मानव देह का इम्पोर्टेंस
- मानव देह बिना नोटिस के छिनेगा
- संसार में १ मामूली सर्वेंट को भी कोई सर्विस से निकालते हैं तो पहले नोटिस दिया जाता है तुम्हे सर्विस से क्यों न निकाल दिया जाए कारण बताओ नोटिस, फिर बिचारा जवाब ववाब देगा उसका जवाब फिट नहीं बैठेगा सरकार की दृष्टि में तब वो निकालने की स्कीम बनेगी लेकिन यहाँ ऐसा नहीं होता, देखो भाई तुम्हें अगले सेकंड में शरीर छोड़ना है फिर तो सब जीव कुछ न कुछ चमत्कार दिखा दे १ सेकंड में हँ, अरे यही कम से कम राधे राधे ही बोल दे हाँ कुछ तो बात बनी ही जाए लेकिन कोई चांस नहीं, कोई न्यूज नहीं, कहीं आइडिया नहीं वो बीमार चला जा रहा है ६ महीने से, डॉक्टर कहते है मर जाएगा, कब अरे ऐसे ही २ महीने, ४ महीने, ६ महीने में, अरे भई ठीक ठीक बताओ, भई ठीक ठीक हम लोग नहीं जानते
- १ दिन खाना पानी नहीं मिलता तो क्या हालत होता है, जब कुत्ते बिल्ली बनोगे खाना पानी नहीं मिलेगा, तड़प तड़प कर मरोगे, तब याद आएगा हमको मानव देह मिला था और मार्ग बताने वाला भी मिला था लेकिन लापरवाही से खो दिया
- मानव देह का महत्व realize करो
- जैसे यहाँ से लखनऊ पश्चिम है तो जीव पूर्व की ओर जा रहा है किसी की सुनता नहीं, तो ओर दूर होता जा रहा है जीतने कर्म करतें हैं हम प्रतिक्षण और बँधते जा रहे हैं इस सबका फल भोगना पड़ेगा और केवल मानवदेह ही ऐसा है जिसमें हम इन सब बंधनों को काट सकतें हैं 'मैं' और 'मेरे' को जान सकते हैं और अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं और किसी शरीर में नहीं
- मौत के भय को realize करो
- आप लोगों ने देखा होगा खेल होता है लंबी दौड़ की, अनेक प्रकार के खेल होते हैं, उसमें लाइन लगाए लोग खड़े हैं और रिवाल्वर लेकर १ आदमी खड़ा है की जब रिवाल्वर चलेगी तो सब भागेंगे, साइकिल की रेस सबकी रेस होती है ऐसे ही, कैसे लोग खड़े रहते हैं उस समय, आवाज आवें भागें, पहले हम ही भागें, ऐसा सावधान रेहना पड़ेगा आपको तब काम बनेगा, मौत का भय तुम नहीं realize करते इसलिए लापरवाही करते हो उधार करते हो उसको भी याद करो, आलस्य करने की प्रवृत्ति समाप्त हो और सारा तत्वज्ञान काम में आ जाए
- समय का सूचक यंत्र इतना बलवान होता है की मनुष्य में अचिंतन्य परिवर्तन कर देता है
- जुलाई में बच्चों के नाम लिखे जाते हैं लेकिन उनको समय की लिमिट का पता है अरे अप्रैल में इम्तिहान होगा देखो अप्रैल बहुत दूर तो नहीं है साल भर भी नहीं है माना की तुम्हारा इम्तिहान कल नहीं हो जाएगा अप्रैल में होगा ठीक है ये पक्का है ? हाँ पक्का है, लेकिन मान लो की तुम अभी कुछ भी नहीं पढ़ते हो और अगले ३ महीने ६ महीने बाद तुम बीमार हो जाते हो और फिर तुम पढ़ नहीं सकते हो, अरे भई ये तो ठीक है फिर देखा जाएगा जो कुछ होगा लेकिन ये तो आम बात है की भई अभी पढ़ाई नहीं हो सकती है अभी क्या पढ़ना, देखो कोई बच्चा पढ़ता है अभी, ये बेवकूफी की सिद्धांत बात है ये, आप लोगों के हिसाब में से पढ़ना शुरू कर दीजिए ये क्या बात हुई २ महीना जब रेहता है तब हम लोग पढ़ते है हमारे बच्चों का ये कायदा है, रिजल्ट खराब हो ? हो तो हो उससे क्या मतलब, तो भोगना पड़ेगा उसका फल किसको ? किसको भोगना पड़ेगा सब को भोगना पड़ेगा हमको ही भोगना पड़ेगा लेकिन जुलाई से हम लोग नई पढ़ते, लेकिन देखो अगर कोई बच्चा पढ़ता भी है हम ये नहीं केहते की कोई ही नहीं पढ़ता अगर कोई पढ़ता भी है बच्चा तो जुलाई में जिस स्पीड में पढ़ता है जिस लगन से और इम्तिहान के १ रात पहले जिस लगन से पढ़ता है दोनों में कितना बड़ा अंतर है कल इम्तिहान है आज जब पुस्तक को उठाता है तो जो मैटर देखता है वो चुपचाप धर लेता है अंदर यहाँ तक की जिस चीज को उसने कभी नहीं पढ़ा केवल इम्तिहान की रात को पढ़ा और वो इम्तिहान में आ गया धर दिया उठा के पूरा का पूरा और पास हो गया १st division क्यों जी ये ‘कैचिंग’ पॉवर आपने कहाँ से आ गयी आज रात को ये कैचिंग पॉवर कहाँ गई थी जुलाई में, जुलाई में साहब ऐसा था की ये ख्याल था न की अप्रैल में इम्तिहान होगा तो किताब सामने थी पढ़ते भी थे और रेडियो भी सुनते थे सोते भी थे बीच बीच में इत्यादि जो हमारी खोपड़ी में ‘लापरवाही’ थी इस कारण वो हमारी कैचिंग पॉवर weak थी अब हमारी वो ग्रहण करने की शक्ति, धारणा शक्ति इतनी हो गयी है की हम एकदम, अरे अब राते भर तो है अरे अब तीने घंटा रेह गए भई, अब दोई घंटे रेह गए भई, अरे अब तो बिल्कुल तैयार ही करना है जरा सा वो पन्ना पलट लो क्या स्पीड होती है उस समय और क्या कैचिंग पावर होती है उस समय अगर ये पॉवर ३ महीने भी होती तो ये सेकंड वाले क्या फर्स्ट डिविजन में न होते, ये कौन मान लेगा अगर हम ये लापरवाही का सिद्धांत रखते है की २५ साल तो कम से कम अभी जिएंगे ही तो देखो उसी प्रकार हमारी साधना होगी जैसे जुलाई में पढ़ने वाले की होती है, जब हमारे सिद्धांत में ये बात आ जाएगी की १ क्षण में समाप्त हो सकता है तो उस समय हम किताब के पन्ने को जैसे आखिरी समय में इम्तिहान के लिए जा रहे हैं और उस समय, हाँ भई जरा ये हं चले अब चले, उस समय जैसे हम दतचित होकर के पढ़ते हैं और उसको ग्रहण करते हैं ऐसी साधना हम करेंगे
- क्षणभंगुर वैराग्य छोड़ना है
- जैसे कुत्ते को डंडा मार तो दुश्मनी से देखता है मारने वाले और अपने दुःख को रो करके निकालता हुआ भागता और दूर जाकर जब कष्ट मिट गया और गुस्से में देख रहा है आपको डंडा मारा है आपने और आपने रोटी दिखाया तो दुम हिलाता हुआ कुत्ता फिर आ जाता है भूल गया वो चाहे दोबारा फिर डंडा लगा दे टुकड़ा देने के बजाय लेकिन वो आएगा बस बिल्कुल टू कॉपी यही हाल है हम लोगों का माँ के प्रति, बाप के प्रति, बेटे के प्रति, पति के प्रति, हर १ के प्रति, उसने डांट लगाई कैसा बाप है कैसी माँ है कैसी बीवी है क्या हमारी लाइफ ख़राब हो गई ऐसी बीवी से ब्याह हो कर के और उसने जहाँ फिर एक्टिंग की प्यार की, हं हं मेरी बीवी तो सती अनसूया है सब भूल भाल गया
- जितनी तीव्र श्रद्धा उतनी तेजी से आप चलेंगे
- आप लोग देखते है यहाँ से लखनऊ आप चलिए, आप चल रहे हैं पैदल लेकिन १ साइकिल वाला आपसे आगे निकल गया, हं हं उसके साइकिल है वो निकल गया होगा, मेरी भी साइकिल होती तो मैं ऐसे क्यों चलता पैदल ठीक है इनको साइकिल दे दो भई, अगर साइकिल भी दी जाए उसको तो कहेगा १ कार निकल गयी मेरे आगे से, साइकिल मिली तो लेकिन ये कार वाला हम से आगे निकल गया और अगर तुमको कार भी दे दी जाए ये हवाई जहाज वाला हमसे आगे जा रहा है, अरे तुम्हारे पास जो कुछ है उसी से तुम्हें चलना है आगे, वहाँ पहुँचना है तुमको ये नहीं सोचना है वो क्यों आगे निकाला जा रहा है
- साधन वैराग्य रूपी शास्त्र
- बदमाशों से बचने के लिए हमारे गाँव में लिया और कोई भला, कोई बच्ची, कोई तलवार, कोई रिवालवर, कोई बंदूक रखे रहते है अरे अगर जरुरत पड़ गयी तो उपयोग हो जाएगा की जरुरत पड़ गयी तो कुछ समय आप क्या गुरु के पास भागेंगे अरे गुरु जी बताओ क्या करू तब तक तो प्रहार हो जाएगा ऐसे ही साधन वैराग्य सदा साथ रहे, जब मन संसार की ओर भागे उस समय तुरंत डाँट लगाओ कहाँ जा रहे हो वहाँ न सुख है न दुःख है तुम क्या चाहते हो सुख की दुख ? मैं तो सुख चाहता हूँ तो सुख संसार में नहीं
- वैराग्य माने संसार से राग द्वेष रहित
- जैसे संसार में यों सोचो कि तुम्हारा मन किसी दुश्मन के प्रति है गुस्सा कर रहा है, रामदत्त नाम का दुश्मन है हमारा, अब तुमको किसी ने याद कराया सबक तुम रामदत्त से दुश्मनी छोड़ दो, तुमने याद कर लिया, हाँ सोचो इसी को बार बार दुश्मनी छूट जाएगी, सोचा रामदत्त से रामदत्त कौन रामदत्त वो बदमाश, दुश्मनी बढ़ने लगी क्योंकि रामदत्त का स्मरण हो रहा है हर बार, रामदत्त से दुश्मनी, दुश्मनी छोड़ दो, उसने हमारे साथ ये किया हम दुश्मनी छोड़ दे, लेकिन महात्मा जी ने कहा छोड़ दो अच्छा चलो छोड़ते है, रामदत्त से दुश्मनी छोड़ दो वो बदमाश, जितने बार आप याद करेंगे उसकी दुश्मनी प्लस होगी माइनस नहीं होगी, ऐसे प्रिय के प्रति जिससे आपका प्यार है और कोई कहे भुला दो उसको मन से, किसको ? उसको, उसको किसको ? उसको, याद आई और प्यार बढ़ेगा इसकी दवाई थोड़ी है ये तो उल्टा इलाज कर रहे हैं आप, इससे रोग नहीं जाएगा और फिर जो हमने साइंस बताई उसके अनुसार आनंद की भूख हमको नैचुरल है और प्रति सेकंड है ये भी कमाल और कहीं न कहीं हम आनंद मानेंगे जो देखेंगे संसार में वही तो मानेंगे और क्या करेंगे उसके आगे कहाँ जायेंगे
- १००% वैराग्य पहले नहीं हो सकता
- १ तरफ तो तुम बात ही बात करते हो ही भगवान में सुख है और इधर तो हमें प्रैक्टिकल आनंद मिलता है रसगुल्ले में, वो फिर घूम आता है संसार में, मन संसार में जो कुछ अनुभव करता है उससे ऊँची चीज मन को दो तब काम बने
- तत्वज्ञान सदा साथ रहे, भूला की दुःख शुरू
- हम लोगों को जो टेंशन होता है इसीलिए होता है न की हम भूल गए तत्वज्ञान को, की हमारा बाप, हमारी माँ, हमारा भाई, हमारा पड़ोसी हमारी ख़िलाफ़त करता है भीतर ही भीतर, आज बाहर करने लगा तो क्या आश्चर्य हुआ, क्यों फीलिंग हुई, भीतर क्यों पिंच कर रहा है वो अपयश ? तत्वज्ञान नहीं है इसलिए
- समय का मूल्य समझो
- १ सेकंड का समय भी अगर कोई संसारी बात कर रहा है तो ऐसा लगे जैसे कोई जबरदस्ती मेरे मुँह में गोबर मिट्टी आदि भर रहा है की खाओ उसी को और हम गोबर मिट्टी कैसे खाएँ ? यानि १ क्षण का समय भी संसारी विषयों में रुचि न उत्पन्न करे, इंटरेस्ट जिसे आप कहते है, ड्यूटी तो आपको संसार की करनी पड़ेगी, कीजिए, इंटरेस्ट न हो, जो अच्छा लगता है, किसी ने कहा तुमने सुना है ? क्या ? वो है तुम्हारे वो, हाँ हाँ, उनकी लड़की है न, हाँ हाँ, अच्छा रहने दो अभी नहीं बताते, अरे बताओ बताओ क्या है ? बड़ा इंटरेस्ट आ रहा है आपको सुनने में उनकी लड़की भगवान का कीर्तन कर रही थी अरे ये कौन सी खास बात है हम तो समझ रहे थे की वो भाग गई, या भगाई गई ऐसी कोई इम्पोर्टेंट बात होगी यानि हम लोगों को ये बीमारी है संसारी बात सुनने में बड़ा आनंद से मिलता है तो ये भाव भक्ति नहीं, १ १ क्षण व्यर्थ न होने पावे, भगवान का ही चिंतन रहे गुरु का ही चिंतन रहे भगवान के एरिया से बाहर न जाए मन, ड्यूटी करो, ड्यूटी का तो मतलब होता है अटैचमेंट रहित
- अगर ये आदमी आ करके, अरे साहब मैं क्या करूँ मेरे घर में आ गया, अण्ड बण्ड बोलने लगा, असभ्यता है न सुनना, ऐसी सभ्यता को गोली मार दो, उसको खुश करने के लिए अपना सर्वनाश किया तुमने २ घंटे तक अनावश्यक, दूसरे की बुराई सुनते रहे, सुना कैसे गया तुमसे ? शास्त्र ने आज्ञा दी है ? तुमसे कोई मतलब भी नहीं ख़ामख़ा, अरे तुम्हारे पास बुराई का ढेर है काहे को दुसरे के यहाँ ढूँढने के लिए गए
- १ सहेली आ गयी थी। २ ४ घंटे उसमें लग गए। लौकिक व्यवहार के चक्कर में अपने जीवन का कितना टाइम बर्बाद किया, अपना कितना बिगाड़ा किया, तुम्हे तो सहेली कुछ दे गयी ? दे नही जी क्या करते ? क्या करती तुम्हारा नुकसान करने तुम्हारे घर में कोई आवे और तुम आराम से उसको बुला लो टीका लो ये कौन समझदारी की बात है ? तुम अपने टाइम को क्यों नहीं भगत विषय में लगाते ? क्यों बर्बाद कर रहे हो समय ? कोई बुरा कहे देगा, विश्व में ऐसा कोई जीव नहीं जिसको १ भी अच्छा कहता हो तुम घोर मूर्ख हो जो ये सोचते हो की वो हमको बुरा कह देगा, फिर बुरा मान जाएगा, बुरा मान जाएगा वो अच्छा कब मानता है, तुम जब उसके आगे से अबाउट टर्न होके हटते हो न वैसे ही वो इशारा करता है वो बदमाश जा रहा है और अगर तुम फिर लौटे, आओ आओ हम तो कह रहे थे अभी जल्दी क्या है आप तो कभी आते ही नहीं, अपने हृदय की बात जब आप जानते हैं की हम दूसरे के साथ एक्टिंग करते है तो ये क्यों भूल जाते है की वो भी हमारे साथ एक्टिंग करता हो जिसको हम फैक्ट मान लेते हैं
- समय का सदुपयोग करो, आगे वर्तमान की भावना रहे न रहे
- एक भीष्मक थे राजा। आप लोगों ने सुना होगा, रुक्मिणी को आप जानते ही होंगे श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी, रुक्मिणी के बाप थे भीष्मक राजा। उनको वैराग्य हुआ तो घर बार छोड़कर चले गये जंगल में, भजन करने के लिये। नारदजी पहुँचे उन्होंने कहा तुम्हारे घर में सोलह वर्ष की लड़की कन्या बैठी हुई है और तुमने विवाह नहीं किया, और तुम भाग आये बाबा जी बन गये। तो भीष्मक ने कहा नारदजी तुम तो बाबा जी हो तुमको क्या पता। तुमने शास्त्र वेद तो पढ़ा ही होगा कि कन्या की शादी अगर कन्या के अनुरूप वर से न करें तो भी बाप को दण्ड मिलेगा। तो मेरी कन्या में जितने गुण हैं, उसके अनुसार दुनियाँ में कोई वर ही नहीं है, मैं किससे ब्याह कर दूँ। भाड़ में झोंक दूँ ? तो विवाह न करना ठीक है लेकिन गलत जगह विवाह करना इसके लिये दण्डनीय होगा बाप। नारदजी ने कहा, ओह ये बात है अच्छा तो सुनो मैं बता रहा हूँ, तुम बुद्ध हो रुक्मिणी महालक्ष्मी की अवतार हैं और श्रीकृष्ण भगवान् के अवतार हैं, वह द्वारिका में हैं, वह वर हैं उपयुक्त, उनके लायक, जाओ विवाह कर दो। भीष्मक ने कहा कि आप ठीक कह रहे हैं या मज़ाक कर रहे हैं। उन्होंने कहा मैं भगवान् की शपथ खाकर कह रहा हूँ मैं ठीक कह रहा हूँ। तो उन्होंने कहा नारदजी ! तब तो मैं निश्चित हो गया, वह लक्ष्मी वह भगवान् अपने आप मिल लेंगे, हमारी क्या जरूरत है। (हँसी) और तुम नहीं जानते हो नारद जी अगर मैं फिर घर जाऊँ तो घर में वह बीबी वह बच्चे, उनकी ममता, उनकी आँखों में आँसू, जब मैं देखूँगा न तो फिर मैं कहीं बिगड़ न जाँऊ, कहीं मैं उधर दुलक न जाऊँ, नरवस न हो जाऊँ, हमारा मन उधर खिंच न जाय कहीं, अच्छा भई ये रो रही है लड़की, रो रहा है लड़का, कल चले जायेंगे, अपन को तो जाना ही है जंगल में और जब दिन भर रहे, बेटा, बेटी बीबी सब लिपटे रहे शरीर में। हाँ तो फिर रहने दो अगले साल चले जायेंगे, ऐसी क्या जल्दी है, जाना तो है ही है। हो गया बंटाढार। अगर समय का सदुपयोग न किया तो फिर ये भावना आपकी जो वर्तमान में है कल को न रहे। कल को न रहे उसमें दो रीज़न हैं, बड़े-बड़े। एक तो है कुसंस्कार, कभी-कभी कुसंस्कार ऐसे आ जाते हैं और नेचुरल हमारे आइडियाज खराब होने लगते हैं
- मानव देह का सदुपयोग नहीं किया तो दुरुपयोग भी उतनी स्पीड से होगा
- जैसे १ गाय है १ भैंस है बैल है जरा कोई बतावे की गाय भैंस बैल क्या चोरी कर सकते हैं और कहाँ चुराके रखेगें उसको, उन्होंने जीवन में कीतनी चोरी की होगी और जरा आप लोग अपने अपने लिए सोचिए बंद कमरे में अकेले, कितनी चोरी की आप लोगो ने, आप लोग कहेंगे चोरी अरे कोई खास चोरी तो नहीं की, अरे १ दिन में हजार चोरी करते है कहते है खास चोरी नहीं की, १ दिन में हजार चोरी, वो जा रहा है ये बदमाश जा रहा है और वो सामने आ गया आइए आइए पाण्डे जी आइए, ये क्या है ये चोरी हैं न, अंदर से तुमने उसके प्रति गंदी भावना की और वो सामने खड़ा हो गया सम्मान करे, ईश्वर नहीं है इसका मतलब यही तो हुआ, अगर ईश्वर को तुम मानते तो ये गलती न करते, ये अपराध न करते, ये चोरी न करते, गुरु से चोरी, भगवान से चोरी, सब से चोरी, हजार बार चोरी करते हो १ दिन में, ये सब अपराध है ये मत सोचिए की ये सब कौन जानता है, कौन जानता है अरे वो भीतर बैठा नोट कर रहा है तुम गफलत में हो बेहोश हो सब पता है उसको
- मनुष्य होने का फायदा क्या जब तक शरीर को हम रोगी न बना दे और दिन रात इंजेक्शन लगा लगाकर जिन्दा न रहे तो मनुष्य होने का एडवांटेज क्या मिला हं, मनुष्य होने का मतलब यही है की शरीर को ऐसा बना लो की न दौड़ सको, न भाग सको, न स्फूर्ति हो, न ताकत हो और ३० ३५ साल में ही बुढ़ापे का अनुभव होने लग जाए और ५० पहुँचते पहुँचेते खाट पर उत्तानपाद हो जाओ हं, मानव देह में फिर हम लोग पढ़े लिखे हैं काबिल हैं तो काबिलीयत का उपयोग यही है हमारी बुद्धि यही केहती है की भगवान ने जो सामान बनाया है संसार में उसको अकल नहीं थी, लौकी बनाया तुरई बनाया तमाम सामान बनाये लेकिन उसको बुद्धि थी नहीं बनाने की तो हम लोग भगवान के बनाए हुए वो फिर बनाते हैं उसको काट के छिलका निकाल के मसाला में डाल कर, तेल घी में भून कर उसको बर्बाद करके और poisinous बना करके पेट में डाल ले ताकि तुम सब लोग मिल कर के शरीर को खूब नष्ट करो और फिर हार्टअटैक हो तमाम वगैरा वगैरा आप लोग सब भोगते ही हैं जानते ही हो हं छोटे छोटे बच्चों को सर में दर्द है वाह, १८ १८ घंटे बोलने का हमारा रिकॉर्ड कभी किसी ने देखा यों करते सर में दर्द है, ये युवक युवतियों को सर में दर्द हो रहा है हं, ये सब बर्बाद करके उस वस्तु का उपयोग करते हैं और फिर केह ये देते हैं हमारे भाग्य में यही लिखा है, भाग्य को कोसने का १ हमारा ऐसा नेचर हो गया है की अपनी बुद्धि में दोष न देख कर बाहर ही घुमा करते हैं अभ्यास है, तो इन पांचों इंद्रियों के अनंत सामान हैं जिन्हें हम विषय बनाते हैं देखने के अनंत, सुनने के अनंत, सूंघने के अनंत और जितना ही मिलेगा उतनी ही वासना बलवती होगी और ये सब जितना मैं बता रहा हूँ इसका अनुभव सबको अनंत जन्म में हो चुका है वर्तमान में भी हो रहा है इसी का नाम मिलन
- उधार के कारण ८४ लाख में घूम रहे
- क्यों जी १० दिन से आप भूखों मर रहे थे हमने सोने की थाली में सोने की कटोरियों में ५६ प्रकार के व्यंजन बना के परोस के आपके सामने रख दिया अब क्या बात है, अब खाए कौन, खाने का लेबर है, इसको मुँह में रखना पड़ेगा फिर दांत चलाना पड़ेगा काफी देर तक फिर जब वो बिल्कुल पानी सरीका हो जाए तो अन्दर ले जाना पड़ेगा फिर दूसरा गस्सा उठाना पड़ेगा इस प्रकार पंद्रह २० मिनट करना पड़ेगा, हँ यही तो बात है बस और क्या बात रह गई है अब जब आपको सब कुछ मालूम हो गया श्रीकृष्ण भक्ति करना है इस प्रकार से करना है करके आपको बताया गया तो अब क्या बात है जो आप उधार कर रहे हैं, जरा ये हो जाए, जरा वो हो जाए ये जरा जरा करते करते तो आपके अनंत जन्म बीत चुके है आगे भी अनंत बीतेंगे लेकिन जरा खत्म नहीं होगा, जब मनुष्य शरीर पाने के बाद भगवत तत्व का ज्ञान कराने वाला भी मिल जाए तो अब और क्या पाना बाँकी है अब करना बाँकी है
- १ सेठ जी थे उनकी १ सेठानी थी तो सेठानी कीर्तन भजन में जाया करे बेचारी ओ सेठ जी कभी भूलकर भी न मंदिर जाए न कीर्तन भजन में जाए न घर में कुछ करे, तो बड़ा दुःख था की ऐसा पति मिला नास्तिक ओ बड़बड़ाती भी थी, अरे अब तो मरने के दिन हैं चलो तीर्थ ही करी आवें कुछ तो करे, पैसा पैसा पैसा आखिर जब मरोगे तो शरीर भी नहीं जाएगा ये पैसा कैसे जायेगा साथ में, बैठी रहे बैठी रहे औरतों को अकल तो होती नहीं कुछ बस, १ बार सेठ जी बीमार हुए सीरियस, डॉक्टर आया उसने कहा ऐसे ऐसे दवा देना दिन में ४ बार, अब सेठ जी को तो शरीर की चिंता थी इसलिए वो घड़ी देख रहे थे अपनी बीवी को बुलाया उन्होंने कहा अरे देख ४ घंटे हो गए ६ घंटे हो गए दवा दे, अरे तुम तो आफत मचाए हो देती हूँ फिर चली गई रसोई घर में, अब वो चिल्लाए जा रहा है सेठ अरी सुनती नहीं हो १ घंटा लेट हो गया, अरे तो क्या हुआ १ घंटा लेट हो गया देती हूँ, २ घंटा हुआ ३ घंटा हुआ उसने दवाई नहीं दी, जब सेठ जी आग बबूला हो कर के उसे सीरियस अवस्था में ही काँपते हुए बड़ी मुश्किल में उठ कर बीबी के पास गए गाली बकते हुए तो बीबी ने कहा जल्दी क्या है, आप भगवत विषय में कहते हैं न की जल्दी क्या है कर लेंगे तो जल्दी क्या है दवा दे देंगे, हाँ क्यों आफत मचाए हो, अरे थोड़ा भोगो जल्दी क्या है
- संसार में किसी स्त्री के पास सारा सामान हो रोटी दाल चावल हर १ का सामान, खूब बढ़िया बढ़िया क्लास का, ऐ देहरादून का ए वन क्लास का चावल है और ये अमुख मसाले हैं और अमुख तरकारियां हैं और घी है असली, सब रखा हुआ है अब रोए हाए राम मुझे भूख लगी है मेरा पति भी भूखा है मेरे बच्चे भी भूखे है हे भगवान दया कर, तो १ आदमी पूछता है क्या दया करे भई तुम्हारे ऊपर भगवान, क्यों भूख हो तुम लोग, आटा नहीं है ? वो तो है, दाल नहीं है ? वो तो है, लकड़ी नहीं है क्या बनाने को ? वो भी है, तो फिर खाना नहीं बनाया तुमने हाँ खाना नहीं बनाया, क्यों नहीं बनाया ? हमने कहा कौन बनावे, ये लो ये भी कोई बात हुई, ये भी कोई समझदारी की बात है की सब समान तुम्हारे पास है भूखे मर रहे हो मनुष्य शरीर भी मिला और तुम्हें महापुरुष भी मिला सब बात समझाया भी, तुम समझ भी गए, तुम्हारा रोम रोम स्वीकार कर गया है, हाँ ठीक है ये करना चाहिए फिर करते क्यों नहीं, करते क्यों नहीं क्या तुम समझते हो तुम इसी प्रकार बने रहोगे अनंत काल तक संसार में अरे क्या पता कल का दिन मिले न मिले तुम्हारी सब प्लानिंग धरी रह जाएगी अपने भाइयों को देखते नई कितने जा रहे हैं रोज बिना बताए, वो जितने उनके प्लान थे सब धरे रह गए छोटा बड़ा, बुधिमान मुर्ख, सुंदर कुरूप, धनी निर्धन, किसी के लिए कानून नहीं ये जाएगा ये नहीं जाएगा समय आया चलो इसलिए फ़ौरन जल्दी क्यों नहीं करते
- देखो आपके शहरों में दंगा फसाद होता है लूट मार होती है तो जब कोई लूटने वाला किसी चीज को लूटता है तो लूट कर फौरन भागता है और भाग कर गली और कोने और अनेक प्रकार के टेड़े मेड़े रास्तों से उस सामान को ऐसी जगह सुरक्षित रखता है जहाँ और कोई देखे न जाने न, वो ऐसा नई करता की लूट के वहीं खड़ा है सड़क के ऊपर ये तो हमारा हो गया हमारे हाथ में है ये तो हमारा हो गया अरे नई पुलिस आएगी अभी पिटाई भी करेगी सामान भी छीनेगी और जेल भी होगा, जल्दी भागो खड़े न रहो १ सेकंड भी, सामान लेकर भागो, देखो मूर्ख तस्कर भी डाकू भी ये बात जानता है लेकिन हम लोग ज्ञान भी हमारे पास है, हाँ कर लेंगे ये कर लेंगे वाली बात जो हमारे मस्तिष्क में बार बार आती है कर लेंगे समझते तो सब हैं ही हैं बड़ी भगवत कृपा है गुरु कृपा है जो लाखों वर्षों में पढ़ कर न समझ सकते वो हमारे भाग्य थे या भगवत कृपा जो कुछ कह लो वो बात सब बन गई हमको कोई मिल गया ‘समझा’ दिया ‘समझ’ में आ ही गई ऐसा भी नई की जबरदस्ती मान रहे हैं बुद्धि भी केह रही है हाँ बिलकुल ठीक है बात तो बिल्कुल ठीक है और करना पड़ेगा हम ही को ये भी ठीक है और करना चाहिए ये भी ठीक है लेकिन कर लेंगे, कर लेंगे, ये जो कर लेंगे वाली बात आपके मस्तिष्क में बार बार आती है और करने नहीं देती है उधार करवा देती हैं
- भगवद् मिलन सोच कर विभोर होना है जैसे संसारी मिलन सोच कर विभोर होते हैं
- १ माँ के पेट में बच्चा है, अभी हुआ नहीं और वो बच्चा पेट से गिर गया गर्भपात जिसे कहते है माँ रोती है, बच्चे को कभी गोदी में खिलाया न, क्यों रोती हो ? अरे वो खुश हो रही थी जब उसके पेट में बच्चा था, क्यों देखा था क्या बच्चे को ? सुना था क्या उसका शब्द ? सुंघा था क्या उसको ? कोई इन्द्रिय का विषय मिला था क्या उससे ? नहीं, फिर खुश क्यों हो रही थी माँ ? इसलिए की वो मिलेगा, मिलेगा वो बच्चा आएगा बाहर तो देखेंगे सुनेंगे इत्यादि, हाँ तो फिर इसका मतलब ये मिलेगा ये सोच कर माँ विभोर हो सकती है ? हाँ तो श्याम मिलन की बात सोच कर जीवात्मा क्यों विभोर नहीं हो सकती
- जितना इम्पोर्टेंस माना उतना अटैचमेंट
- विदेह जनक परमहंस ब्रह्मज्ञान सुन रहे थे, गुरूजी उनके उपदेश कर रहे थे और भी तमाम शिष्य थे, उनके उपदेश को सुन करके जनक इतने समाहित चित्त थे की उनके कर्मचारी जनकपुर के आए और कान में कहा जनकपुर भर में आग लग गई सब जल रहा है उन्होंने यों भी सिर नहीं किया, महाराज रहनिवास जल रहा है आपका महल जल रहा है उन्होंने गर्दन नहीं घुमाई, ये है शुश्रूषा संसार में जब आपकी कोई बुराई करता है दीवाल के पीछे तो कैसी समाधि लगाते हैं सामने से बेटा चला जाए बीबी चली जाए सब भाड़ में जाए, हमे क्या कह रहा है ये सुनना है इतना भी महत्व नहीं है आप लोग के आगे शास्त्र वेद के गुढ़ रहस्य को समझने का
- बुद्धि के निश्चय से आश्चर्यजनक परिवर्तन + पिछला अनुभव आगे किसी को स्मरण में नहीं रह सकता
- कोई भी लड़की जब बहु बनकर के अपनी ससुराल जाती है पहले दिन, उसके ऊपर क्या बीतती है ? ये उसी क्षण वह उससे समझ सकती है और बाद में पूछो तो वह भी बता नहीं सकती, कैसा लगा था पहले दिन। क्योंकि पिछला अनुभव आगे किसी को स्मरण में नहीं रह सकता। अगर पिछला अनुभव आगे के क्षण में अनुभव में आ जाय तो फिर एक बार रसगुल्ला खा लो और उसके बाद जब चाहो सोच लो हमेशा को छुट्टी, वो लड़की ससुराल पहले दिन जब गई थी कितना बोझ था उसके सिर पर, पता नहीं कैसा पति हो ? कैसी सास हो ? कैसा ससुर हो ? कैसा जेठ हो ? कैसा देवर हो ? कैसे चलेंगे हम ? कैसे बोलेंगे ? कैसे बैठेंगे ? कैसे हँसेंगे ? क्योंकि वह चचंल प्रकृति की लड़की मायके में उछलने कूदने वाली, उछृंखल और सुसराल में जाते ही जो उसकी चाल होती है घर में घुसते समय आप लोगों ने देखा होगा, मिलिट्री वालों की चाल को मात कर देती है। एक पत्तल पर पैर रखेगी फिर दूसरा पैर धीरे से उठाकर के दूसरे पत्तल पर रखेगी। ये किसी ने ट्रेनिंग दी है उसको ? इतनी गम्भीर अपने आप कैसे बन गई वह। केवल बुद्धि में निश्चय हो जाय बस एक क्षण में मनुष्य क्या से क्या बन सकता है
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