है मुकुट कैसा पहने है सजावट कैसी है प्रसाद में क्या है, ये क्या देख रहे हो
- वृंदावन में १ मंदिर है बिहारी जी का बड़ा प्रख्यात मंदिर है सारी दुनिया में थोड़ी थोड़ी देर में पर्दा हटा देते हैं फिर लगा देते है की ठाकुर जी को नजर न लग जाए छोटा सा मंदिर है बड़ी भीड़ होती है, श्रद्धा लोगों की तमान पैदा करा दिया है अनेक बातें जोड़ जोड़ के लोगों ने, तो उसमें १ झूला बनवाया हरगुलाल सेठ ने बहुत साल पहले तब तो कुछ लाख का था और आज तो अरबों का हो गया है उसमें कुछ हीरे जवाहरात जड़े हुए हैं झूले में, तो साल में १ दिन वो झूला बाहर आता है और झूले में ठाकुर जी को बिठाते हैं और लाखों की भीड़, पहले तो दसियों बीसियों मर जाते थे चल के, अब तो गवर्नमेंट का बड़ा पक्का इंतजाम होता है पुलिस का फिर भी लोग धक्का मुक्की में अस्पताल जाते ही हैं, क्या बात है आज तुम्हारे ठाकुर जी में ? अरे वो झूला है न, वो झूला देखने जाते हो तो इंग्लैंड की बिल्डिंग देख आओ तमाम रखा है ये क्या देख रहे हो ? ताजमहल देख आओ, भगवान की सृष्टि तो अनंत मूल्य की है देखो न चारो तरफ
- आप लोग मंदिरों में जाते हैं तो मंदिरों में किस का मिलन होता है ? श्याम मिलन, नई, फिर ? पत्थर मिलन वहाँ पत्थर मिलन होता है, क्या मतलब ? मतलब ये की आप जाते हैं तो पत्थर को देखते है ये पत्थर की मूर्ति कैसी है, इसके कपड़े कैसे है, येह मंदिर की बनावट कैसी है, इसमें सजावट कैसी है, इसमें लाइट वगैरह कैसी है ये सब आप देखते है मंदिर में ये पत्थर की बुद्धि हुई आपकी इसीलिए मंदिर की मूर्ति और सजावट जैसी है उसी प्रकार का आपका हृदय का भाव बनता है अगर अच्छी सजावट और अच्छी झांकी, अगर हरगुलाल सेठ का बनवाया हुआ कहीं झूला है और उसमें बिहारी जी बैठे हैं तो आप क्या कहेंगे ? क्या झाँकी थी बिहारी जी और अगर चप्पल जूता १० २० रख दो बिहारी जी के चारो ओर और उन बिहारी जी को आप देखे उसी मूर्ति को, हूँ ये क्या पुजारियों कि बतमीजी है चप्पल जूता रख रखा है अंदर, आप बिहारी जी देखने थोड़ी गए थे आप तो बिहारी जी का शरीर जो पत्थर का है और जो उसके चारो और मटीरियल सामान है माया का वो देखने गए थे, उन्होंने कहा बड़े बड़े हिरे जवहरात सब उस झूले में लगे हैं क्या चमक आ रही थी बिहारी जी से लाइट निकाल रही थी, अरे बिहारी जी से नहीं निकल रही थी वो आपकी खोपड़ी की लाइट है, आप संसार देखने जाते है और संसार ही ले कर वापस आ जाते और ये पत्थर के बिहारी जी नहीं जब असली बिहारी जी आये थे तब भी आप लोगों ने यही किया हम नकली की बात नहीं करते हैं जब असली श्यामसुन्दर आपके यहाँ इसी मृत्युलोक में आये थे तो आप जितने बैठे हैं सब लोगों ने देखा है अरे १ बार नहीं देखा अनंत बार देखा है, भगवान हमसे सीनियर नहीं है अनादिकाल से वे है अनादिकाल से हम लोग चल रहे हैं उनके साथ साथ एक ४ युग में तो वो पचासों बार आ चुके हम लोग सब देखते ही रेहते हैं लेकिन हमने देखा और देखने के बाद वोई मटीरियल चीज देखा और मेटीरियल फल पाया इसके आगे हम नहीं बढ़ सकते
- मोटी अकल में सोचो तुम लोग जो बोलते हो रोज बातें करते हो संसार में वो बातें इन्हीं स्वर व्यंजन अक्षरों में तो होती है, क ख ग अ ई ऊ इन्ही अक्षरों में तो बात चीत करते हो, हाँ, और इन अक्षरों का अर्थ भगवान है, 'क' माने भगवान, 'ख' माने भगवान। 'अ' माने भगवान, 'उ' माने भगवान वेद में लिखा है तो इसका मतलब है की हम लोग जो बात करते हैं संसारी से भगवान का नाम तो ही ले रहे हैं, अरे क ख ग अ ई ऊ के अलावा और क्या बोलेंगे ? हम किसी लैंग्वेज में बोले, हिंदी, इंग्लिश कहीं भी जाए तो जो मुँह से शब्द बन सकते है वही तो निकाल सकता है मुँह से स्वर व्यंजन के अंतर्गत ही होगा, सब भगवान का नाम ले रहे हैं लेकिन क्या परिणाम मिला ? कुछ नहीं
- जब स्त्री पति में लड़ाई हो गई और १ पार्टी को खुश करने के लिए १ पार्टी चिपटा रही है तो वहाँ भी सुख नहीं मिलेगा एक्टिंग करेगा वो और जब स्त्री पति का प्यार है और चिपटा रहा है तो सुख मिलेगा
- आप उन महात्मा जी से मिले है ? जी हाँ, उन महात्मा जी से ? जी हाँ, बिहारी जी देखे ? जी हाँ, और आपको संसार का अटैचमेंट कहाँ है ? जी वो तो बहुत बढ़ गया है, ये कैसे इतनी दवा पड़ता गया चारो धाम भी किया है और बहुत यज्ञ किया है बहुत व्रत किया है बहुत एकादशी पूर्णिमा सोमवार मंगलवार क्या क्या नहीं किया हम लोगों ने लेकिन ये दवा हो रही है ये तो रोग बढ़ाने की दवा है रोग मिटाने की दवा आपने समझी ही नहीं, वो तो दवा है मन का प्यार और इंद्रियों का मिलन वो होना चाहिए और तुम्हारा केवल इंद्रियों मिलन की बात चली फिजिकल शारीरिक व्यायाम हुआ मन का अटैचमेंट तो था ही नहीं, इसलिए अनंत मूर्तियों के दर्शन करने पर, अनंत अवतारों के दर्शन करने पर, अनंत संतों के दर्शन करने पर भी हम जहाँ के तहाँ खड़े हैं
- १ तो देखने वाली चीज कि आपने आँख/मुख/शब्द में आनन्द की एक्टिंग करके, ओ आप आ गए मैं तो परख ही रहा था दिन भर से आपको आज, सफेद झूट, बीबी से केह रहा था की आज वो आने वाला है पता नहीं बदमाश कै दिन रूकेगा यानी अन्दर गड़बड़ बहार ठीक
- १ कथानक है १ बार मथुरा में चौबे साहब ने खूब भांग पी, वो लोग भांग पीने के शौकीन होते हैं आज भी हैं अब आज कम हैं पहले बहुत थे और कभी कभी बेतहाशा पी लेते थे, शराब वगैरह, भांग वगैरह पीने वाले कभी कभी आज छुट्टी है १ पैग और नशे में और पीते जाते हैं वो सब नशे में हो गए और बड़े बड़े पहलवान थे, उन्होंने कहा अरे यार प्रयाग में मेला है आजकल, हाँ है तो, चलो फिर, अरे यार कैसे चलोगे ? अरे यार नाव तो हैं यमुना जी जहाँ गंगा जी से मिलेंगी उसी का नाम प्रयाग है किसी से पूछना भी नहीं पड़ेगा, कहा हाँ ठीक है चलो, बैठ गए सब और रात भर खेते रहे, सबेरा हुआ तो कुछ नशा भी उतरा और थक भी गए थे बुरी तरह, उन्होंने कहा की कहो यार आ गए ? हाँ यार आ तो गए लेकिन यार 1 बात है की ये प्रयाग के घाट सब मथुरा के घाट की तरह हैं देखो तो, हाँ तो 1 बिल्कुल नार्मल हो गया था, उसने कहा अरे प्रयाग नहीं है ये मथुरा है, मथुरा है ऐसा कैसे हो सकता है ? सारी रात पसीना पसीना हो गए हम सब, उसने कहा अरे वो देखो देखो नाव बंधी हुई है लोहे की श्रंखला में नाव बंधी है और हम लोगों ने खोले ही नहीं नशे में और खेते रहे रात भर, तो ऐसे ही हमारा मन तो माँ बाप बेटा स्त्री पाती रसगुल्ले में हैं और इन्द्रियों से हम कहते हैं, तमेव माता च पिता तमेव, हे भगवान तुम बेवकूफ बन जाओ, भगवान कहते हैं मैं तेरे अंदर बैठा हूँ और देख रहा हूँ तेरा मन कहाँ है
- मन की मंशा का ही फल मिलता है
- हमारी दुनियाबी गवर्नमेंट में भी कानून है की मन की मंशा हो अगर मर्डर करने की तो फांसी होगी, अगर मंशा नहीं है मजिस्ट्रेट ने ऑर्डर दिया पुलिस को चला दो गोली पब्लिक के ऊपर, चला दिया, तुमने गोली चलाया, जी हाँ, ४ आदमी मर गए सो मर जाए मैं क्या करूँ, क्या करूँ तुमने क्यों गोली चलाया मारा, मैंने मारने की मंशा से दुश्मनी से नहीं मरा मजिस्ट्रेट साहब ने ऑर्डर दिया था, मजिस्ट्रेट से पूछो क्यों ऑर्डर दिया, मुझसे नहीं पूछा मेरे पास आर्डर है
- उसने चाकू मारा और देखिए साहब मेरे घाव हुआ, तो मैंने १ घूँसा मार दिया उसके तो पता नहीं कहाँ लगा पेट में लगा की वो मर ही गया, ये डिफेंस में मैंने मारा मैं क्या करूँ १ ही घूँसे में मर गया हार्ट में लग गया कहाँ लग गया पता नहीं, साहब जब मेरे ऊपर वो छुरा मार रहा है तो मैं घूँसा भी न मारूँ उसको फाँसी नहीं होगी चूँकि मंशा मारने की जब तुमने हज़ार घूँसे मारे हो
- हमारी गाड़ी ठीक है हमारी स्पीड ठीक है हमारा ब्रेक ठीक है हमारी साइड ठीक है १ आदमी जबरदस्ती गाड़ी के आगे आके मर गया हमको फाँसी नहीं हो सकती, उसने किया एक्सीडेंट लेकिन उसकी मारने की मंशा नहीं थी, तो हमारा मन यहाँ होगा मरने के बाद उसी का फल मिलेगा
- अगर हमारे देश की मिलिटरी को हमारे यहाँ का जनरल ऑर्डर देता है प्राइम मिनिस्टर आर्डर देता है की दुश्मन के देश पर हमला करो उनके सैनिकों पर हमला करो उनको मारो, उनके टैंक तोड़ दो, हवाई जहाज़ गिरा दो, पुरस्कार मिलेगा और हमारे मिलिटरी मैन ऐसा करते हैं तो उनको महावीर चक्र वगैरह इनाम मिलता है उनको फांसी नहीं होती सजा नहीं होती
- अर्जुन ने महाभारत में करोड़ों मर्डर किए, हनुमान जी ने करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या की लंका जला डाली, लेकिन सदा सर्वत्र उनका मन भगवान में अटैच्ड था इसलिए भगवान के यहाँ वो मर्डर नोट नहीं किया गया
- जैसे कई डकैत मिल कर डकैती की प्लानिंग कर रहे थे और पकड़े गए चूँकि उनकी मंशा ख़राब है और कर्म नहीं किया तो भी दंड मिलेगा
- इतिहास साक्षी है की इंडिया की हर मूर्ति को तोड़ तोड़ करके यहाँ से लूट के ले गये है विदेशी लोग, क्या किया मूर्ति ने ? अरे वो पथर है वो क्या करेगी, किसी मूर्ति में कोई बात नहीं
- सुने सब की करें मन की
- १ सेठ जी थे उनका लड़का था तो कथा सुनने जाया करता था किसी पंडित जी की तो कुछ हरिश्चन्द्र की कथा हो रही थी वहाँ सत्य व्यवहार की, सत्य के पीछे प्राण दे दिए अपने आप को बेच दिया हरिश्चन्द्र ने, वो आया अपनी दुकान पर और सत्य व्यवहार करने लगा, अब सत्य व्यवहार करेगा तो प्रॉफिट कहाँ से मिलेगा, ये सामान कितने का है १० रूपए का, अब लाने की मेहनत अलग दुकान खोला है अलग किराया दे रहे हैं अलग टाइम खराब कर रहे हैं अलग और १० रुपए का उसको दे दिया, तो क्या हाल होगा, तो उसका बाप देख रहा था उस समय तो नहीं बोला जब वो चला गया ग्राहक तो उसने १ झापड़ लगाया, उसने कहा बेवकूफ इस तरह तू लुटवा लेगा हमको, हम तो भूखों मरेंगे, अं पिता जी आप ने ही तो इतना जोर दिया था कथा सुनने जाया करो, हाँ हाँ जाया करो ये तो अब भी मैं कहता हूँ अच्छा काम करना चाहिए, तो फिर कथा में यही तो सुना था हमने सत्य व्यवहार, कथा सुनने की अकल चाहिए तुझे अकल नहीं है, क्या अकल चाहिए ? जब कथा सुनने लगे किसी महात्मा की तो अपने आँचल को फैला दो, ऐसे कर के बैठो की सब कुछ आ जाए मेरे पास और जब घर चलने लगो तो सब वहीं झाड़ दो यानी सुने सब की करें मन की, ये आप लोग भी करते हैं जिस दिन आप लोग ये न करेंगे उस दिन कम्पलीट सरेंडर हो जायेगा, उसी क्षण
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