मायिक दोष का स्वरूप
- मायिक दोष प्रत्यक्ष विषय पाकर बलवान हो जाते हैं
- १ बच्चे आराम से बैठा है लेकिन उसके सामने रसगुल्ला रख दो, अब वो देख रहा है बार बार परेशान हो रहा है नहीं रहा गया, मम्मी मम्मी वो रखा है, लार गिर रही है मुँह से, वस्तु को देखने से मन का जो रोग छुपा हुआ था वो भर आया बलवान हो गया,
- आप पूजा कर रहे हैं ध्यान कर रहे हैं भगवान में मन लग रहा है आपका नाती पोता बेटा कोई पीछे से आया और उसने अपना छोटा सा कोमल हाथ आपके पीठ में लगाया, वो स्पर्श बड़ा मीठा लगा,आँख बंद है आप पाठ कर रहे हैं जप कर रहे हैं अपना चल रहा है आपका 'मंगल भवन अमंगल हारी' पीछे हाथ किया, देखिये मन चला गया उधर, गया atmosphere हावी हो गया और छोटे बच्चे को पीछे से उठाया और गोद में कर दिया 'मंगल भवन अमंगल हारी' ये पाठ चल रहा है लेकिन आप रजोगुणी हो गए अब ईश्वर से कोई संबंध नहीं रख रहे है अब बेटे से रख रहे हैं पोते से रख रहे हैं उसके चिपटाए हुए हैं अच्छा लग रहा है और पाठ हो रहा है पूजा हो रही है जप हो रहा है जो भी नाटक कर रहे थे उपासना करने का लेकिन अब गलत हो रहा है और अगर इसी बीच में पड़ोसी आ जाए और खड़ा हो के कहे, क्यों बी कल तू क्या कह रहा था ? छोड़ के फिर भीड़ गए उससे, देखो तमोगुण आ गया, ये अच्छा खासा ध्यान कर रहा था भगवान का देखने में कितना सुन्दर लग रहा था ये तो राक्षस हो गया १ सेकंड में, १ सेंटेंस में, जो वातावरण आपको मिलेगा वही दोष प्रकट होगा, वो दोष पहचानता है अपने वातावरण को
- १ व्यक्ति रास्ते से जा रहा है, दुश्मन है हमारा उधर रहता है, यहाँ तो नहीं है ? नई हटाओ चलो देखा जाएगा, सामने आ गया, ये बदमाश आ गया, अपना प्रिय है वहाँ रहता है अपना प्रियतम, वहाँ रहती है अपनी प्रेयसी, वहाँ रहता है अपना बेटा, सामने आ गया अब प्यार बढ़ गया, दौड़ कर माँ बेटे को चिपटा लेती है, इस प्रकार वो वो दोष भीतर वाला संसार बाहर वाले संसार को पाकर ऐसा बढ़ता है जैसे जलती हुई आग में कोई घी डाल दे और दुगनी हो जाए इसलिए हमें ये भी समझे रहना है की बाहर का संसार तब तक खतरनाक है जब तक भीतर का संसार बना हुआ है
- जैसे आपको किसी ने घूस दिया ५ रुपया ले लो ? अरे ५ रुपए के लिए क्या ईमान छोड़े, क्या ५ रुपए काम आएगा कै दिन चलेगा, नहीं जी हमको नहीं लेना, १० रुपए ले लो ? १० रुपए ५ रुपए के लिए, नहीं, नहीं लेना, १००० ले लो ? १००० १० नोट हैं १०० १०० के ले लें लेकिन नहीं लेना, अच्छा १ लाख ? १ लाख, लाओ यार देखा जाएगा जो होगा मरने के बाद, देखो १ ऐसी लिमिट आती है जहाँ पर हम फेल हो जाते है, इसी प्रकार हर १ दोष में १ लिमिट होती है जहाँ तक हमारी स्पिरिचुअल पॉवर होगी उतनी लिमिट में जब तक कोई गड़बड़ी रहेगा तो उसको सह लेगा और उस लिमिट से बाहर कोई चीज आएगी तो फिर कंट्रोल से बाहर हो जाएगा
- मायिक दोष सबमें सदा बीज रूप में विद्यमान हैं
- १०० रुपए का नोट पड़ा है, ए कोई नहीं है उठाओ, आ गये लोभ साहब, कौन अनाउंस करे सत्संगियों में किसका १०० रुपए का नोट है, १०० रुपए का है न कौन अनाउंस करे, १ रुपए का हो तो कर दो, अपनी शान भी रह जाएगी इमानदार भी कहलाएँगे, सारे दोष भीतर बीज रूप में विद्यमान हैं और जिस दोष का atmosphere मिलेगा वो दोष बलवान होकर आउट हो जाएगा
- आजकल हमारे ही देश में कई बड़े बड़े महात्मा नामधारी है, वो रजिस्टर बनाये हुए हैं और जो उनसे कान फुकाता है चेला बनता है उनसे कहते है साइन करो हमने काम छोड़ा क्रोध छोड़ा १ चीज छोड़ो इसमें लिखो, उसका क्या बिगड़ता है लिख दिया हमने क्रोध छोड़ा हमने लोभ छोड़ा अरे लिख देने से छूटेगा वो, बड़े बड़े योगिंद्र मुनींद्र सृष्टि करने की सामर्थ रखने वाले विश्वामित्र भी फरसा लेकर वशिष्ठ को मारने के लिए उनके आश्रम में रात को छुप कर बैठ गए, जो नया स्वर्ग बना सकते हैं त्रिशंकु के लिए इतनी बड़ी पॉवर है जिनके पास, ये क्रोध ईर्ष्या, वशिष्ठ से बार बार हारने पर विश्वामित्र ने कहा इसके सामने खड़े होकर हम नहीं जीत सकते ये ब्रह्मऋषि है मैं राजऋषि हूँ ब्रह्म तेजो बलम बलम इसलिए छुप करके रात को फरसे से इसका सिर काट दे तो हमारा दुश्मन समाप्त हो जाए ये विश्वामित्र सरीके सप्तऋषियों में जिनका नाम है
- १ बार इंद्र के आगे भगवान प्रकट हुए तो भगवान ने कहा वर मांगो, तो उन्होंने कहा कि महाराज ऐसी लड़की दीजिये सुन्दर जैसे त्रैलोक में न हो, भगवान मुस्कराए पीछे मुँह करके और उन्होंने १ करोड़ लड़कियां खड़ी कर दी योगमाया से और कहा चुन ले, वो पहली लड़की देखा वहीं मुग्ध हो गया और कहा इसी को दे दीजिये महाराज, ले जाओ, उर्वशी नाम सुना होगा आप लोगो ने और उसको ले कर गया आपने गुरु के पास गया बृहस्पति के पास, लोग शादी ब्याह करते हैं तो गुरु से आशीर्वाद लेने जाते हैं न, तो बस बृहस्पति ने कहा ये लड़की नई नई आई स्वर्ग में, बड़ी सुन्दर कहाँ से आई रे इंद्र ने कहा भगवान मिले थे, धत तेरी की भगवान मिले थे भगवान से यही मांगा, तू ने बदनाम कर दिया अपने गुरु को अरे भगवान से उनकी भक्ति मांगता और मूर्ख हो जाता मोक्ष मांग लेता ये क्या मांगा तुमने, ये इंद्र का हाल है तो मानस रोग सबको हैं लेकिन बिरले ऐसे हैं जो उसको जानते हैं माने मानते हैं जब मानेगा तो इलाज की सूझेगी और जब जानते ही नहीं हैं तो मानेगा नहीं, जब मानेगा नहीं तो इलाज के लिए न डॉक्टर की कुछ परवाह होगी
- १ गेहूं का बीज चने का बीज बोरे में बंद हैं साल भर से कोई अंकुरित नहीं पैदा हुआ, खेत में डाला उसमें गोबर की खाद सुपर फास्टफेट अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट खादें डाल दी, सूर्य की लाइट मिली, पानी मिली, हवा मिली, पेड़ बन गया, ये कहाँ से पेड़ बन गया बीज तो बोरे में १ साल में नहीं बना और ये १० दिन में बन गया अरे सब था अंदर अंदर सब था, ऐसे ही सारे मायिक दोष बीज रूप में हर १ मायाबद्ध जीव के अंदर रहते हैं जैसे उसका वातावरण मिला प्रकट हो जाते हैं, जितनी कम वासनाएँ होंगी हमारी हम उतने अधिक शांत रहेंगे
- स्वर्ग सम्राट इंद्र ब्रह्मा का पद चाहता है, प्यासा है दुखी है अशांत है वासनाओं से युक्त है हमारी पृथ्वी पर कोई तपस्या कर रहा है ये ध्रुव, ये भगवान की भक्ति कर रहा है और इंद्र को ईर्ष्या हो रही है, अरे कहीं मेरा इंद्रासन न छीन ले, इसके पास अप्सरा भेजो इसका पतन कराओ, मृत्युलोक की स्त्री अहिल्या पर आसक्त हो रहा है स्वर्ग सम्राट इंद्र तो वहाँ की पब्लिक का क्या हाल होगा
- जब आप लोग जातें हैं किसी के यहाँ मेहमान बनकर तो कैसा व्यवहार करते हैं सोचिए कैसे शांत, जी मैं हेल्प कर दू, जी जी नहीं मैं तो अभी खा के आया हूँ, जो मीठा मीठा व्यवहार एक्टिंग वाला हम लोग आपस में करते हैं इससे कोई किसी को नहीं ‘समझ’ सकता, जब कुछ दिन उसके साथ रहे तब समझ में आया अरे ये तो बदमाश निकला, बदमाशी अच्छाई की कोई बात नहीं है, बात तो है ३ गुण की वो सात्विक राजस तामस ३ गुण सदा सब में रहते हैं
- ये जो MA और DLit की डिग्रियाँ हैं ये तो सर्कस है जैसे कोई हाथ हिलाना सीख ले, कोई गर्दन हिलाना सीख ले ऐसे जबान हिलाना सीख लिया १ ने अधिक अभ्यास कर लिया १५ २० साल तो जबान हिलाते हिलाते वो DLit हो गया, क्या आपने देखा है कहीं विश्व में की घसियारा अधिक क्रोध करता है और DLit कम करता है कहीं देखा है क्या ?
- १ मूर्ख आपको मुर्ख कह दे और आप मूर्ख बन कर क्रोध में पागल हो जाते हैं इसने हमको मूर्ख कहा परसों और मैं आज तक जल रहा हूँ और फिर आप ये कहते फिर रहे हैं इस बेवकूफ ने हमको बेवकूफ कहा, अरे कहा तो तुम बेवकूफ क्यों बन गए ? अगर तुमको कोई कहते की तुम बैल हो चलो तुमको हल में जोतेंगे खेत में, तो तुम हँसोगे न हमको बैल कहता है तो ऐसे ही अगर कोई हमको मूर्ख कहता है तो हम क्रोध क्यों करते हैं ? मूर्ख क्यों बन गए ? उसेने मूर्ख कहा, अगर १ मूर्ख १ शब्द बोल कर हम को मूर्ख बना सकता है क्रोधी बना सकता है तो फिर हमारी नॉलेज है क्या ?
- सब मर गए हैं ? हाँ, कोई नहीं तुम्हारे ? न, कोई प्रापर्टी नहीं ? न, रसगुल्ला देखा मन ललचा गया, ये देखो अन्दर बैठी रसना, कान से सुना सुन्दर शब्द, सम्मान के शब्द, स्तुति के शब्द, प्रशंसा के शब्द अच्छा लगा, बुराई सुना बुरा लगा, नाक में खुशबू आई हें बड़ा अच्छा फूल है यहाँ पर, बदबू आई रुमाल रखकर भागे, देखो सब को बीमारियाँ है कम हो ठीक है एटमॉस्फियर मिलेगा जिसको उसकी बीमारी बढ़ेगी, एटमास्फियर नहीं मिलेगा उसकी बीमारी कम रहेगी, लेकिन बीमारी है क्योंकि माया है क्योंकि अनंत जन्मों में हमने उन सब विषयों का सेवन किया है उसके संस्कार है मेन प्वाइंट, हमने अनंत जन्मों में अनंत माँ का प्यार, अनंत बाप का प्यार, अनंत पति का प्यार, अनंत बीबी का प्यार, अनंत बेटो का प्यार, अनंत संसार का प्यार पाया है भोगा है उसके संस्कार भीतर बैठे हैं अड्डा जमाए हुए इसलिए अगर वो सामान मिलता है तो वो वासनाएं बढ़ जाती है सामान नहीं मिलता तो जरा सी उठी दब गई उठी दबगई इतना होता है, हैं वो सब, वो गई नहीं
- जिसकी आँख में पीलिया का रोग होता है वो सर्वत्र पीला पीला देखता है हम लोग कहाँ गलती कर रहे हैं ? दूसरे में दोष देखते हैं, इसका मतलब क्या ? हमारे अंदर दोष भरा है वही बाहर निकल रहा है सब जगह दोष ही दिखाई पड़ रहा है वरना अगर कोई लैला मजनू भी सामने आ जाता तो हम कहते ये मीरा श्रीकृष्ण के प्रेम में विभोर है हम वही अर्थ लगाते, लेकिन हम जब गलत हैं तो सचमुच मीरा अगर मेरे सामने आ जाय तो हम लोग कहेंगे की ये भी लैला मजनू का स्वरूप है, प्रत्येक व्यक्ति अपनी बुद्धि के अनुसार देखता है और निश्चय करता है
- दूसरे के मायिक दोष अपने अंदर ग्रहण न करो
- महात्मा बुद्ध की १ ने सबेरे से निंदा शुरू की तो शाम तक करता रहा गाली देता रहा तो शाम को महात्मा बुद्ध ने कहा है अपने शिष्य से इसको कुछ खिला पिला २ भई बेचारा थक गया होगा तो उसने कहा कि तुम आदमी हो के पत्थर हो तुम्हारे ऊपर अशरे नहीं हुआ इतनी गाली दी मैंने उन ने कहा देखो भैया अगर भूखे आदमी की थाली में कोई पत्थर मिट्टी लकड़ी गोबर परोस दे तो भूखा आदमी नहीं खाएगा न भूखा तो हैं लेकिन वो नहीं खाएगा है नहीं खाएगा तो तुमने जो कुछ दिन भर दिया वो हमारे काम का था ही नहीं हमने लिया ही नहीं तो वो देने वाले के पास रहेगा कोई भी सामान किसी को कोई देना चाहे लेने वाला कहता है हमको नहीं चाहिए तो वो सामान देने वाले के पास पड़ा रहेगा तुमने इतनी गाली देने में गुस्सा किया और जलते रहे तो तुम्हारा नुकसान हुआ हमने उसको लिए ही नहीं क्योंकि हमारे काम की चीज नहीं थी कोई भगवान की बात सुनाते भगवान की लीला सुनाते तो हम ले लेते बुरी चीज हम क्यों ले यह सब सोचना चाहिए और डेली अभ्यास करना चाहिए तो हमारी हानी न हो हम जो कमाए वो बना रहे हम दिन भर कमाये और फिर उसको लुटा दें ऐसी कमाई से फायदा
- संसार में मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी मिट्टी नहीं खाता, पत्थर नहीं खाता, कोयला नहीं खाता, कोई चीज नहीं खाता, रोटी दाल चावल खाता है, अगर दाल में कहीं कोयला निकाल आया गलती से खाना पकाते समय कोयला गिर गया तो गरीब आदमी उसको निकाल कर बाहर कर देता है और खाना खा लेता है अमीर आदमी उसको अलग कर देता है पूरे खाने को, फिर से लाओ दाल अंधे हो दिखाई नहीं पड़ता, तो उसी प्रकार ऐसा है की जो खराब चीज है उसको काहे को अन्दर ले जाए, तेरी गली से मेरा कोई फायदा तो होना नहीं है ये बेकार चीज है तो बेकार चीज को हम क्यों सुने फिर सोचे फिर उसको अन्दर ले जाए, जैसे हम शरीर के लिए हम अच्छी, अच्छी चीज़ अन्दर ले जाते हैं जो शरीर को फायदा करे उसी प्रकार आत्मा के कल्याण के लिए भी हमें बढ़िया, बढ़िया चीज़ अन्दर ले जाना है भगवान की कोई बात हो, महापुरुष की कोई बात हो, कोई भगवत विषय कोई विचार हो बड़े ध्यान से सुनो अन्दर ले जाओ उसका फायदा होगा, ये बेकार की बात, गन्दी बातें ले जा के अंतःकरण को और अशुद्ध करें और गन्दा करें, अगर हमारे संसार में माँ बाप बेटा बेटी ही नहीं बल्कि सारे संसार के लोग गड़बड़ है तो उनके गडबड गड़बड़ी का हम चिंतन करेंगे तो बस यही किया करेंगे २४ घंटे और गड़बड़ी तो जाएगी नहीं, जब राम राज्य में धोबी पैदा हो सकता है बकबक करने वाला तो भला इस कलयुग में बकबक करने वाला १ भी आदमी न मिले ये कैसे हो सकता है यहाँ तो सेंट परसेंट लोग कमर कसे हुए हैं
- जैस COVID positive वालों से दूर रेहते हो शरीर के लिए, ऐसे ही मायिक दोष की बीमारी किसी में है काम, क्रोध, लोभ, द्वेष, ईर्ष्या आदि, तो तुम अपने अंदर बीमारी क्यों लाते हो, छूत की बीमारी क्यों पैदा कर रहे हो, दूर रहो, बीमारी कम करो उसको बढ़ाओ मत
- भगवद्प्ताप्ति के बिना मायिक दोष नहीं जाते
- जैसे कबड्डी में १ लाइन होती है उस लाइन को छू ले, अब कोई डर नहीं आओ हमको छुो जो छुएगा सब मर जाएंगे, लेकिन जब तक वो कबड्डी की बीच वाली रेखा को न छू लो तब तक तुम अगर पकड़ गए तो मरे फिर नहीं बच सकते, बिलकुल लाइन के १ बाल भी अंतर भी रह गया तुम्हारे हाथ के पहुँचने में लाइन को टच नहीं किया तो तुम मरे, लाइन छू लिया तो बाकी सब मरे तुम बच गए, तो वो सिद्धांत है थोड़ा भी अंतर अगर है ईश्वर प्राप्ति में, थोड़ी भी कमी है तो फिर तुम्हारा पतन हो सकता है अंतिम, होशियार रहो सदा दुश्मन को कम मत समझो कभी भी इसलिए सारे दोष बलवान है और सभी पूरी पॉवर रखते है जीव के नाश के लिए, किसी कारण वस कोई दबा हुआ है इसलिए ये मत सोचो वो चला गया है वो छुपा बैठा है
- जैसे १ समझदार गृहणी अपना घर बंद करती है तो १ बार चेक कर लेती है रात को, सब खाने का भी देख लिया किवाड़ा वो भी देख लिया, वो भी सब जगह देख के तब सोती है आराम से, नहीं कोई चोर आके घर में बैठा हो गुसलखाने में हमने चेक नहीं किया रात को सामान लेके अपना सीढ़ी से उतर जाए और हम अपना खर्राटे ले रहे है वो बेवकूफ स्त्री है, हँ तो उसी प्रकार हमेशा हमको सावधान रहना है इन दुश्मनों से लेकिन इनका इलाज ये नहीं है की छोड़ो छोड़ो छोड़ो का चिंतन करो इससे छूट जायेंगे, इसे नहीं छूटेंगे ये बात गलत इनके छोड़ने का इलाज छोड़ना कहना या सोचना नहीं है ये दोष ऐसे नहीं छूटेंगे, फिर कैसे छूटेंगे ? राम भजन बिनु मिटहिं न कामा, थल बिहीन तरु कबहुँ की जामा जब भगवान से प्रेम होगा तब ये सब कामनाएं छूटेंगी, ये दोष छूटेंगे
- १ बार १ त्रिशंकु राजा था बड़ा धर्मात्मा वो विश्वामित्र के पास गया और उसने कहा मुझे स्वर्ग देखना है अभी इसी शरीर में, विश्वामित्र ने समझाया कि भई देखो तुम धर्म किए ही हो, पुण्य किए ही हो, अच्छे काम किए ही हो तो स्वर्ग मिलेगा ही अरे कुछ दिन रुक जाओ जब तुम मर जाओगे शरीर तुम्हारा ये छूट जायेगा तो स्वर्ग मिल जाएगा ऐसी क्या जल्दी है वो हट पकड़ गया नहीं गुरुजी हमको तो स्वर्ग देखना है इसी शरीर से और आप दिखा सकते हैं समर्थ गुरु है तो विश्वामित्र ने कहा नहीं भई ऐसा नहीं है मैं समर्थ गुरु नहीं हूँ मैं बहुत बड़ा तपस्वी हूँ ठीक है लेकिन मैं समर्थ नहीं हूँ समर्थ गुरु का मतलब होता है जो भगवत प्राप्ति कर ले, तो विश्वामित्र कहते हैं भई मेरी माया तो समाप्त हुई नहीं इसलिए मैं समर्थ महापुरुष नहीं हूँ मैं इम्पॉसिबल को पॉसिबल नहीं कर सकता ये असम्भव को सम्भव करने वाले तो भगवान और सिद्ध महापुरुष ही होतें है तो ऐसा है की तुम चले जाओ वशिष्ठ के पास वो सिद्ध महापुरुष हैं वशिष्ठ के पास गए त्रिशंकु, वशिष्ठ ने कहा भई ये गैर कानूनी बात है मैं कर सकता हूँ लेकिन मैं करूँगा नहीं मैं कर सकता हूँ लेकिन करूंगा नहीं किसने भेजा है तुमको हमारे पास विश्वामित्र ने, विश्वामित्र ढीला है उसका क्रैक है भगवान के कानून के खिलाफ कोई महापुरुष क्यों काम करेगा भला वो तो डायरेक्ट सर्वेंट उनका फिर विश्वामित्र के पास आया त्रिशंकु वशिष्ठ जी तो मना कर रहे है आपने कहाँ भेज दिया उन्होंने डांट लगा दी हमको, डांट पिला दी आजकल लोग कहते है पिला दी, ये डांट पिला दिया जैसे कोई तरल पदार्थ हो पी गया हो कोई विश्वामित्र ने कहा ऐसा है कि तुम वशिष्ठ के लड़को के पास जाओ वो पैर ऊपर करके और सिर नीचे करके, लटक करके पेड़ में तपश्चर्या कर रहे हैं वे भेज सकते हैं तुमको स्वर्ग, वहाँ गए तो उन लोगों ने कहा भई भेज तो सकते हैं हम तुमको स्वर्ग लेकिन ठैहरो जरा मैं पिता जी से परमिशन ले लू, वशिष्ठ गृहस्त थे उनके बच्चे थे, वो अपने पिता के पास गए परमिशन लेने पिता जी ने कहा उस बतमीज को मैंने रोक दिया था फिर तुम लोगों के पास क्यों गया ये तो १ महापुरुष का अपमान हो गया उसको रोकने पर भी गया जैसे संसार में कोई लड़ाई कराते हैं एक दुसरे से, बाप ने रोक दिया बेटे के पास चलो अपना काम करवा लो, अस्तु झगड़ा बढ़ गया फिर लौट के गया और विश्वामित्र के पास उन्होंने कहा साहब ऐसा ऐसा हुआ, उन्होंने कहा कोई बात नहीं मैं भेजता हूँ चाहे मेरी सारी तपस्चर्या नष्ट हो जाए, तपो बल से स्वर्ग भेजा जा सकता है कोई बड़ी बात नहीं है स्वर्ग तो अपने माया का लोक है खाली भगवान का लोक नहीं भेज सकता कोई तपस्वी लेकिन स्वर्गादिक तो भेज सकता है, जिद्द पर आ जाता है मनुष्य तब फिर अपना नुकसान भले ही हो लेकिन ऐसा करना है उसको संसार में कहते हैं अब तो प्रतिष्ठा का प्रश्न है प्रतिष्ठा का प्रश्न कहते उसको लोग पोजीशन का क्वेश्चन है ऐसा बोलते हैं पोजीशन पर आ गए विश्वामित्र और उन्होंने अपनी तपस्या का फल लगा दिया उसके शरीर के ऊपर और उसका शरीर स्वर्ग को चला लेकिन वशिष्ठ ने संकल्प किया नई मैंने रोक दिया था और ये नाजायद काम हो रहा है स्वर्ग नहीं जाये वो ऊपर से गिरा महापुरुष के संकल्प के आगे किसकी गती है विश्वामित्र ने फिर सारी तपस्या लगा दी वहीं रुक जाओ भले ही स्वर्ग न जाओ, स्वर्ग और मृत्यु लोक के बीच में रुक जाओ वो बिचारा त्रिशंकु, हँ, जैसे आप लोग कहते हैं न ‘न इधर के रहे न उधर के रहे’ ‘धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का’ वो बिचारा बीच में अटक गया, संसार में लोग कहते हैं भई तुम्हारी हालत तो त्रिशंकु की तरह है वे १ example है अपने हिंदु धर्म में, तो उसी जहाँ वो रुक गया ऊपर अब जा नहीं सकता वशिष्ठ का संकल्प और यहाँ तपस्चर्या के बल से वो निचे मृत्यु लोक में भी नहीं आया बिचारा तो वहीं पर उसके लिए टेम्परेरी स्वर्ग बना दिया विश्वामित्र ने
- हमारे इंडिया में सौ रुपया रोज कमाने वाले भी खाते पीते कपड़ा पहनते हैं, हजार रुपया रोज कमाने वाले भी खाते पीते कपड़ा पहनते हैं, लाख रुपया रोज कमाने वाले भी खाते पीते कपड़ा पहनते हैं, लेकिन सब बीमार हैं सब परेशान हैं और संपत्ति मिले और संपत्ति मिले, जब तक अनंत आनंद न मिल जाएगा तब तक ये बीमारी जाने वाली नहीं, ऐसे शास्त्र वेद के लेक्चर या महात्मा के प्रवचन सुनने से
- अभिनिवेश(अधर्म) क्लेश
- वो रिवाल्वर ले के आ गया, साँप आ गया, ये काँट लेगा तो मैं मर जाऊँगा, अरे तुम आत्मा हो तुम कैसे मरोगे, ये शरीर मर जाएगा, तो शरीर तो नश्वर है ही है, बात तो ठीक है लेकिन पता नहीं क्यों डर लगता है, क्या तुमने कोई शरीर देखा है जो नष्ट न हो ? मरना है ये पक्का है निश्चित है, जब निश्चित है तो परेशान क्यों होते हो, अभिनिवेश माने 'मैं कभी न मरूँ ऐसी भावना', इस भावना के कारण हम दुःखी हैं, अभिनिवेश दुःख इसलिए लगा हुआ है की हम अपने को शरीर मानते हैं, अगर आत्मा मानते तो दुख खत्म, आत्मा को मरना वरना नहीं है
- अहंकार(अनैश्वर्य, अस्मिता) क्लेश
- कहीं भी आप बस ट्रेन में बैठे हैं जैसे उस समय आप बैठते हैं एक्टिंग करके, अकड़े चले जा रहे हैं बिना वजह, कोई बात न चित, न कुछ कह रहा है बिचारा वो बगल में बैठा है फिर भी बड़ी गंभीरता की एक्टिंग और क्या देखने की शैली और फिर क्या बोलने की शैली और फिर बोलेंगे तो उसमें भी क्या बनावट, ये सब आप क्यों कर रहे हैं ? अजी वो भीतर १ भूत बैठा है अहंकार वो कहता है ऐसा करो, ऐसा करने में आपको आराम मिलता है ? अरे न, दम घुटता है लेकिन अब क्या करे करना पड़ता है वो ऑर्डर दे रहा है अंदर से ऐसा करो, ठीक तो तब लगता है जब बीवी/पति/माँ/बाप/बच्चे न हो अकेले टाँग पसार के लेटे जब हम लोग उस समय नेचुरलिटी में रेहते हैं कोई परवाह नहीं कपड़ा कहाँ जा रहा है हाँथ कहाँ जा रहा है पैर कहाँ जा रहा है
- अहंकार के लिए कोई न कोई वस्तु है हमारे पास
- अपने से नीचे देखा फूल गए। आपकी qualification ? हाईस्कूल। मैं बी. ए. हूँ अच्छा फूल गए। अक्षरों के डिग्री में ही फूले जा रहे हैं, नॉलेज ०/१०० है। काम, क्रोध, लोभ, मोह दस गुना है और इसी में विभोर हैं हम बी.ए. हैं, हम एम.ए. हैं पी.एच.डी. है डी.लिट्. हैं। अपने से ऊपर वाले को देखा, पिचक गए, बस फूल गए, पिचक गए। फूल गए, पिचक गए। इसलिए ज़िन्दा हैं। अगर फूलते ही जाएँ तो हार्ट फेल हो जाए, पिचकते ही जाएँ तो भी हार्ट फेल हो जाए।
- ये ऐसी विचित्र सृष्टि है कि हर एक को अपने से नीचे किसी न किसी बात में आदमी दिखाई पड़ते हैं। हमारे एक आँख है, इसके दो हैं, हमारे एक ही है। एक मेरी खराब हो चुकी है। अब परेशान हैं उसको देख के दो आँख वाले को। लेकिन सूरदास को देखा अरे एक तो है, ऐसे ही सन्तोष करते हैं हम लोग संसार में।
- एक स्त्री का पति मर गया। अरे बच्चा तो है उसके शान्ति के लिए। एक के बच्चा भी नहीं है पति भी नहीं है, बाप भी नहीं है, माँ भी नहीं है, भाई भी नहीं है। तो भी वो सोचता है चलो हमारा शरीर तो ठीक है। हाथ पैर तो हमारे ठीक हैं। ऐसे ही कितने लोग हैं कि उनका कोई नहीं है और हाथ पैर भी गड़बड़ हैं। अगर मनुष्य अपने से नीचे देखे तो संसारी सुख के लिए पागल न बनें, सन्तोष आ जाए उसमें। अरे भगवान् की बड़ी दया है हमारे हाथ पैर तो काम कर रहे हैं। देखो वो व्यक्ति जिसका हाथ नहीं पैर नहीं सब बिगड़ गया है वो कैसे जिन्दा है और अपने से आगे देखागा मैटेरियल विषय में तो फिर टाटा बिरला कोई हो रोएगा, रोना पड़ेगा उसको क्योंकि उसके आगे कुबेर का नाम सुनते हैं
- क्रोध करते समय बुद्धि नष्ट हो जाती है
- संसार में जब कोई किसी का मर्डर करने जाता है तो उसका साथी कहता है की अरे फाँसी हो जाएगी रे, हो जाए फाँसी कोई बात नहीं, उसको तो मार डालेंगे, ये हाल है हम लोगों का
- क्रोध से प्रत्यक्ष नुकसान
- आप बड़े अच्छे खासे बैठे हैं किसी ने कहा, क्यों रे कल तू क्या कह रहा था रमेश से, हा 'क्यों रे' कहा मुझसे 'क्या कह रहा था' कहा, आप क्रोध से पागल हो गए, धीरे धीरे क्रोध आया ? न एकदम पागल हो गया मारपीट पर तुल गये, ये है मूर्तिमान तामस धर्म, क्यों जी ये क्रोध से तुम्हारा फायदा होगा ? नहीं हमारा तो क्रोध से प्रत्यक्ष में ही नुकसान होता है फिजिकल ब्लड भी जला, मेंटल बैलेंस भी हमने खोया, स्प्रिचुल हानि हो ही गयी और भविष्य में तो नुकसान होगा ही, तमोगुण सबसे नीचे वाले गुण को तुमने ह्रदय में क्यों स्थान दे दिया, जिस हृदय में श्याम सुंदर के लिए स्थान देने का तुमने गुरु से वादा किया था आँसू बहाए थे, अगर हम अपने दोषों को गहराई से सोचे और फील करें तो हमारे दोष धीरे धीरे कम हो जाते हैं लेकिन हम फील नहीं करते, आदि हो जाते हैं
- गाली शब्द ही तो है
- क ख ग घ, क्या गाली देगा कोई, कामी, क्रोधी, लोभी, सब फैक्ट ही तो है अगर महापुरुष को कोई कामी, क्रोधी, लोभी कहे, जो महापुरुष है वो फील नहीं करेगा, जिसने फील/अनुभव किया वो मरीज है ये प्रमाण
Back to Homepage