संसार का स्वरूप
- माया भोग्य ब्रह्म
- जहाँ अंधकार होता है वहाँ प्रकाश नहीं होता और प्रकाश के बिना अंधकार का कोई अस्तित्व नहीं, ऐसे ही भगवान की प्रतीति न होने पर जिसकी प्रतीति होती है और भगवान के बिना जिसकी स्वतः प्रतीति नहीं होती वोह माया है
- जहाँ प्रतिबिंब होता है वहाँ वो वस्तु जिसका प्रतिबिंब है वो नहीं होता और बिना उस वस्तु के प्रतिबिंब नहीं हो सकती, ऐसे ही भगवान की प्रतीति न होने पर जिसकी प्रतीति होती है और भगवान के बिना जिसकी स्वतः प्रतीति नहीं होती वोह माया है
- संसार का स्वरूप
- जब स्त्री बच्चे सबने जवाब दे दिया वाल्मीकि को, वो गए थे सबसे पूछने की हमने जो पाप किया है उसमें तुम लोग शरीक हो न, तुम्हारे लिए तो किया है ? तो उन लोगों ने कहा हम आपके पाप में शरीक नहीं होंगे, तुम्हारी ड्यूटी थी, हम तुम्हारी बीवी हैं हमे खिलाओ और तुम पाप करके क्यों खिलाए ? उसके जिम्मेदार तुम हो, तो उन्होंने कहा अच्छा सभी मतलबी हैं श्रद्धा हुई, वैराग्य माने श्रद्धा, भूख भगवान की
- तुलसीदास को डाँटा बीवी ने देख रहे हो अंधे, ये साँप है इसको पकड़ करके तुम आए हो, कोबरा, अगर इतना प्यार राम से करते तो भगवत् प्राप्ति हो जाती बेशरम, उन्होंने कहा अच्छा, हम तो तेरे लिए साँप पकड़कर के आये और तू ऐसे बोलती है, अबाउट टर्न, श्रद्धा, भूख पैदा हो गई और उसी जन्म में महापुरुष हो गए
- महात्मा बुद्ध के एक शिष्य ने कहा महाराज हम आपके आदेश का प्रचार करना चाहते हैं विश्व में, उन्होंने कहा हां बेटा ख्याल तो अच्छा है लेकिन जानते हो यह दुनिया वाले कैसे होते हैं ? जो उपदेश देने जाओगे तुम संसार को तो वो गालियाँ सुनायेंगे, बड़ा लेक्चरर बनकर आया है। तो क्या करोगे ? गालियों को सुनना पड़ेगा, निन्दा होगी। महाराज ! हम ये सोचेंगे कि नहीं मारा ये ही क्या कम है। खाली गाली ही तो दिया, अपना क्या बिगड़ता है शब्द ही तो हैं। गुरु ने कहा हाँ समझदार है। अगर मान लो किसी सिरफिरे ने मार भी दिया। तो गुरु जी यह सोचेंगे कि मार नहीं डाला यही क्या कम है ? अब दस बीस चप्पल मार दिये इससे क्या बिगड़ता है। थोड़ा बहुत चमड़ी में लग गया ठीक हो जायगा दो चार दिन में। ऐसे भी चोट लग जाती है लोगों को, तो दो-चार, दस दिन में ठीक हो जाती है। और अगर मान लो कोई हाफ मैड ऐसा भी मिल गया कि उसने मार डाला। तो गुरु जी हम ये सोचेंगे कि यह शरीर तो अनन्त बार स्त्री- पति, बाप-बेटे के काम में आया, समाप्त हुआ, मरा। एक बार गुरु की सेवा में शरीर समाप्त हुआ इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा। अरे ! शरीर तो समाप्त होना ही है। जब योगीन्द्र-मुनीन्द्र का शरीर भी छूटता ही है तो हम कहाँ के तीस मार खाँ हैं कि हमारा शरीर बना रहेगा। अरे वो तो सीधे नहीं टेढ़े, शरीर को तो समाप्त होना ही है, गलना ही है, मिट्टी में मिलना ही है, आग में जलना ही है। तो गुरु के निमित्त एक बार शरीर नष्ट हो गया ये तो परम सौभाग्य है। पहली बार तो अनादिकाल से अब तक हमारे शरीर का सही उपयोग हुआ है। वरना तो कूड़ा-कबाड़ा संसार के लिए सब कुछ किया और उन्हीं के पीछे शरीर को नष्ट कर दिया।
- भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमको दुनिया बताऊँ ? उन्होंने कहा बताओ, तो बैल की सवारी लिया और वो दोनों पैदल चले, हम लोगो ने देखो तो कहा देखो देखो सवारी खाली जा रही है ये दोनों मिया बीबी पैदल जा रहे, कुछ स्क्रू ढीला लगता है इनका, शंकर जी ने कहा सुना ? तो कहने लगीं बात तो ठीक कहते हैं भई, तो उन्होंने कहा ठीक है हम बैठ लेते हैं भई, बैठ लिए शंकर जी बैल अब थोड़ी दूर चले, देखो देखो हट्टा कट्टा मुस्टंडा बैठा है और बेचारी स्त्री सुकुमारी घसीट रही है पैदल, उन्होंने कहा सुना ? हाँ ये बात तो ठीक कहते हैं अच्छा भई फिर तुम बैठ लो बैल पर हम चलेंगे पैदल, चले, देखो देखो ये बीवी का गुलाम जा रहा है पीछे पीछे, उसको सवारी पर बैठाये हुए है नकटा शर्म नहीं आती, सुना ? हाँ कहते तो ठीक हैं लोग, तो आओ तुम भी बैठ लो, अब दोनों बैठ लिए, देखो देखो २ २ सवारी बैल पर बेचारे का क्या हाल हुआ होगा उस बैल का, कितना स्वार्थी है आदमी, सुना ? हाँ बात तो ठीक है अरे तो फिर क्या करे ठीक है तो ? ये दुनिया वाले तो किसी तरह से नहीं छोड़ेंगे
- भर्तारी ने कहा, अगर कोई चुप रहे है शास्त्रों में लिखा है कम से कम बोलो, कोई चुप रहे, बहुत बोले नहीं गूंगा है उसने ऐसा अपमान जनक वाक्य कहा और ये चुप बैठा रहा, पत्थर, हम होते तो १ झापड़ लगाते, और अगर उसने १ की ४ सुनाई, अरे रे रे, उसके मुँह न लगाओ तो काँव काँव काँव, खा लेता है जान, बहुत बोलता है अगर कोई बार बार आपके घर में आवे, अरे ये क्यों रोज रोज आता है भई पड़ोसी, क्या बात है ? और अगर कभी नहीं आया पड़ोसी, बड़े लाड़ साहब हैं अहंकारी हैं आते ही नहीं कभी हमारे यहाँ, अगर कोई सह ले किसी की गाली वाली को, देखो बड़ा डरपोक है और अगर न न सहे, ईट का जवाब पत्थर से दे, तो बड़ा गुंडा है ये, इसके मुँह न लगना, अरे तो कैसे रहे संसार में कोई ? और फिर भी हम आशा करते हैं के सब हमारे मुआफिक रहें, जय बोलते हैं क्यों ? अरे तुम मिनिस्टर हो इसलिए बोलते हैं तुम करोड़पती हो इसलिए जय बोलते हैं तुमसे स्वार्थ सिद्ध होता है इसलिए, जितनी लिमिट में स्वार्थ सिद्ध होगा उतनी लिमिट में बोलेगा, झुकेगा, स्वार्थ कम झुकना कम स्वार्थ नहीं है नमस्ते ऐसे १ हाथ से करता है
- समान शील और व्यसन से दोस्ती होती है
- आपको साहब क्या पसंद है ? हमको फोटोग्राफी में बड़ा इंटरेस्ट है, अरे साहब हमको भी है लो हो गई दोस्ती, अरे साहब आपको क्या पसंद है ? वो बोल रहा है शराब चाहिए, अरे मैं भी शराबी हूँ दोस्ती हो गई, जहाँ २ की १ चीज मिल गयी गया वहाँ दोस्ती और जहाँ प्रिंसपल टकराया वहाँ अलग हो गए, रूचि मिल गई दोस्ती, रूची कम मिली कम दोस्ती, रूची खत्म दोस्ती खत्म, दोनों की हॉबी १ हो वहाँ दोस्ती हो जाती है, हमको ३ गुण का मायिक संसार चाहिए और महापुरुष कहतें है ३ गुण डेंजरस है तो हमारा उनका हिसाब बैठे कैसे
- जैसी कामना/चिंतन किया वैसे बन गए
- १ सुशील लड़की ने कमाना बनाई कोई लड़का मुझे स्त्री बनाने की दृष्टि से न देखे और किसी ने देखा, 'बदमाश बुरी निगाह से मुझे देख रहा है' क्रोध आया, लेकिन वही लड़की बिगड़ते बिगड़ते वेश्या बन गई, अब उसकी तरफ कोई देखता है बुरी निगाह से तो बड़ी खुशी होती है, अच्छा है मेरे चक्कर में आ गया १००० २००० मिलेगा, ये परिवर्तन उसके अंदर कैसे हुआ कमाना से, पहले उसने वैसी कामना बनाई थी तो उसके खिलाफ चीज मिली तो बुरा लगा, अब उसने ऐसी कामना बना ली वेश्या बनने के बाद की मेरी ओर कोई स्त्री भावना से देखे तो अब उसको सुख मिलने लगा, सारा झगड़ा, सारा प्रपंच कामनाओं के ऊपर है, सब इसी पे डिपेंड करता है
- हर साल बहुत से विद्यार्थी फेल होते है लेकिन उसमें से कुछ विद्यार्थी आत्महत्या कर लेते हैं क्यों ? चिंतन से, वो बार बार चिंतन करता है 'मैं मर जाऊँ तो अच्छा' 'मैं मर जाऊँ तो अच्छा', मम्मी पापा क्या कहेंगे, मेरे मित्र क्या कहेंगे, पड़ोसी क्या कहेगा, लोग क्या कहेंगे, ये चिंतन करते करते वो लड़का आत्महत्या कर लेता है
- २ भाई बैठे थे, १ लड़की जा रही थी दोनों ने देखा, १ ने कहा बड़ी सुंदर लड़की है दूसरे ने कहा हाँ हाँ, दूसरा भाई अपना चला गया कहीं, इस भाई ने सोचा इससे मिलना चाहिए, कौन है ? कहाँ रहती है ? इसका बाप क्या करता है ? लग गया पीछे, १ दिन हुआ, २ दिन हुआ मौका नहीं लगा बात करने का, मिलना है कैसे नहीं करेगी बात ? कोई तरकीब कोई बहाना, १ दिन ऐसा चांस आ गया, आप कहाँ रहती हैं बहिन जी ? पहले बहिन जी कहता है भावना है श्रीमती जी बनाने की, वो भोली भाली लड़की है उसने कहा भाई साहब मैं वहाँ रहती हूँ, तुम्हारे डैडी क्या करते हैं ? हमारे डैडी इंस्पेक्टर हैं मैं यहाँ रहता हूँ मेरे डैडी अरबपती हैं झूठ बोला, अब लड़की को सोचने को मजबूर कर दिया अरबपति है शकल वकल तो ठीक है लेकिन अब इस से बात कैसे करें ? हटाओ, फिर वो पीछे पड़ा, अब वो चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन रात दिन, उसका भाई कहे की तू कहाँ खोया रहता है आजकल ? कुछ नहीं भइया ऐसे ही, आखिरकार १ दिन ऐसा मौका आ गया कि साफ साफ उसने कह दिया, मुझसे शादी करेगी ? तो उसने १ झापड़ लगाया, लौट कर आया उसने खरीदा पॉइजन और खाकर सो गया, सदा को छुट्टी, ये क्यों हुआ ? चिंतन से, लगातार चिंतन से
- झूठ बोलने की पहली शिक्षा
- जब प्रारंभ में आप लोग कभी झूठ बोले होंगे याद नहीं होगा आप लोगों को, जब आप छोटे से थे और माँ ने कभी आपसे कहा होगा देखो बेटा पड़ोसीन आवें तो कह देना मम्मी घर में नहीं है तो आप परेशान हुए होंगे की मम्मी घर में तो हैं और हमसे कहती है बेटा तुम ऐसा कह देना की मम्मी घर में नहीं है वो बिचारा भोला भाला उसने कहा कौन झगड़े में पड़े अपन तो जैसे कहा है उसने वैसे कह दो, तो उसने पड़ोसीन से कह दिया मम्मी ने कहा है की पड़ोसीन आवे तो उससे कह देना मम्मी घर में नहीं है, पड़ोसीन ने कहा है तो हाँ हाँ है तो, मम्मी सुन रही थी कमरे से जब पड़ोसीन चली गई तो मम्मी ने १ झापड़ लगाया, गधा कहीं का ६ वर्ष का हो गया इतनी अकल नहीं है ये नहीं कहना चाहिए की मम्मी कह रही है केवल इतना ही कहना चाहिए मम्मी घर में नहीं है और कोई पूछे कहाँ गई है मुझे पता नहीं, तो उस समय आपको बड़ा आश्चर्य लगा होगा ऐसी झूठ बोलने में की बताओ खामखा मार दिया माँ ने, आपकी आत्मा ने बहुत कोसा होगा लेकिन मार के आगे लोग कहते हैं न झूठ भागता है तो उस डर से आपने झूठ बोलना प्रारंभ कर दिया लेकिन फिर भी आज तक कोई भी गलत काम आप लोग करते हैं तो भीतर से कोई १ शक्ति ऐसी है जो कहती है, है तो बुरी बात, है तो ये बुरी बात जो हम कर रहे हैं, है तो बुरी बात लेकिन करो, ये बहुत प्रैक्टिस करने पर भी वो १ अज्ञात शक्ति जो ये फील करती है ये काम गलत किया हमने वो आत्मा है
- पैसे के कारण लोग सम्मान करते तुममें कोई विशेषता नहीं है
- कोई आया नहीं आज जो सेठ जी के पास डॉक्टर साहब, मास्टर साहब, वकील साहब सब जबरदस्ती बिना बुलाये रोज पहुँच जाते थे क्योंकि उनके इनकम होती थी उनका लाभ होता था इसलिए आ जाते थे दिवालिया हो गए सेठ जी तो कोई नहीं आता, सेठ जी बुलाते हैं डॉक्टर साहब हमारी बीबी तुम्हारी भाभी बहुत बीमार हैं टाइम नहीं है हमारे पास १ बहुत सीरियस मरीज देखने जा रहा हूँ रोज तो टाइम होता था जबरदस्ती आगे बैठ जाते थे, अरे सेठ जी तुम भी बुद्धू हो हम पैसे के लिए आते थे हम तुम्हारे भक्त थोड़े, पेड़ पर फल लग गए बिना बुलाये पक्षी आये चहके फल खाये फल समाप्त हो गए बिना डांटे फटकारे पक्षी उड़ गए चले गए ऐसा संसार
- शब्द प्रमाण मानने से संसार में सारा काम चल रहा
- ये साइन किया और अरबों रुपया निकाल लिया बैंक से, अब क्या करोगे ? उसका साइन बना लिया अभ्यास करके और ले गए बड़े रुआब के साथ बैंक में पेश कर दिया और उसने रुपया दे दिया, जब असली आया उसने कहा भई रुपया दो, अरे तुम ले गए थे ? ले गए ? क्या बोल रहे हो ? हाँ बिलकुल, तो शब्द प्रमाण मनुष्य का धोखा है क्योंकि इनमें ४ दोष होते हैं भ्रम, प्रमाद, विप्रलिप्स, कर्णपाटव लेकिन शास्त्र वेदों का शब्द प्रमाण, दर्शनों का शब्द प्रमाण बिलकुल सहीं होता है क्योंकि भगवान और महापुरुष में वो ४ दोष नहीं होते
- शब्द प्रमाण मानने से ही दिव्य ज्ञान होगा
- छोटी सी खिड़की से १ लाख रुपया आप डाल करके और अंदर बैठे क्लर्क से कहते हैं की ऐ रसीद बना दे, अगर आप कहे ऐ रसीद दे दे ये देख १ लाख है, अजी हाँ रसीद दे दूँ, लेकर के चल दे और रुपया भी लेकर के चल दे, पहले अंदर दे, अरे हाँ तुम लेकर के धर लो और कहो की कब दिया था है यहाँ तो हम हर जगह विश्वास करते हैं केवल भगवान का मामला जब आया तो हमें तुम पर विश्वास नहीं है पहले कृपा कर दो फिर शरणागत होंगे, हाँ ये हाल है हम लोगों का और अगर कोई कह दे की आप कम अकल हैं ऐन क्या कहा कम अकल, लड़ाई हो जाए
- शरीर के मोह से १ सेकंड में योगी
- अगर कोई डॉक्टर किसी को बताए की तुमको भयंकर बीमारी है, माँ/बाप/स्त्री/पति/बेटा ये नाटक बंद करो, एकांत में रहो फलाहारी खाओ, टाइम में दावा खाओ, तुरंत माँ लिया वो व्यक्ति, १ सेकंड में डॉक्टर ने योगी बना दिया और आत्मा के लिए गुरु जी बोले जा रहे हैं और शिष्य सुने जा रहा है मान नहीं रहा
- संसारी लोग एक्टिंग की सहानुभूति प्रकट करते हैं
- मैंने १ बार देखा है प्रत्यक्ष अनुभव बताये आप लोगों को, आगरा में १ सत्संगी के घर मैं ठहरा हुआ था तो उसका पति मर गया, मतलब मर गया था पहले ३ ४ दिन पहले उसके बाद में उसके घर गया तो वो सब नाटक हो रहा था, तो अब मैं गया तो रहना पड़ा उसके घर में तो वो दृश्य भी सब देखने पड़े, क्या दृश्य वो स्त्री अच्छी खासी बैठी है रो वो करके अपना आँसू वाँसू पोछ के आराम से बैठी है इतने में १ स्त्री आई १ पुरुष आया और पता नहीं क्या कान में उसके कहा, अरे यही कहा होगा की कैसे हुआ वो तो अच्छे खासे थे कैसे मर गए मतलब उसकी याद दिला दिया, जिक्र कर दिया उसका बस वो फिर रोने लगी, अब बड़ी मुश्किल में कण्ट्रोल में आई १ देवता जी देवी जी फिर आ गए, ये जो सहानुभूति प्रकट करने जाते हैं लोग ये तो एक्टिंग करते हैं और उसकी मौत हो रही है बेचारे की याद कर करके यानी बार बार उसको याद दिला कर के हम और मन का अटैचमेंट कर रहे है उसमें ये डीटैचमेंट नहीं हो रहा है
- संसार में सब 'अपने' से प्यार करते हैं
- तुम्हारे बच्चे से भला दूसरी माँ प्यार करेगी ? अरे पशु भी नहीं करते, हमारे यहाँ १० गाय हैं अगर १ दूसरी गाय का बछड़ा दूसरी गाय के स्तन में मुँह लगा दे तो वो लात मार दे, १ कुत्तिया है उसके बच्चे को पकड़े कोई खा जाए वो दौड़ कर, सब धोखे में हैं और इतना बड़ा धोखा हज़ार बार, लाख बार, करोड़ बार, अनंत बार धोखा खाकर भी होश नहीं आया
- संसार में सब जगह अधिकारित्व होता है
- १ कलेक्टर मिलना चाहे प्रेसिडेंट से बड़ा मुश्किल है, वो DM है फिर भी प्रेसिडेंट से मिलने में बहुत लिखा पड़ी करनी पड़ेगी, लेकिन जो प्रेसिडेंट का चपरासी है वो बेधड़क चला जा रहा है बिल्ला लगाए, कोई पूछता ही नहीं उसको, उसका अधिकार है ऐसे ही साधन चतुष्टय संपन्न हो तो ज्ञान मार्ग के प्रवेशिका में दाखिला हो
- सबकी रुचि अलग अलग संस्कार वश
- १ बाप के ४ बच्चे लेकिन माँ परेशान रहती है, सब की डिमांड अलग अलग, घर में १ कहता है मैं तो आलू ही खाऊंगा, १ कहता है मैं तो गाजर ही खाऊंगा, १ क्लब में जाने का शौकीन है १ मंदिर में जाने का शौकीन है १ शराबी निकल गया, सब अलग अलग, माँ बाप से कोई मतलब नहीं होता अलग अलग संस्कार होते है सबके
- सब लोग अलग अलग रंग/प्रकार के कपड़े पहनते हैं १ रंग/प्रकार का कपड़े वाला व्यक्ति दूसरे रंग वाले को बेवकूफ समझता है, अपनी चीज को ठीक कहता है शेष को गलत, इतना कमाल मन का है की सब मनुष्यों को नचाए हुए है, सुनने सूंघने देखने रस लेने स्पर्श करने, सबके अपने अपने अलग अलग हिसाब किताब है
- संग और संस्कार से कर्म में प्रवित्ति होती है
- भेड़िये के साथ किसी बच्चे को बचपन से रख दो तो वो भेड़िये की तरह छलांग मारेगे, ऐसे ही जीव संगवश कर्म मैं प्रवृत होता है
- १ स्वच्छ बालक तमाम लोगों के संपर्क से गंदा बनाया गया, उसमें अनेक प्रकार की ४२० भरी गई, किताबों को पढ़कर, नाटकों को पढ़कर, पीचरों को देखकर, लोगों से सुनकर, अनेक प्रकार के साधनों के द्वारा तमाम गड़बड़ हम लोगों ने भरा अपने खिलाफ, और अंदर बोलता जा रहा है मन ये पाप है, ये तो गलत है लेकिन अब क्या करे पैसा ऐसे ही मिलेगा, अमुख वस्तु ऐसे ही मिलेगी, कीर्ति ऐसे ही मिलेगी, सीट ऐसे ही मिलेगी
- अल्पज्ञता, माया(पैसा) को लक्ष्मी 'समझ' लेना
- क्यों जी अमेरिका में कोई लक्ष्मी का नाम भी नहीं जानता, पूजा करने की कौन कहे और वहाँ अरब पतियों का मुहल्ला का मुहल्ला भरा है और इंडिया में लक्ष्मी की पूजा करने वाले दिवालिया होते जा रहे हैं रोज, माया(पैसा) को लक्ष्मी 'समझ' लेने तक का दुस्साहस हम लोग कर रहे इतना संसार में लगाव है
- कोई किसी को खुश नहीं रख सकता
- १ आदमी १ आदमी के भी मुआफिक नहीं रह सकता उसको खुश नहीं रख सकता २४ घंटे, क्यों ? वो जो जो कहे करते जाओ, अरे भई हम अंतर्यामी थोड़े ही हैं वो क्या चाहता है भीतर से, ये ३ गुण का चक्र चलता है हमारी बुद्धि के ऊपर कभी सत्व गुण, कभी रजो गुण, कभी तमो गुण इसलिए कोई १ सिद्धांत हो ही नहीं सकता
- संसारी वैभव वाला ईश्वर की ओर नहीं चल सकता
- संसार जिसके पास होता है उसके चारों ओर मधुमक्खी की तरह संसार वाले निपटते हैं, पैसा है ? हाँ, अब वो भी आ रहा है वो भी आ रही है, अरे साहब आप तो कुबेर हैं, किसी का सुंदर रूप हो उसके चारों आदमी घेरे हैं, किसी के पास गायन गुण है, किसी के पास कोई खास चीज है तो लोग निपटते हैं तो वो अहंकारयुक्त हो जाता है और भगवतप्राप्ति का तो सवाल ही नहीं, सुई के छेद से ऊंटों का काफिला भले ही निकल जाए लेकिन संसारी संपत्ति वाला गौड की ओर चले भगवान की ओर चले
- संसारी वैभव पाकर के छीन जाए तो बहुत कष्ट होता है
- जैसे हमारे दुनियावी गवर्नमेंट में कुछ किसी पार्टी की गवर्मेंट होती है उसके मिनिस्टर प्राइम मिनिस्टर होते हैं इलेक्शन में हार गयी वो पार्टी अब वो जितने प्राइम मिनिस्टर मिनिस्टर हैं वो २ कौड़ी के हो कर के अपने घर में बैठते हैं कोई कांस्टेबल भी उनसे बात नहीं करता वो कितना खलता है उनको अच्छा होता की वो मिनिस्टर न बने होते पहले कोई अमीर होकर के गरीब होता है प्रतिष्ठा पा कर के वो बदनाम होता है तो बहुत कष्ट होता है
- अनित्य संसार को नित्य मानना
- १ यक्ष ने युधिष्ठिर से साठ सवाल किये थे, उन साठ सवालों में यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल था 'किमाश्चर्यम्' संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ताज्जुब क्या है ? तो युधिष्ठिर ने उत्तर दिया था, डेली मनुष्य, पशु, पक्षी, सब देहधारी यमालय को जा रहे हैं, मर रहे हैं। तुरन्त पैदा होते भी मर रहे हैं। बाल्यावस्था में मर रहे हैं, युवावस्था में भी मर रहे हैं, वृद्धावस्था में मर रहे हैं। सब मर रहे हैं किसी न किसी अवस्था में। लेकिन जो शेष बचे हैं, वह अपने को स्थिर समझते हैं और मरने से डरते हैं। सबको डर लगा रहता है मरने से। कहीं मैं मर न जाऊँ। पता है मरना है? हाँ मरना है, यह तो बिल्कुल ठीक है लेकिन मैं मरना नहीं चाहता। यानी आपकी ऐसी पावर है कि आप भगवान् के संविधान को काटने की प्लानिंग कर रहे हैं। नहीं नहीं, प्लानिंग तो नहीं करना चाहता, न कर ही सकता हूँ। न मेरी कोई सामर्थ्य है। अरे! जब भगवान् के कानून को बड़े-बड़े ऋषि, मुनि, योगी, अमृत बाँटने वाले देवता लोग नहीं काट सके जो अमर करने का दावा करते हैं। जहाँ पर कहते हैं कि स्वर्ग में अमृत है, कामधेनु है, कल्पवृक्ष है, जो माँगो मिले ऐसा सुनते हैं। तो किसी देवता ने यह क्यों नहीं माँग लिया कि हम कभी न मरें। अजी वहाँ तो अमृत है। अमृत है फिर देवताओं की उमर लिमिटेड क्यों है ? वह स्वर्ग सम्राट इन्द्र भी सौ वर्ष के लिए बनता है। उसके बाद गेट आउट, सीट छिन गई। कुत्ते, बिल्ली, गधे की योनियों में पटक दिये गये। अजी ब्रह्मा की आयु भी लिमिटेड है तो इन्द्र की कौन कहे। तो जब सब निश्चित है, यहाँ तक कि सारी दुनिया में एक शब्द बनाया गया है 'डैड श्योर' तो डैड का मतलब क्या है, यह पक्का है। मरना है यह पक्का है, निश्चित है। जब निश्चित है तो परेशान क्यों होते हो ? अरे भई ! देखो, दिन के बाद रात आना पक्का है। आ गई रात ? आ गई। अंधेरा हो रहा है? हाँ, हो रहा है। हो गया ? हाँ हो गया। परेशान हुए आप लोग ? बिल्कुल नहीं। क्यों? रोज होता है, परेशान होने की बात क्या है। डेली होता है ये तो। तो फिर आपको इसमें क्यों आश्चर्य हो रहा है कि मैं मर ना जाऊँ ! मर ना जाऊँ ? अरे शरीर छूटने का नाम मरना है। शरीर तो छूटेगा ही लेकिन युवा लोगों की तो कौन कहे, जिनका इतना बुरा हाल है कि भला आदमी देख न सके ऐसे बूढ़े बीमार जो खाट से उठ नहीं सकते, वह भी मरना नहीं चाहते। मरने से इतना ऐतराज है, किसी घोर बूढ़े का जरा गला दबाओ, ऐ यह क्या कर रहे हैं आप ? क्या कर रहे हैं? आपको मार दें आपको आराम हो जाय, छुट्टी मिले। ऐसा कैसे अभी पोते का ब्याह देखना है। अपना ब्याह देखा पेट न भरा, बेटे का ब्याह देखा पेट न भरा, हजारों की शादी में गये पेट न भरा। अभी पोते का विवाह देखेंगे तो बैकुण्ठ मिलेगा ?
- संसारी नश्वर वस्तु का क्या परिणाम होता है सबको पता है
- महाभारत में १ कथा है १ सृंजय राजा था तो सूंजय ने नारद जी से कहा कि महाराज कृपा कीजिये। अरे बाबा ! मैं कृपा ही करता हूँ। बोलो क्या चाहिये। हमको एक बेटा दे दो। अच्छा बेटा चाहिये। क्या गधे ने माँगा ! बेटा। अनन्त जन्मों में अगर जोड़ा जाय तो अनन्त गुने दो, तीन, चार और आगे लगा दो। अरे किसी जन्म में एक बेटा हुआ, किसी में दो बेटे हुये, किसी में दस, बीस हुये, किसी में पचासों होते हैं। कुत्ते, बिल्ली जब हम लोग बनते हैं सुअर बनते हैं। तमाम सारे इकट्ठे होते हैं चार-चार छः छः आठ आठ। तो इतने सारे अनन्त जन्मों में बेटे बनाये, अभी पेट नहीं भरा। फिर एक बेटा चाहता है। अरे मूर्ख ! बेटे से क्या मिल जायगा ? अच्छा खैर, दे देंगे, जाओ। बेटा चाहिये ना। जाओ। अच्छा हुआ जान छूटी, कोई बड़ी चीज नहीं माँगा। हमारा क्या बिगड़ता है। नहीं महाराज ! उसमें भी शर्त है। अच्छा ! उसमें भी एक शर्त है। क्या शर्त है ? ऐसा बेटा दीजिये जो अपने शरीर के प्रत्येक अंग से सोना ही निकाले। यानी उसका पाखाना भी सोना बन जाय उसकी हर चीज। कफ भी सोना बन जाय। जितने मल मूत्र आदि हैं उसके शरीर से निकलने वाले विकार, वो सब सोना बनते जायें। नारदजी मुसकुराये। इसके बुरे दिन आ गये। खैर, जाओ बेटा वही ले लो। सुवर्णष्ठीवी पुत्र हुआ उसके। उसका नाम सुवर्णष्ठीवी यानी अपने शरीर से सोना उगलने वाला। अब क्या है। रोज दो बार लैट्रीन जा रहा है उतना सोना मिल गया आधा किलो। इसी प्रकार उसे जितना भी जुकाम हो तो कफ निकले, वो भी सोना हो जाय, शरीर से पसीना निकला, वह भी सोना हो गया। राजा ने खूब सोने का इस्तेमाल किया और बड़ा आदमी हो ही गया। राजा पहले भी था। अब तो सोने के उसके सब ठाठबाट महल बन गये। डाकुओं ने पता लगाया ये क्या बात है। किसी भी राजा की इन्कम लिमिटेड होती है। थोड़ी बहुत बढ़ जाय यह बात अलग है, इनके डेली ही बढ़ती जा रही है, तो ऐसी बातें तो कोई कितने ही छुपावे छुपती नहीं हैं। अपने एक प्राइवेट से कहता है एक आदमी ए ! मैं तुमको बता रहा हूँ बताना मत किसी को। वह अपने प्राइवेट को बताता है- ऐ महाराजजी ने कहा है, बताना मत किसी को। तो तुम किसी को बता मत देना, नहीं तो हम पकड़े जायेंगे। ये सब आप लोग करते हैं मौके-मौके पर। तो वह सब जगह आउट हो गया। डकैतों को मालूम हो गया और डकैत लोग लड़के को उठा ले गये जबरदस्ती। अब जब तमाम डकैत मिल करके राजा को हरायेंगे उसकी फौज को हरायेंगे तब तो ऐसा काम कर सकेगा कोई। राजकुमार को ले जाना, कोई हँसी खेल तो है नहीं। अरे संसार में मामूली बच्चे का अपहरण होता है, डाकू लोग करते हैं, तो कई डाकुओं का झुण्ड होता है। अब वहाँ यह प्रश्न आया कई डाकुओं में कि साहब ! वह ऐसा किया जाय कि हम लोग बारह आदमी हैं, तो एक दिन इसका सारा मल मूत्र तुम लो, एक दिन हम लें, एक दिन ये ले, एक दिन वो ले। एक कहता है नहीं जी ऐसा कैसे- मैंने तुमको बताया था। दूसरा कहता है ये कैसे होगा, ये कैसे होगा लड़ाई हो गई आपस में। तो उन्होंने कहा तो फिर ठीक है इसको बाँट लो, बारह टुकड़े कर दो लड़के के। लड़के के बारह टुकड़े कर दिये गये राजकुमार के। अब जब टुकड़े कर दिए गए तब क्या पाखाना करेगा वो, हां अब तो बात ही खत्म हो गई, राजा भी रह गया बिना बेटे का, बेटा भी गया और डाकू लोग भी गए, यानी संसारी वस्तु का क्या परिणाम होता है सबको पता है
- संसारी वस्तु के संग्रह संरक्षण नष्ट में कष्ट ही कष्ट
- किसी स्त्री को बेटा चाहिए, ब्याह करो ठीक है, पति हो गया हाँ, अब बेटा होगा, नहीं हुआ, साल हुआ २ साल हुआ ४ साल हुआ ६ साल हुआ १० साल हो गया, डॉक्टर के पास जा रही है, बाबा जी के पास जा रही है, जनतर मंतर के पास जा रही है, खैर पेट में गर्भाधान हुआ, अब उसके बाद भी ९ महीने कष्ट, कष्ट प्रारंभ हो गया वहीं से माँ को और उसके पीछे पीछे पति भी जा रहा है हॉस्पिटल, अभी तक आराम से दोनो, ये ९ महीने का कष्ट फिर पैदा होने पर जो कष्ट माँ को मिलता है उसको वही समझ सकती है कोई लेक्चरर नहीं समझ सकता लेकिन पैदा होने पर २ कष्ट आ गया, पैदा होने के पहले कष्ट जो था उसके आगे २ कष्ट आ गया, १ तो उसके पालन पोषण में कष्ट, अब कपड़ा लाओ स्वेटर लाओ मोजा लाओ, हम तो तंग आ गए भई खर्चा पूरा नहीं पड़ता, मकान का किराया दे, की बिजली का बिल चुकाए, की बेटा के लिए स्वेटर बनवावे ऊन इतना महंगा है, तुम तो बड़े शौकीन थे बेटा होने के की बेटा हो जाए बेटा हो जाए परेशान क्यों हो रहे हो ? हाँ जी वो थे तो लेकिन क्या बताए बड़ी मुसीबत आ गई, कोई हिसाब ही नहीं बैठता और ये जो वाक्य मैं बोल रहा हूँ १०० रुपया महीना पाने वाले भी इंडिया में वो भी यही कहते हैं २०० वाले भी २००० वाले भी सबके घरों में में रहता हूँ सबका हाल जानता हूँ सब रो रहे हैं इसी प्रकार से, तो देखो उसके पालन पोषण में कष्ट फिर उसके नष्ट हो जाने के भय में कष्ट
- संसार उपयोग के लिए है भोग के लिए नहीं
- संसार उपयोग के लिए है, शरीर चलाने के लिए है, भोग के लिए नहीं। अगर संसार शरीर चलाने के लिए मान लिया जाय तो भाग- दौड़ बन्द। दो रोटी, दो कपड़ा आवश्यक है बस। इसके आगे हमें संसार नहीं चाहिए। और आज पाँच अरब आदमी में कम से कम चार अरब आदमी के पास दो रोटी, दो कपड़े का प्रबन्ध है। वो और परेशान हैं। और एक करोड़ के पास, जो करोड़पति लोग हैं सारे विश्व में, उनकी परेशानी और बढ़ी हुई हैं। अमेरिका वाले भाग-भाग करके नशे की गोलियाँ खा-खाकर इन्डिया की गलियों में घूम रहे हैं। हमको पीस दे दो, हैप्पीनेस दे दो। यहाँ बिकता है क्या आनन्द, सुख और शान्ति ? बाजार में बिकती हैं ? हाँ, हमने सुना है इन्डिया में। तुम तो खरबपति हो, अरबपति हो। हाँ, वो पागल हो गए। हमको तो नींद नहीं आती। थर्टी परसेन्ट लोग अमेरिका में नींद की गोलियाँ खाकर तो सो पाते हैं। ये पैसे वालों का हाल है। वहीं आप भी जाना चाहते हैं ? हाँ। तो यही हाल आपका भी होगा। अजी नहीं, मैं तो आराम से सोऊँगा मुझको एक करोड़ मिल जाय, आनन्द से सो जाऊँ। धोखा है आपको, भ्रम है। जितना संसार मिलेगा, उतनी ही तृष्णा बलवान होगी, उतनी ही अशान्ति बढ़ती जायगी। अभी आप लोगों का बहुत बड़े आदमियों से सम्पर्क विशेष नहीं है। मेरा बहुत सम्पर्क है। तमाम ये जो आफिसर्स क्लास है या जो अरबपति लोग हैं, सबसे मेरा सम्पर्क हो चुका है। जितना उनका बुरा हाल है, अगर आप उनके अन्तःकरण में घुसकर देखें तो आप कान पकड़ कर तुरन्त उठें बैठें, मैं नहीं जाना चाहता इस सीट पर। मैं बहुत अच्छा हूँ। कम से कम आराम से चलता- फिरता हूँ अपना। अँधेरा हो उजाला हो, दिन हो रात हो, चले जा रहे हैं ठाठ से। और आप साहब कौन हैं? हम साहब अरबपति हैं। आप भी जाते हैं ऐसे ? अरे ! नहीं साहब, तीन-तीन बॉडी गार्ड रिवाल्वर लिए मेरे साथ चलते हैं। कोई गोली न मार दे। आपकी लाइफ क्या है। जी ऐसे ही है बस । और जो मुसीबतें हैं वो अलग हैं। लेकिन स्वच्छन्द रूप से हम चार फ़र्लांग अकेले जा भी नहीं सकते। इतना भय। जितना भय आज रशिया, अमेरिका को है, उतना दुनिया में किसी छोटे देश को नहीं है। इन दोनों का जो बुरा हाल है, आप लोग रोज पढ़ते सुनते हैं ये न्यूट्रोन बम बन रहे हैं, खोपड़ा बम बन रहे हैं। ये भय के कारण बन रहे हैं। ये जानते हुये कि छोड़े नहीं जायेंगे, बनाए जा रहे हैं ताकि वो डरें। अरे डरें ! तुम डर रहे हो, अपने डर को मिटाने के लिए बना रहे हो
- संसार हमारा नहीं है ये तो प्रत्यक्ष है
- गधा भी देख रहा है, सात चक्कर लगाया स्त्री पति ने हम दोनों का रिश्ता हो गया और उसके बाद पति मर गया पहले या बीबी मर गई या जिते जी तालाक हो गया रिश्ता खत्म। अरे भाई यह क्या कर रहे हो ! तुमने तो मृत्यु पर्यन्त साथ देने का वादा किया था। अरे भाई! हमने यह वादा किया था की अपनी मृत्यु पर्यन्त तुम्हारा साथ देंगे, तुम्हारी मृत्यु पर्यन्त साथ देंगे ये हमारी बस में नहीं है क्योंकि हमारा टाइम हो गया हम जा रहे हैं दूसरा पति बनाएंगे दूसरी बीवी बनाएंगे दूसरा बाप बनाएंगे, अब फिर नया नया अध्याय शुरू होगा अनंत बार यही नाटक हो चुका, इसको हम रिश्ता कहते हैं
- जब आधार ही गलत है तो बिल्डिंग चाहे १० अरब की खड़ी कर लो, आधार गया बिल्डिंग गिर गई, ऐसे ही जीतने भी शारीरिक संबंध है उनका आधार है शरीर, शरीर ही नश्वर है तो रिश्ते कैसे होगा नित्य और जब तक वो रिश्ता है तब तक भी उसका आधार है स्वार्थ, स्वार्थ अधिक सिद्ध हुआ बड़ी अच्छी मम्मी है, स्वार्थ कम सिद्ध हुआ बड़ी खराब बीवी है, स्वार्थ समाप्त हो गया तुम हमारे कोई नहीं हो हम समझेंगे मेरा भाई मर गया
- आत्महत्या का कारण संसार का अभाव
- संसार में कोई भी व्यक्ति आत्महत्या इसलिए करता है क्योंकि वो संसार से निराश नहीं है अपितु संसार के अभाव से निराश है यानि संसार जब छिन जाता है ये संसार का जो रूप है धन/स्त्री/पति/बाप/बेटा/प्रतिष्ठा/स्वास्थ्य/यश छिन गया वे आत्महत्या करते है, ये संसार से वैराग्य नहीं हुआ ये संसार के न मिलने से वैराग्य हुआ
- संसार में प्रयत्न करके सफल हो जाएँ कंपलसरी नहीं
- अगर १ सामान बनाना है हमको सुराही, तो सुराही का ज्ञान होना चाहिए, सुराही बनाने का सामान होना चाहिए, सुराही बनाने का संकल्प हो, संकल्प के बाद चेष्टा करो, पानी लाओ, पानी मिलाओ मिट्टी में, इसको यों यों करो, १ चक्र लाओ, इन सब की नॉलेज भी हो, तमाम नाटक होने के बाद भी हर १ आदमी अरबपति तो नहीं बन जाता, सभी परिश्रम कर रहे हैं दिन रात, १ दुकान लगा करके पान की दुकान जिंदगी भर वो कमाता रहा और लखपति भी नहीं बना बिचारा
- १ लड़का था उसने सोचा था हम IAS हो जाएँ, अरे सोचते तो सभी हैं लेकिन वो हो गया, अहा, बड़ी ख़ुशी, IAS करने के बाद ट्रेनिंग के लिए गया मसूरी, वहाँ से लौटकर के आया पिता के पास अपने और यहाँ घर में खूब मिठाई बट रही है और सब ख़ुशी मनाई जा रही है, अहा, अभी हमारा बेटा कलेक्टर बनेगा फिर गवर्नर बनेगा और रास्ते में एक्सीडेंट हो गया तो सब जीरो बटे सौ, नहीं इच्छा पूरी हुई
- संसार में एक्टिंग/ड्यूटी करो
- १ नर्स है उसकी लड़की बीमार है स्वयं की लेकिन वो ५० लड़के लड़कियों का काम कर रही है हॉस्पिटल में, मन उसका अपनी लड़की में है तो केवल कर्म से कुछ मतलब नहीं है हमारा मन ठीक रहना चाहिए मन का लगाव भगवान में रहना चाहिए यानि हम समय का मूल्य ह्रदय से समय को बर्बाद न होने दे
- देखो दूसरे के बच्चे को आप लोग जब कभी देखते हैं रिश्तेदार हैं या कोई ऐसे ही मित्र है, १ स्त्री आई अपने बच्चे को गोद में लिए हुए, आप उसके गाल में ऐसे ऐसे कर देते हँ हँ हँ हँ वो माँ खुश हो जाती है की बहुत प्यार करता है, भला वो क्यों प्यार करेगा दूसरे के बच्चे से लेकिन वो बेवकूफ माँ ये समझती है की हमारे बच्चे की तारीफ किया, हमारे बच्चे से प्यार किया ऐसे ही अपने बच्चे से भी कर लो, क्या बात है उसे बताओ मत की हम एक्टिंग कर रहे हैं वो सब मन में रखो प्राइवेट
- शरीर से अधिक कोई बाहर वाला प्रिय नहीं
- जैसे स्त्री पति प्यार करने जा रहे हो अत्यंत कामातुर हो और बीच में २ ४ साँप गिर पड़े ऊपर से फिर देखो कहाँ गया वो प्यार अबाउट टर्न क्विक मार्च दोनों भाग पड़ेंगे, भाड़ में जाए बीवी भाड़ में जाए पति, हमारी जान के लाले पड़ गए साँप आगे आ गया, देखो शरीर का इतना मोह है शरीर के बराबर भी इम्पोर्टेंस न रही स्त्री पति का, तो फिर आत्मा से अधिक प्यार हम करेंगे संसार में
- वस्तु का फल मिलता है चाहे जानो या न जानो
- कोई व्यक्ति दवा खाता है, दवा, आप सब लोग खाते हैं आप लोगों में से भला कोई कह सकता है की मैं दवाइयों को जानता हूँ कैसे बनी है अरे पेटेंट दवा है किसी ने रिसर्च करके बनाया है कैसे बनाया है क्या फिर कितने तो अंगूठा छाप हमारे देश में है ७०% वो बिचारे दवा का नाम भी नहीं पढ़ सकते, तो दवा बनाने वाले ने भी वो मिक्चर पिया मलेरिया मिक्चर और वो अंगूठा छाप ने भी पिया तो मलेरिया मिक्चर ने पेट में जा कर के मलेरिया के जर्म्स को १ प्रकार से उसने अपना काम किया मारा यानी दवा का फल १ सा मिला, दवा को जान कर पियो चाहे अनजाने में पियो
- किसी ने जहर पिया जान कर के मुझे मरना है ठीक है तुम भी मरोगे और किसी ने अनजाने में पी लिया शीशी रखी थी poison की समझा उसने की ये मिश्री है चीनी है डाल लिया अपना चाय में ठाठ से पी लिया मर गया या किसी ने जहर खिला दिया किसी को अनजाने में तब भी पी लिया मर गया तो जान कर जहर पिए चाहे अनजाने में पिए
- चाहे चिता में बैठ कर के सती हो और चाहे अचानक आग लग जाए लेकिन फल तो वही मिलेगा न वस्तु का, तो श्रीकृष्ण को भगवान जान कर प्यार किया वो भी तर गए ठीक है लेकिन जिसने श्रीकृष्ण को भगवान नहीं जाना इंसान ही जान कर के मन का अटैचमेंट कर दिया उनको भी वही फल मिलेगा यहाँ तक की कंस को भी वही फल मिला गोपियों की और कंस की अवस्था १ सी हो गयी
- लोहा और पारस का प्यार से छुआ दो या लड़ा दो वो सोना बनेगा
- किसी ने दूध की भावना से दूध को पिया लेकिन उसमें जहर मिला रखा था हमारे दुश्मन ने और हमने पी लिया दूध 'समझ' के, हमारी भावना थी दूध की लेकिन फल मिला जहर
- जैसा खाना खाया शरीर वैसे ही बनेगा, जैसे शरीर के लिए अगर गड़बड़ सड़बड़ खाएँगे तो रोयेंगे, बीमार होंगे, मरेंगे और अच्छा खाना खाएँगे तो शरीर अच्छा बनेगा स्वस्थ्य रहेगा, उसी प्रकार इस अंतःकरण में यदि स्पिरिचुअल मैटर, ईश्वरीय पावर की चीजें आप डालेंगे तो ईश्वरीय लाभ मिलेगा यदि माया के अंडर वालों को आप डालेंगे तो माया का फल मिलेगा
- संसारी बहिरंग व्यहवार से हम निर्णय करते, धोखा खाते हैं
- कोई लड़की पड़ोस की आती है आपके घर में, माता जी मैं सी दु आपका ब्लाउज, स्वेटर मैं बिंन दु और माता जी विभोर हो गयी कितनी अच्छी लड़की है १ मेरी बेटी है ये कहने पर नहीं बिनती १० दिन से चिल्ला रही स्वेटर बूंन दे, बड़ी शान में आती है वो सुनती ही नहीं ओ ये पड़ोसी की लड़की कितनी अच्छी है देखो बिना हमारे कहे केह रही है की मैं स्वेटर बिन दु, तो मैंने फिर etiquette में कहा अरे बिटिया तुझको कहाँ समय है वो स्वेटर तो मेरी बिटिया भी बिनती है बिंन देगी, तो मम्मी तू क्या मुझको बेटी नहीं मानती मैं तो तुझको मम्मी मानती हूँ उसने फिर एक्टिंग किया और ये माँ फिर चक्कर में आ गई और उसको स्वेटर बुनने को दे दिया और उसने ४ दिन में बुन कर दे दिया और अपनी बेटी के प्रति इसकी दुर्भावना हो गई, देख तुससे हमने कहा १० दिन से सुना नहीं और देखो कितनी अच्छी बिटिया है पड़ोस वाली, अब सोचा उस माँ ने काश की ये मेरी बहु हो जाए तो कितना अच्छा हो बेटा मेरे है ही है ओ इतनी लायक बहु मिल जाए घर में, देखो बेवकूफ बन गई वो बुढ़िया, हं, मान लो ऐसा हिसाब बैठा बातचीत चली और हिसाब बैठ गया और बहू आ गयी बन गई, अब जब घर में बहु तो आप लोगों के घर में बहुऐं आती है आप लोग जानते ही होंगे महीने २ महीने ४ महीने ६ महीने बहु क्या बढ़िया एक्टिंग करती है आपको, सास जी को, पति जी को लगभग ईश्वर के बराबर मानती है फिर उसके बाद देवता मानने लगती है ईश्वर से नीचे आ गयी फिर मनुष्य मानने लगती है और फिर उसके बाद राक्षस मानने लगती है ये सब आप लोगों का अनुभव है यानि साल ही भर में अनेक रूप रंग आप लोग देख लेते हैं तो जो पड़ोसीन है उसकी लड़की जो ये इतनी बढ़िया एक्टिंग करके और मधुर बोल करके, धोखे में डाल करके और बहु की सीट उसने ली थी साल भर में ही आउट हुआ तब माँ कहती अरे राम राम राम ये कहाँ से कंकाली चंडी और चुड़ैल हमारे भाग्य में लिखी थी हम तो उस स्वेटर बुनने के चक्कर में आ गए
- १ चिट्ठी लिख दिया किसी ने, हम तुम्हारे बिना मर जाएंगे, मान लिया अरे वो मर जायेगा चलो उसी से प्यार करो, इतना धोखा हम लोग खा रहे हैं रोज मायिक बुद्धि से
- १ बाप बेटी को चिपटा रहा है वो देखो घोर कलियुग आ गया, सबके सामने देखो १ पुरुष १ लड़की को चिपटा रहा है, ये तो अमेरिका से भी आगे हो गए इंडिया वाले, अरे वो बाप बेटी हैं ओ ऽ सॉरी, ये हमारी बुद्धि का हाल है हम संसार में ही नई समझ पाते क्रिया देखकर निर्णय करते हैं, अरे छाती जो है न चमड़े की, अरे ये बाप को भी चिपटा चुकी, माँ को भी, बेटी को भी, बीवी को भी, पति को भी लेकिन सबमें अलग अलग भावना थी और देखने वाला क्या समझ सकेगा की ये कौन किस भाव से चिपटा रहा है ? तुम फेल हो गये
- १ भाई बहन जा रहे हैं रिक्शे पर, दो लड़के आये गुंडे, कहते हैं जोड़ी बढ़िया है, जोड़ी कह रहा है वो भाई बहन हैं
- भीतर देखो बहिरंग प्रपंच नहीं
- १ बार अष्टावक्र जनक की सभा में गए १ महात्मा थे अष्टावक्र उन्होंने सुना की जनक की सभा में बड़े बड़े विद्वान हैं प्रकांड उन्होंने कहा अपन भी चले, तो वो शरीर से ८ जगह से टेड़े थे तो जब वो जनक की सभा में गए तो सब हँसने लगे देखकर उनको क्योंकि बड़ी तारीफ सुन रखा था लोगों ने १ बहुत बड़े विद्वान महात्मा आ रहे हैं सब बड़ी प्रतीक्षा कर रहे थे वेलकम के लिए जब आए उसने कहा आ रहे आ रहे, आए आए, आ गए आ गए, मालाएँ लेक लोग खड़े थे बड़े बड़े विद्वान जब शकल देखा तो मालाएँ नीचे कर दिया हाहा हँसाने लगे तो अष्टावक्र ने देखा सबको की मैंने बड़ी तारीफ सुनी थी जनक की सभा की यहाँ सब लोग ऐसे ही हैं, उन्होंने कहा यूयं चर्मकारः तुम सब चमार हो, तुम सब चमार हो चमार, तो सब ने कहा ये अपमान है हम लोगों का, तो जनक समझते थे उन्होंने कहा अच्छा जरा आप लोग पूछिए चमार क्यों केह रहे है, उन्होंने कहा महाराज ये सब पंडित लोग जानना चाहते हैं की हमको चमार क्यों कहा, उसने कहा चमार जो है वो चमड़े में एक्सपर्ट होता है चमड़े की परख मे वो चालक होता है की जिंदगी भर चमड़ो का काम करता है ये चमड़ा मोटा है ये पतला है ये खाल कच्ची है ये पक्की है ये मजबूत है ये कमजोर है ये काम करता है तो उसी प्रकार ये लोग भी चमड़ा देखते हैं शरीर देखते हैं अरे शरीर क्या देख रहे हो अन्दर देखो न अन्दर, अंदर तो हम कुछ जानते वानते नहीं तो फिर चुप रहो न कुछ मत देखो, अगर तुमको अन्दर देखना नहीं आता तो कुछ मत देखो न, तो ये कैसे हो सकता है आखिर हम भी काबिल हैं ये जो खोपड़ी में हमारे रोग है इस रोग को लेकर हमने राम कृष्ण को देखा और उनको भी कैंसिल कर दिया, ये श्रीकृष्ण ये लड़कियों के पीछे घूमता है लफंगा, केहते हैं ये भगवान है क्या बेवकूफी है
- १ कथा है योगशीला नाम की १ लड़की थी, १ राजा उसमें आसक्त हो गया और पिता देना नहीं चाहता था, नहीं दे तो मरवा देगा, योगशीला ने कहा की पिताजी उससे कह दो २ हफ्ते बाद आप आइएगा लड़की ले जाइएगा, वो योग मार्ग की आचार्य थी योगशीला, २ हफ्ते के बाद जब आये तो योगशीला के शरीर में मांस का नाम नहीं था हड्डी हड्डी थी, देख के घबरा गया राजा भागा, ठहरो मांस चाहिए वो कसाई की दुकान पर बिकता है जा के ले लो, कोई भी गुण देख कर के तुम किसी से प्यार करोगे वो गुण गया की प्यार गया इसलिए गुण देख कर प्यार नहीं करना है
- आपका कोई दूर का मित्र है रिश्तेदार है अंदर से आप नहीं चाहते ये आदमी हमारे यहाँ आवे रात को १२ बजे, लेकिन आते ही, अरे भई हम तो तुमको ही परख रहे थे यानी अंदर गड़बड़ बाहर ठीक, महापुरुष के अंदर सब ठीक मायातित और बाहर गड़बड़ उल्टा होने की एक्टिंग, माया का कार्य, काम क्रोध लोभ मोह, महापुरुष को कहीं द्वैत भाव है ही नहीं, सर्वत्र श्रीकृष्ण को देख रहे हैं, हम लोग तो बाहर वाले को देख कर ही निर्णय करते हैं, हमारा आदत है अभ्यास है अन्तर्यामी तो है नहीं अंदर घुस कर देखें चूँकि बहिरंग व्यहवार से हम निर्णय करते हैं इसलिए महापुरुष और भगवान को पहचानना/जानना असंभव
- किसी व्यक्ति से पूछो, हाउ आर यू ? alright , सब रॉंग है और alright कर रहा है, अभ्यास है सभ्यता/etiquette है, आदत है
- लड़के लड़की १ दूसरे पर मर रहे हैं ब्याह हुआ, बच्चे हुए उसके बाद शरीर क्षीण हुआ तो वो चलने लगे जूते चप्पल, तुमसे ब्याह करके मेरी लाइफ खराब हो गई, मैं तुम्हारे धोखे में आ गया, बहिरंग रूप आदि से जो प्यार करने वाले हैं इन्ही में जब कमी हो जाती है तो प्यार खत्म हो जाता है
- १ दिन इसी शरीर को देखने के लिए तरसते थे लोग विश्व सुंदरी है और अब बुढ़िया हो गई, ए बुढ़िया कहाँ जा रही है ? ए बेटा ये सामान उठा दो, ए ऽ सामान उठा दो, उठवा ले किसी से, अरे मैं वही हो जो तेरा बाप मेरे पीछे पीछे चलता था देखने को, अरे वो जमाना गया
- स्वार्थ सिद्धि जहाँ माना वहाँ अटैचमेंट अपने आप
- लड़की लड़के का नया नया प्यार हुआ हम तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकते, दोनों बेवकूफ बन गए, तकिया के नीचे १ लेटर मिल जाए लड़के को जिसमें लिखा हो, उसको बेवकूफ बनती रहो उसके बाद फिर हमारे पास आ जाना हम तुमसे ब्याह करेंगे, लड़के ने पढ़ा राक्षसी है तू, कहाँ गया वो जीवित नहीं रहेंगे वाला प्यार सब खत्म, लड़की कहे आज पहली अप्रैल है, लड़का वही तो हम कहे ऐसा कैसे हो सकता है की हमसे प्यार न करे, ये हमारी बुद्धि का हाल है
- १ सीप पड़ी है १ पत्थर पड़ा है १ अंगूठी पड़ी है, देखा, नग है हिरे का नग है हँ, कामना पैदा हुई उसको उठा लिया प्यार भी हो गया उससे, जब जौहरी के पास ले गए अरे १ रूपए का पत्थर है कॉमन पत्थर हिरा वीरा नहीं है, अच्छा अच्छा हम समझे कुछ खास बात है, प्यार खत्म हो गया, बिल्कुल देर नहीं लगी की आपने प्रैक्टिस किया हो, अब प्रैक्टिस करो की ये हीरा नहीं है ये हीरा नहीं है, कुछ नहीं जी बुद्धि में आया की ये १ रुपए का है प्यार खत्म, १ लाख का है प्यार बढ़ गया, जहाँ हम देखते हैं हमारा स्वार्थ हल होगा वंही प्यार हो जाएगा जहाँ स्वार्थ हल होने की बात बुद्धि में स्वार्थ हल हो न होगा क्वेश्चन नई बुद्धि में केवल ये बात बैठ जाए बस काम खत्म छुट्टी किसी की कोई नहीं सुनाता
- जब से वो लड़की पैदा हुई अपने घर को घर मानती थी भीतर से, ये मेरा घर है ये मेरा सामान है ये मेरा टीवी है हर चीज को, शादी होते ही एकदम परिवर्तन, ये मेरा नहीं ये मेरा है ससुराल जाते ही, कहीं ट्रेनिंग लिया है उसने, बाप ने क्या उसको ट्रेनिंग दी है की बेटा तुम कल्पना करो की ससुराल में हो, अब कल्पना करो अब सोचो, कुछ नहीं ये आवश्यकता ही नहीं पड़ी तो इसका मतलब ये हुआ की हम किसी अटैचमेंट को डिटेचमेंट में जब चाहे बदल ले
- १ लड़के ने १ लड़की के कंधे पर हाथ धर दिया तो चप्पल उठा लिया उसने और जब उसकी सहेली ने कान में कहा इसी से तेरी सगाई हुई है ऐ प्यार हो गया, ये क्या पहले चप्पल उठाया फिर प्यार हो गया केवल कान में १ वेद मंत्र सुनने से तेरी सगाई इसी से हुई है इस वाक्य में क्या कमाल था कि अब वो चोरी चोरी देखने की चेस्टा कर रही है अपने पति को और उसके हर विषय पर उसको सुख की अनुभूति होने लगी, उसके कपड़े पर, उसके चलने पर, उसके हंसने पर, उसके बोलने पर, उसके नाक नक्शे पर, हर बात में उसको अब सुख का अनुभव होने लगा, वो स्वार्थ की बुद्धि आते ही, उसमें सुख नहीं है ये तो हमारी कल्पना की बात है और फिर तीसरी सखी आई उसने कहा क्या बकती है सगाई इससे थोड़ी हुई है वो तो दूसरा है इसका भाई है, अच्छा भाई है तो ये बदमाश ये बदमाश इसने हमारे कंधे पर हाथ धर दिया फिर बदल गया अबाउट टर्न १ १ सेकेंड में चेंज होता है
- संसार में हम रोज देखते हैं करते हैं डेली वही लड़का है वही लड़की है रोज एक दूसरे को देखते हैं, वो भी अपना फ्लैट में घुमाता रेहता है काम करता रेहता है, लड़की भी अपने फ्लैट में है, लड़के से लड़की को कोई मतलब नहीं, लड़की को लड़के से कोई मतलब नहीं, दोनों करैक्टर वाले हैं, किसी की तरफ कोई दुर्भावना नहीं करता अपना काम से काम पढ़ रहे हैं लेकिन कल जब सगाई हो गई विवाह तय हो गया अब परिवर्तन हो गया, अब लड़का लड़की को देखने के लिए खड़ा रेहता है, लड़की लड़के को देखने के लिए टाइम निकाल निकाल कर खिड़की पर खड़ी होती है, ये क्यों हुआ अब स्वार्थ की बात आ गई इसलिए ममता हो गई, कल शादी फिर टूट गई दहेज के कारण फिर अबाउट टर्न, जब तक मतलब जीतनी लिमिट का हल होने की आशा विश्वास बुद्धि में भरा रहेगा उतनी लिमिट का अटैचमेंट नेचुरल हो जाएगा
- १ पुत्र पिता से वियुक्त हो गया बचपन में और २५ साल तक वियुक्त रहा, २५ साल बाद वो बाप तो पागल सा हो गया था पुत्र के वियोग में, बाई चांस दोनों १ ही दिन १ ही धर्मशाला में ठहरे बगल बगल के कमरे में, तो पिता तो पागल सा था और रात को बड़बड़ करता था कभी जोर से चिल्लाया बेटा कहाँ हो और ये बेटा बड़ा आदमी हो गया था रुपया कमा के तो इसकी नींद में गड़बड़ हो, इसने बुलाया धर्मशाला के मैनेजर को क्यों जी किस पागल को तुमने ठहरा रखा है रात भर चिल्लाता रहा, तो पिता ने सुन लिया उसने कहा क्या कह रहा है रे, पागल कह रहा है मुझे और क्या कहूँ दोनो में बहस हो गया, बहस होते होते मैं ठाकुर हूँ, अरे मैं भी ठाकुर हूँ, अरे जानता है मैं कौन हूँ मैं उसका बेटा हूँ, ये तो मेरा नाम ले रहा है, इस गाँव का रहने वाला हूँ अरे मेरा दुर्भाग्य है पिता से अलग हो गया मैं, पिता चुप अरे ये तो मिल गया मेरा बेटा चिपटा लिया, क्यों चिपटा रहे हो हमको पागल है, नहीं बेटा मैं तेरे लिए तो पागल हूँ बचपन में तू ऐसे मेले में गया था ऐसे खो गया था, अरे अगर वो नहीं मानता अरे पागल है ऐसे बकबक करता है की मेरा बेटा है मेरा बेटा है, तो अगर नहीं मानता कोई तो सब बेकार है, लाख संत कहें भगवान कहें वेद कहें हम नहीं मानते की भगवान हमारा बाप है हमारा हितैषी हैं हमारे हृदय में है हम कुछ नहीं मानते ठीक हैं घूम ८४ लाख की चक्की पीसो
- रोज आप लोग संसार में प्यार करते हैं और खार करते हैं दोनों करते हैं, आपका स्वार्थ सिद्ध हुआ, हाँ बड़ा अच्छा बेटा है बीवी है माँ है बाप है, स्वार्थ सिद्ध नहीं हुआ, हमारा लक/भाग्य खराब है जैसे संसार से प्यार करते हैं स्वार्थ सिद्धि के लिए, तुम्हारा स्वार्थ असली आत्मा का परमात्मा से हल होगा, ये बात बुद्धि में बिठा लो उधर प्यार हो जाए
- अपने स्वार्थ के लिए ही कोई तुम्हारे लिए कुछ करता है
- ऐ सोने दो, सोने दो आराम कर रहे है पापा जी, बेटा जी, भले ही ये आलसी बने, जो हितैषी कहलाने वाले है वे उल्टा हित करते है, संसार के जो हितैषी आपके बड़े बड़े कहलाने वाले हैं वे ऐसे ही हितैषी हैं जिसमे आपका वास्तविक हीत न हो बस उनका अपना स्वार्थ हो और आप खुश रहे
- ये लड़का बिलकुल काम नहीं करता हमारा बिलकुल प्यार नहीं है, ये लड़का अधिक काम करता है इसका बहुत प्यार है, हर बाप को सोचना पड़ेगा निश्चय करना पड़ेगा, जबकि फैक्ट दूसरा है वो चालक लड़का है वो चंट है इसलिए वो बाप को बेवकूफ बानने के लिए बार बार दौड़ दौड़ कर काम करता है की इनसे बहुत बड़ा लाभ लेना है हमको, और भोला भाला लड़का जो है उसमें चालाकी नहीं है इसलिए वो अधिक एक्टिंग नहीं करता है बाप समझता है इसका प्यार नहीं है और चंट चालाक को समझता है की बड़ा प्यार है सब धोखे में रहते हैं बड़े बड़े धुरंधर काबिल लोगों की बात मैं कर रहा, संसार काम चाहता है काम कर दो उसका, हम तुमको ये थोड़ी कहते है माँ बाप बीवी बच्चे छोड़ दो, ड्यूटी करो, लेकिन मन का अटैचमेंट ये अलग चीज है प्राइवेट चीज है, हम एक्टिंग करें कोई उसको एक्टिंग कैसे समझ सकता है
- इसकी हेल्प कर दो इसकी लड़की की शादी में १००० का गिफ्ट दे दो, अरे न दो क्या बात है अरे हमारे ३ ३ लड़की है फिर वो हमको गिफ्ट नहीं करेगा न इसलिए करो, हँ, वो स्वार्थ को पहले उसका बैकग्राउंड तैयार कर लिया उसके बाद दुसरे के उपकार की एक्टिंग किया ४ पैसा देके २ आने का फायदा उठाना ये बुद्धिमानी
- देखो मैं जब बीमार था तो हमारी बीवी रात भर बैठी रही कितना प्यार करती है हमसे, अरे बेवकूफ, तुझसे प्यार नहीं करती वो तो इसलिए बैठी है तुम मर जाओगे तो उसका क्या होगा इस स्वार्थ के लिए, तू भोला है नहीं समझता, वो अपने मतलब के लिए सब हिसाब बैठा रही है
- दुश्मन क्यों है कोई, अजी उसने हमको ठगा, अरे ठगा वगा नहीं तुमको क्या ठगेगा तुम्हारे पास है क्या जो ठगेगा ? उसको भी तो धोखा हुआ है वो समझता था की तुम्हारे पास आनंद है तुम्हारे पास प्रेम है लेकिन वो था नहीं वो भी तो ठगाई में आ गया तुमको कहाँ ठगा
- १ बाप अपने बेटे से कहता है तुम बेटे जी मेरे प्राण प्यारे हो, ये जो मुख से कह रहा है ये नकली है शरीर अपना है सबसे नीचे इसके बराबर भी कोई प्रिय नहीं हो सकता विश्व में, फैमिली में जो आपके सब ‘अपने’ लोग हैं जिनको आप ‘अपना’ 'समझते' हैं ये सब आपसे छुपाते हैं, जैसे हम छुपाते हैं वैसे समझ लेना चाहिए वो भी छुपाते होंगे, सबके बाहर कुछ भीतर कुछ और सब १ दुसरे के धोखे में पड़े रहते हैं, हम जब किसी से कुछ स्वार्थ चाहते हैं तो उतनी ही नम्रता के उतने ही प्यार के गड़ गड़ कर के बनावट के शब्दों को बोलते हैं
- सगी माँ हो जरा भी स्वार्थ की गड़बड़ी हुई ४ आने, प्रेम ४ आने कम हो गया, ८ आने हुई, ८ आने कम हो गया यानी आपके स्वार्थ के बेपेंदी के लोटे के आधार पर आपका प्यार टीका हुआ है
- स्त्री हर क्षण पति से स्वार्थ सिद्धि की प्लानिंग करती है कैसे इससे अपना मतलब हल हो जाए, कैसे खड़े हो, कैसे उसकी ओर देखें, कैसे बोलें, क्या तरकीब भिड़ावें की पति से अपना मतलब हल हो, पति भी स्त्री से स्वार्थ सिद्धि के ताक में रेहता है बीवी को कैसे बेवकूफ बनावें, क्या करे की ये हमारे चक्कर में रहे और हमारी सेवा करे और हमको हर प्रकार से सुख सुविधा दे, बस ये होड़ लगी है, जब दोनों उपास्य बनाना चाहते हैं तो भला कैसे पटापटी हो, फिर तो प्रत्येक क्षण खटापटी होगी
- जिस चीज में चीनी पड़ी हो वो कोई मिठाई हो सब एक सी होती है, हमारी माँ खराब, हमारा बाप खराब, हमारा भाई खराब ये मत सोचो, कोई खराब वराब नहीं है, सब बेचारे भूख नंगे हैं आनंद के प्यासे हैं अपने सुख के लिए जैसे तुम दीवाने हो वैसे वो भी हैं, गुस्सा क्यों करते हो किसी के ऊपर, किसी का दोष नहीं है दोष तो अपनी बुद्धि का है
- पब्लिक का ही रुपया है और बाढ़ आई पब्लिक परेशान है उसी को बाँटा गया, उसको मिनिस्टर कहो गवर्नमेंट कहो, पब्लिक से रुपया लिया गया अब पब्लिक को बाँटना है उसमें सब हिस्सेदार हो गए, इतना परसेंट तुम, इतना परसेंट तुम, जब तक भगवत प्राप्ति न हो जाएगी तब तक सोचने से लेकर प्रैक्टिकल करने तक केवल अपने स्वार्थ के लिए होगा
- हमसे कोई स्वार्थ सिद्धि के लिए दावँ पेंच खेले तो हमारे अंदर आग लग जाती है और हम दूसरे के साथ दावँ पेंच खेलते हैं, छल कपट अनेक प्रकार की एक्टिंग करते हैं
- अटैचमेंट में बुद्धि का विकास कम हो जाता है
- १ बच्चा रो रहा है माँ का अटैचमेंट है झट उठाया गोद में लिया स्तन उसके मुँह में डाल दिया आँ आँ चुप हो जा चुप हो जा, वो रो क्यों रहा था उसको बदहजमी हो गई थी और आप दूध पिलाए दें रही है ऊपर से, लेकिन अगर डॉक्टर हो नर्स हो उसको ये मालूम है की ३ घंटे पहले इसको हमने दूध दिया है और ये ३ घंटे अभी हुए नहीं आधा घंटा हुआ और ये रोने लगा है तो ये भूख में मारे नहीं रो रहा है ये कोई और बात है इसलिए हम इसके रोने पर पिघलेंगे नहीं की दूध पीला दे, देखो प्यार नहीं है तो ड्यूटी ठीक कर रही है नर्स और जहाँ प्यार है वहाँ गड़बड़ हो रहा है, डॉक्टर ने रोका है मिठाई नहीं खाना, मम्मी मिठाई खाएँगे, मिठाई खाएँगे, डॉक्टर ने रोका है न ? नहीं हम तो खाएँगे, अच्छा ले खा ले पापा से न बताना, चोरी चोरी माएँ ऐसी बतमीजियाँ करती है अपने घरों में, पापा जी को पता ही नहीं और लड़का सीरियस होता जा रहा है, वो अंडबंड खिलाए जा रही है, क्या करे रोता है तो देखा नहीं जाता, जहाँ अटैचमेंट हैं वहाँ कर्तव्य पालन ठीक ठीक नहीं हो सकता संसार में भी, अगर हम अटैचमेंट न करें तो ठीक ठीक ड्यूटी करेंगे, संसार प्यार से नहीं चलता व्यहवार से चलता है, उनका काम कर दो तब संसार चलता है, माँ बाप भाई बहन जिसको जो सामान चाहिए जो सेवा चाहिए वो कर दो
- संसारी अटैचमेंट की प्रैक्टिस कराई गई है
- १ अबोध बालक चपत खाने के बाद भूल गया मारने वाले को और जरा सा हाँथ को आगे बढ़ाया मारने वाले के गोद में आ गया, १ शब्द बोला जब युवास्था में उसकी चोट इतनी गहरी की सारे जीवन तक गाँठ बांधे है ये उन्नति की अवनीति हुई है हमारी ?
- १० दिन का बच्चा, तुरंत का पैदा हुआ बच्चा उसकी माँ मर गई, सारा घर रो रहा है पड़ोसी को थोड़ा बहुत दुख हो रहा है लेकिन बच्चा किलकारी मार रहा है, माँ क्या है मरना क्या है जनता/समझता नहीं, कोई अटैचमेंट नहीं
- तुरंत का पैदा हुआ बच्चा माँ के गोद में भी चला गया दुश्मन के गोद में भी, वो नहीं समझता दुश्मन क्या, माँ क्या है, छोटा बच्चे की खोपड़ी में ये idea नहीं, क्या होता है पराया/अपना, उसको mood-off का मतलब ही नहीं पता
- १ साल के बच्चे को सिखाया गया मैं तेरी मम्मी, मैं तेरी मम्मी, ये तेरे डैडी है ये तेरी बहन है ये तेरा भाई है ये बुद्धि में उसके भरा गया ये तेरी माँ है सबसे इंपोर्टेंट है, उसके लगातार सब पीछे पड़ गए २४ घंटे, लोगों के बार बार शिक्षा देने से, गाइड करने से, पढ़ाते पढ़ाते पढ़ाते उसको लाखों बार पढ़ा डाला परिवार के लोगों ने, बताओ कहाँ प्यार था वो बच्चे का, आप जब पैदा हुए थे तब से हर एक वस्तु में अटैचमेंट करना सिखाया गया, उसकी साधना कराई गई है माँ ने, बाप ने, बेटे ने, भाई ने अनेक लोगों ने मिलकर के आपकी हेल्प की इस प्रकार की की आपको बिगाड़ दिया
- १ छोटा सा बच्चा तोतली भाषा में बोलने वाला भी पड़ोसी के यहाँ जाता है जब, 'मेरे' घर में, 'मेरे' घर में और कहीं चाकू भी दिखाई पड़ गया पडोसी के घर में, मम्मी वो 'अपना' चाकू था न वो मैं देखा पड़ोसी के घर, ये ममता उसको सिखाई गई, बताई गई, प्रैक्टिस कराई गई प्रैक्टिस है तो फिर भला बताओ खुदा खैर करे जब थोड़े दिन की सिगरेट बीड़ी की प्रैक्टिस चाय की प्रैक्टिस आपको परेशान करती है, अनंत जन्मों का अभ्यास जब संसार में प्यार या खार दोनो करने का है तो फिर उसका रिएक्शन तो होगा ही कुछ तो उसका परिणाम हमारे सामने अभ्यास में आने के कारण अपने आप आएगा घबराना नहीं चाहिए ये क्यों हो रहा है ? अरे तुम्हारा किया हुआ हो रहा है और क्यों हो रहा है ये तुम्हारी कमाई तो है तुमको मिल रही है घबड़ाते क्यों हो कंट्रोल करो
- जब हम लोग पैदा हुए थे तो हमने कब कहा था रसगुल्ला लाओ, छोटे बच्चे को नमक चटा चटा करके, ६ महीने हो गए दाल चटाओ, चाय पिलाओ, ये जो बीमारी डाला है उसके अंदर, बच्चे को उससे कोई मतलब नहीं था, वो तो माँ का दूध पिये जा रहा है और विभोर है, ये लोगों द्वारा अभ्यास करा करा के लगाई हुई बीमारी है, मिर्चा लाओ, शक्कर लाओ ये तो पैदा होते ही नहीं माँगा था हमने
- अगर किसी व्यक्ति का १० रुपय खो जाए तो उसके खोने में प्रत्येक व्यक्ति को अलग अलग लिमिट की फ़ीकिंग, कोई व्यक्ति जो बहुत गरीब है उसको बहुत ज्यादा फीलिंग हुई, कोई कम गरीब है उसको कम फीलिंग हुई, किसी को धन में आसक्ति अधिक है उसको बहुत फीलिंग हुई, कोई बहुत अमिर है उसको बहुत थोड़ी फीलिंग हुई
- प्रैक्टिस से आसक्ति होती है उसी से काम बनेगा
- जैसे आप लोग १० दिन, २० दिन, १० महीना, २० महीना, १० साल, २० साल सिग्रेट पीते, शराब पीते, चाय पीते, तो प्रारंभ में तो आपको कोई भयंकर बीमारी नहीं थी इन चीजों की, जब हम पैदा हुए तो हम जानते ही नहीं थे की सिग्रेट क्या है, शराब क्या है, चाय क्या है, रोज सबरे जब मम्मी हमको चाय पिलाया करती थी तो अब हम बिना चाय के रह ही नहीं सकते ऐसा हो गया, खाना मत दो चाय दे दो, तो देखो पहले तो हमने अभ्यास किया और फिर उसके बाद होने लगा, पहले करना फिर होना ये हैबिट, जिसको हमने बनाया उसको हम मिटा सकते हैं
- संसार में कोई भी काम किए हो तो निराश होकर तो कोई काम नहीं हुआ १ अबोध बच्चा बैठना सीखता है खड़ा होना सीखता है चलना सीखता है हज़ार बार गिरता है रोता है लेकिन हिम्मत नहीं हारता, जबकी उसको कोई समझाता नहीं है देखो बेटा चलना चाहिए नहीं चलोगे तो तुम्हारे भविष्य खराब हो जाएगा, कोई समझाता नहीं है बच्चा समझ भी नहीं सकता वो अपने सहारे से खड़ा होता है फिर गिर पड़ता है फिर खड़ा होता है माँ पर गुस्सा करता है लेकिन अभ्यास करते करते खड़े होने लगता है तो कोई भी काम संसार में भी अचानक नहीं हो जाता सब के लिए प्रैक्टिस करनी होती है
- संसार में देखो १ व्यापारी व्यापार करता है १ लाख कमा लिया, अब १ लाख का २ लाख करें, घाटा हो गया ५० हज़ार पर आ गये, फिर आगे बढ़े ३ लाख हो गया, शाबाश, फिर घाटा हो गया २५ हज़ार पर आ गये लेकिन वो हिम्मत नहीं हारता जब तक जीवित रहता है कितने साहस का काम है
- कोई भी काम संसार में आप लोग करते हैं तो प्रारंभ में उस काम में बड़ी मेहनत पड़ती है फिर वो काम ऐसा हो जाता है जैसे कोई परिश्रम ही नहीं पड़ रहा है, बात भी कर रहे हैं साइकिल भी चला रहे हैं हाथ भी छोड़ दिया फिर भी पैर चल रहा है, आगे पीछे देख रहे हैं सब काम हो रहा है लेकिन पहले दिन जब साइकिल चलाना सीखने के लिए बैठे थे तब क्या हाल था, कोई भी वर्क हो संसार में या परमार्थ में ये बहुत बड़ा जो लगता है प्रारंभ में डट जाइए आप उसमें चल पड़िए हिम्मत न हारिये तो फिर वो काम एकदम सरल सा हो जाएगा आपके लिए, पहले आप समझते होंगे ये अनुभव करेंगे की ये, ये तो हमसे नहीं होगा, १ नट जैसे खेल करता है सर्कस में आप देखते हैं ये तो हमसे नहीं हो सकता, हर १ कर सकता है नहीं कैसे हो सकता है ? १ typist तेज़ी के साथ टाइप कर रहा है देख रहा है उस तरफ, अरे कमाल है जादू है आपमें, जादू फादू कुछ नहीं प्रैक्टिस है अभ्यास है
- प्रैक्टिस से जड़ चीजों के गुलाम बन जाते हैं
- कोई व्यक्ति पैदा होते ही शराबी नहीं हो जाता गर, गंजेड़ी भंगेड़ी या सिगरेट टी किसी का शौकीन नहीं हो जाता, पहले तो जबरदस्ती सिगरेट पीता है खांसी भी आती है बदबू भी आती है लेकिन १ बार २ बार १० बार इसलिए पीता है साहब कहेंगे लोग, १ हाथ पेंट की जेब में और पी कर के ऊपर को धुआं उड़ता है वो बच्चा पलेटफॉर्म के ऊपर या कहीं पार्क में और लोगों की ओर देखता है अकड़ करके तो लोग समझ बड़ा आदमी है कोई, बहुत काबिल आदमी है ऊँची फैमिली है एडवांस है इत्यादि डिग्रियों को पाने के लिए ऐसा करता है लेकिन जब ये करते करते करते करते हफ्ते हफ्ते पिया, फिर ३ ३ दिन में, फिर डेली, फिर दिन में ३ ३ बार, अब जब वो प्रैक्टिस में आ गया उसमें आसक्ति हो गयी, जड़ वस्तु देखो इतनी आसक्ति हो गयी तो कोई वर्क करे, माँ से प्यार कर रहा है बेटे से प्यार कर रहा है बीवी से प्यार कर रहा है भगवान कि उपासना कर रहा है कुछ कर रहा है १ सिगरेट मिल जाती तो फिर दिमाग ताजा हो जाता, क्वासि हो गया बिना सिगरेट के दिमाग है इसका, ईश्वर की उपासना में मन नहीं लग रहा है बीवी बच्चों से प्यार करने में मन नहीं लग रहा है कहीं नही लग रहा है १ सिगरेट के बिना, वो १ बार आ जाए बस फिर उसके बाद अपना वर्क करे चाहे ऑफिस का हो चाहे प्यार का हो चाहे कोई हो, तो देखो बार बार रिविजन से उसके मन का अटैचमेंट सिगरेट में हुआ उस वस्तु में हुआ इसलिए अगर कोई व्यक्ति किसी वस्तु में बार बार सुख का चिंतन न करें तो सारी बीमारी चली जाए
- १ सेठ पैसा गिनते गिनते उसको १२ बज गए रात के उसकी बीवी ने अपनी नौकरानी को बार बार भेजा की अरे भई कह दो खाना खा ले फिर काम करेंगे, वो नौकरानी जाए और कहे सेठ जी सेठ जी, सेठ जी सुन ही नहीं रहे थे शब्द ही नहीं पड़ा उनके कान में क्योंकि उनको तो अपना हिसाब ठीक करना था, तो १२ बजे सेठानी ने कहा नौकरानी से की ऐसा कर वो खीर ले जाओ और चम्मच से उनके मुँह में डाल दे तो जब मीठा लगेगा तो खाने की याद आएगी, नौकरानी ने कहा कहीं डाट पड़े, अरे जा तो तू डांट क्या पड़ेगी मैं तो हूँ, ले गई बेचारी खीर उसने चमच से निकला खीर और सेठ जी के मुँह में डाल दिया तो जब मीठा लगा तो सेठ जी ने कहा अरे ओ बेसन कँहा पानी लाओ पानी हाथ धूलाओ, खा चुके, जल्दी से गिनना है आगे वाला काम, जा जा हो गया खा चुके, अरे सेठ जी आपने कहाँ खाया अभी तो १ चम्मच डाला है हमने
- अगर chinese का कोई बच्चा है उसको बचपन से sea food १० १२ साल तक खिलाया गया अब उसका अटैचमेंट हो गया, उसके खाने में उसको सुख मिलता है उसको वही खाना चाहिए लेकिन किसी बच्चे ने बचपन से sea food नहीं देखा उसको sea food से बदबू आती है
- १ मजिस्ट्रेट थे तो वो इतनी सिगरेट पीते थे कि लिंक उनकी सिगरेट की, एक के बाद एक-एक के बाद दिन भर रात भर जब तक वो जागें। वो सत्संग में हमारे आये उनके बीबी बच्चे सभी थे, पूरी फेमिली डिप्टी कलैक्टर भी थे और मजिस्ट्रेट भी थे। पुलिस के इन्सपैक्टर भी थे और भी जितने वहाँ के ऑफिसर थे, सब हमारे सत्संगी थे। बहुत पुरानी बात है। तो रात-रात भर सत्संग हो और बारह, एक तक डेली हुआ करता था। तो जब हम लैक्चर दे रहे हैं कीर्तन करा रहे हैं तो वो अपना थोड़ी देर में चले जायें चुपके से उठके और दूर जाकर के अपना कुछ देर बाद लौट आवें। तो एक वहाँ कटरा टैंक है प्रतापगढ़ में राजा साहब का गैस्ट हाउस वहाँ हम लोग सत्संग करने जाने लगे पूरी बस भर कर के और पूरी रात सत्संग हो सब ऑफिसर्स बीबी बच्चे उनके करीब पचास आदमी और पूरी रात सत्संग करें और सबेरे आवें, तो कोर्ट में नींद आवे उन लोगों को, हाँ तो वो मजिस्ट्रेट साहब जो बार-बार उठ जावें आवें तो मैंने चैक किया एक बार कि ये क्या करने जाते हैं बाहर ? बात क्या है आखिर ? और वो ओट में जाकर के अपना सिगरेट जलायें, जल्दी-जल्दी जल्दी पिया अपना फिर वहाँ से चले आये और फिर बैठकर सुनने लगे, इतनी देर में तो विषय कितना आगे निकल गया, एक सेन्टैन्स न सुनो तो विषय समझ में नहीं आयेगा, फिलॉसफी का सब्जैक्ट ऐसा है और तुम इतनी देर गायब रहे। बहरहाल हमने चैक कर लिया कि ये सिगरेट के भयंकर बीमार हैं। तो बस जब दो तीन दिन के बाद ही हमने चैक किया तो हम चुपके से गये उनके पास और हमने उनकी जेब में हाथ डाला और उनके जो तीन चार पैकेट थे सिगरेट के सब को निकाल लिया और हमने कहा आज तो हम सिगरेट पीयेंगे। नहीं महाराज जी। पीयेंगे, शौक सवार हुआ है हमको भी तो ३,३, ४,४ सिगरेट इकट्ठा जला कर इकट्ठा पीना शुरू किया मैंने, जल गया मेरा मुँह लेकिन मैंने सारी सिगरेट पी डाली और रात भर का जागरण था हमने कहा अब तुम सिगरेट पीओ क्या पिओगे। अब तुम जिन्दा रहते हो कि मर जाते हो रात भर में, हम देखते हैं। मेरे छाले पड़ गये पड़ जायें कोई बात नहीं। उन्होंने सिगरेट छोड़ दिया खैर इतना फायदा हुआ। तो देखो ये संसारी चीजें छोटी-छोटी जिनके पीछे लग जाती हैं। जड़ वस्तुएँ जब वो खोपड़ी में आ आ करके हमको डराती रहती हैं और कहती हैं हमको पिओ, तो श्यामा-श्याम में तो परमानन्द है, जब उनका हम बार-बार चिन्तन करेंगे, तो वह तो रसानुभूति भी देंगे। वहाँ तो पॉवर भी मिलेगी स्प्रिचुअल बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। इसलिये फिर तो आपको बड़ा सरल लगेगा। बिलकुल अभ्यास हो जायेगा वही कि आपका मन ही न लगेगा। आप सोच ही नहीं सकते कभी भी कि मैं अकेले हूँ। ये साधना आपको कर्मयोग सम्बन्धी करनी है। इस साधना से आप आस्तिक बनने का अभ्यास करेंगे। अभी आस्तिक नहीं हैं। आस्तिक का मतलब होता है- भगवान् मेरे साथ सदा हैं यह सदा फीलिंग में रहे, तब वो आस्तिक कहलाता है और आधा घण्टे को आप पूजा में बैठ गये उस समय तो हैं। और बाकी साढ़े तेइस घण्टे तो आप अकेले हैं आप यही
- ये बार बार जो पुराना अभ्यास है जैसे हम लोग सिगरेट बीड़ी चाय पीये बहुत बार अभ्यास कर ले उसका अगर तो १ घंटे लेक्चर सुनने में भी परेशानी होती है कुछ लोगों को जल्दी खतम हो तो जाके उधर चुपके से बैठ करके (बीड़ी पीने का अभिनय) अभी मैंने पकड़ा एक को, बड़ी-बड़ी मूँछ वाला, वहाँ बैठ करके बीड़ी पी रहा था। यानी सत्संग में आने पर भी इतना त्याग नहीं कर सकते। इतने परेशान हैं उसके लिए। एक जड़ वस्तु ने इतना गुलाम बना दिया आपको। यदि आप श्यामसुन्दर से प्रेम करते तो वहाँ तो दिव्यानन्द मिलता। उस रस का यदि चस्का लग जाता तो फिर वो तो अनन्तकोटि बीड़ी से भी आगे होता। फिर कैसे तुम संसार का चिन्तन कर सकते। लेकिन अभ्यास जिस चीज का अधिक कर डाला है उससे डिटैचमेन्ट के लिए, उससे फिर मन को डायवर्ट करने के लिए भी कुछ अभ्यास करना पड़ेगा। इसीलिए सारे शास्त्र वेद बने हैं हमारे यहाँ। तरकीबें बताई गई हैं कि इस तरह से मन को डायवर्ट करो, इस तरह से श्यामसुन्दर में लगाओ। बस, इतनी सी बात समझाने के लिए अम्बार है हिन्दू ग्रन्थों का। वेद से लेकर रामायण तक कितने ग्रन्थ हैं कितने सन्त हुए, कितने पन्थ हुए। एक ही प्रश्न के उत्तर सब में लिखे हैं। बस तुम उनको ही अपना मान लो, क्योंकि वे ही तुम्हारे हैं। ये कोई मानना कल्पित नहीं है, संसार के मानने के समान। ये फैक्ट है, फैक्ट को मानने में कोई कुतर्क की आवश्यकता नहीं। तर्क करो संसार में। जहाँ तर्क करना है, शंका करनी है वहाँ फेथ करते हो, विश्वास करते हो, और जहाँ विश्वास करना है, वहाँ तर्क डाउट करते हो- ये कितना विपरीत ज्ञान है।
- अगर बाप कपड़ा ला देता है बच्चे को अपने मन का तो बच्चा कहता है ऊँ ऊँ ये क्या लाये हरा हरा, ये तो बड़ा ओल्ड फैशन है। ये हाल है। अरे बड़ा महँगा है बेटा ! अरे होगा महँगा, ये तो कलर ठीक नहीं है। ये सब हमारे मन का बनाया हुआ है न। हम जब पैदा हुए थे कोई कलर माँग रहे थे क्या ? ये सब मन ने कल्पना की है, अपने अपने ढंग से और परेशानी मोल ले लिया हम लोगों ने। अब हम कहते हैं अब हम इसके बिना नहीं रह सकते हैं
- देखो एक गरीब है मामूली कपड़ा पहनता है बिना जूते के चलता है एक झोंपड़े में रहता है। लेकिन अगर एक करोड़पति को कहा जाय कि तुम भी इसी की तरह कपड़े पहनो, इसी प्रकार तुम भी खाओ, इसी प्रकार तुम भी झोंपड़े में रहो एक महीना। तो कैसी गुजरेगी उसके ऊपर। अरे ! हमको पहले बिस्तर के ऊपर चाय मिलनी चाहिये। इसके बिना काम नहीं बनेगा। इण्डिया में तो पहले चाय होती ही नहीं थी हैं...। सब लोग कैसे बड़े-बड़े योगीन्द्र मुनीन्द्र बड़े-बड़े पहलवान और बड़े-बड़े बुद्धिमान हुए हैं जिनकी कल्पना भी आप चाय पीने वाले नहीं कर सकते। पच्चीस वर्ष की आयु में चारों वेद, छहों शास्त्र का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की कैचिंग पॉवर होती थी उन लोगों में और आज पच्चीस साल में एक सब्जैक्ट में एम.ए. खाली करते हैं आप। बस, एक सब्जेक्ट में वह भी ४० परसेन्ट आ गया तो भी एम.ए. हो गये, ३३ परसेन्ट आ गया तो भी एम.ए हो गये, ६० परसेन्ट आ गया तो क्या बात है फर्स्ट डिवीजन है, हम तो, बड़े विभोर हैं। अभी ४० परसेन्ट आपको नहीं याद है सबक ६० परसेन्ट नम्बर आया है और आप मास्टर हो गये एम. ए ये क्या बढ़िया डिग्री बनाई है। कैसे मास्टर हो गये आप। अभी तो आप विद्यार्थी भी नहीं हैं। सेन्ट परसेन्ट नम्बर आवे तो आप विद्यार्थी बनें। लेकिन गधों ने ऐसे ही डिग्रियों के नाम रख दिये हैं बच्चे तो अपना डिग्री ले लेते हैं। वह भी एक सब्जैक्ट में। हमारी कैचिंग पॉवर क्या है ? महाभारत में कितने शॉर्ट में श्रीकृष्ण ने समझा दिया सम्पूर्ण शास्त्र वेद का ज्ञान, अर्जुन समझ गया सब प्रैक्टिकल सरैण्डर कर दिया प्लस माया समाप्त हो गई सब हो गया। और कर्मयोग प्रारम्भ हो गया युद्ध। और यहाँ गीता पढ़ते-पढ़ते, लैक्चर देते-देते सौ, वर्ष की उमर बीत गई। संसार का अटैचमेन्ट
- ४ लड़कियाँ खड़ी हो जाए कहीं कपड़े की दुकान पर और कोई कपड़ा जरा पसंद आ जाए सबको, असम्भव, ये कलर क्या है, ये ओल्ड है, ये न्यू है, ये लेटेस्ट है, क्या खोपड़ा है शब्दों को याद कर रखा है और वही पुराना फिर वही नया बन जाता है ४ साल बाद अब ये नया फैशन, क्यों जी तुमने ४ साल पहले कहा था ये पुराना है, हाँ वो जो पुराना था न हमने उसको नाम बदल दिया है अब उसको नया कह दिया, ये जोकरी करतें हैं न, ये बीमारी अपने आप पालते हैं तो जो व्यक्ति अनेक प्रकार के इन कपड़ो के रोगों में ग्रस्त है उसी को कपड़े की बीमारी पैदा होगी, उसी को कपड़े की लालसा होगी, उस गरीब को क्या है जो बिचारा अपने १ धोती मोटी पहन के ठाठ से है और विभोर है कहीं २ महीने में १ बार धोबी के यहाँ देता है कपड़ा, अपने कपड़े को देख कर वोह भी खुश होता है जैसे आप खुश होते है ठीक उसी प्रकार, खुशी में कोई अंतर नहीं है आनंद उसको भी मिलता है केवल पानी में धो लेता है साबुन वाबुन कहाँ बिचारे के पास, करड़ो आदमी हमारे देश में ऐसे हैं, पानी से धोया तो क्या कपड़ा साफ होगा १ महीने का गन्दा, प्रेस करने का सवाल ही नहीं पैदा होता लेकिन उसी को देख कर के अपना जंच रहे है, बड़ा विभोर होता है जो आपको आनंद मिल रहा है इतने के प्राप्त में, चाहे पेरिस से कपड़े धुल के आवें वही आनंद उसको भी मिल रहा है गरीब को, आनंद में कोई अंतर नई
- १ व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से कहता है की हम तो रोज खाते है, अरे बहुत खाया है मैं नीचे फैमली का नहीं हूँ बड़े आदमी की फैमली का हूँ बहुत खाया है, याद रखो जिसने बहुत खाया है वही रसगुल्ले का मरीज होगा, जिसने कभी नहीं खाया रसगुल्ला उसे क्या पता क्या बला है रसगुल्ला, उस गाँव के गँवार को तो गुड मिल जाए उसी में विभोर हो जाएगा, उसको रसगुल्ला की बीमारी कैसे पैदा होगी, जो पदार्थ जिस व्यक्ति को अधिक मिला है वही उसका मरीज होगा जिसने कभी चाय नहीं पी उसको चाय का क्या रोग पैदा हो सकता है जो रोज पीता है उसको पैदा होता है ये लोग भोलेपन में कह देते हैं हमने तो बहुत खाया है बहुत आराम से हमारा तो पेट भर गया, पेट भर नहीं जाएगा पेट बढ़ता है जितना विषय सेवन करोगे उतने वो इच्छाएँ बढ़ती जाएगी वो घटती नहीं इसलिए पैसे वाले को पैसे की ही भूख है शरीर नष्ट हो जाए बच्चे भाड़ में जाए पैसा उसके सामने १ लक्ष्य है इसी प्रकार स्त्री का शौकीन, इसी प्रकार इसी वस्तु का शौकिन जिस विषय में अधिक दिन रहेगा उसी की कामना पैदा होगी उसी का मरीज रहेगा ये नियम इसलिए जो हालत गरीब की है उससे बुरी हालत उसके बराबर नहीं कह सकते क्योंकि गरीब की कामना छोटी सी होती है
- प्रैक्टिस से अनित्य बहिरंग चीजों को मन में घुसा लिया
- एक लड़का एक लड़की के लिए सोचता है, लड़की बड़ी अच्छी है, उसकी आँखें अच्छी हैं, उसकी नाक अच्छी है, उसके कान अच्छे हैं, उसका चलना अच्छा है, उसका बोलना अच्छा है। बार-बार, बार-बार, बार-बार जो चिन्तन का रिवीजन करता है तो तल्लीन अवस्था पर पहुँच जाता है एक व्यक्ति। एक कम चिन्तन करता है, मामूली प्यार हुआ। एक ने कहा हटाओ फालतू खोपड़ा खराब करना। वो आराम से बैठा है। तीनों लड़के दोस्त थे। एक लड़की को तीनों ने देखा, और एक पागल हो गया उसकी मृत्यु की अवस्था आ गई, दूसरा मामूली प्यार उसका हुआ और तीसरा कहता है आप लोगों के भी क्या दिमाग खराब हैं। अरे हजारों लड़कियाँ हैं। ऐसी लड़की देख करके आप लोग पागल होंगे तो मर जायेंगे फिर इस तरह से तो। क्या करेंगे संसार में आप लोग ? अरे ! कुछ संसार का काम करना हो चाहे परमार्थ का करना हो नॉर्मल रखो अपने को। हाँ कोई लड़की जहाँ ब्याह होगा वहाँ कर लेना, जो करना हो। अब हर लड़की के पीछे तुम पागल होगे, कोई इंसान हो ? कोई खोपड़ी है तुम्हारे ? वो अपना ये लेक्चर दे रहा है। और जो चिन्तन कर रहा है वह कहता है अरे मूर्ख तुझे क्या मालूम वह खोपड़ी से निकलते ही, अरे क्या खोपड़ी से अलग वह शरीर धारी जीव है तुम्हारी खोपड़ी में कैसे घुसा है, अजी वो चिंतन से घुस लिया है मैंने, जिस वस्तु में बार-बार सुख का चिंतन करेंगे उसमें अटैचमेंट हो जाएगा
- जिससे प्यार करोगे मरने के बाद उसकी प्रॉपर्टी मिलेगी
- हमारे ४ लड़कियाँ हैं हमने ४ लड़के से ब्याह कर दिया अब उसेमें १ लड़का IAS में आ गया तो वो लड़की मेम साहब कहलाने लगी १ लड़का IAS में नहीं आया वो बाबू बना तो बबुआइन कहलाने लगी १ लड़का आवारा हो गया, शराबी कबाबी हो गया, भिखारी हो गया तो उसकी बीवी को लोग भिखारीन कहने लगे उस की प्रॉपटी मिलेगी उसको, तो इधर पॉवर मिलेगी उसीकी, तमो गुणी है तो तमो गुणी पावर मिलेगी, रजो गुणी है तो रजो गुणी मिलेगी, सत्त्व गुणी है तो सत्त्व गुणी मिलेगी, गुणातीत है अगर तो फिर गुणातीत फल मिलेगा
- भगवान से संसार माँगना घोर मूर्खता
- १ बार १ कथानक आपको बताएं, रामकृष्ण परमहंस को कैंसर हो गया है, नासूर गले का, आज तक अभी कैंसर का इलाज को ठीक ठीक नहीं निकला सारी दुनिया में, तो रामकृष्ण परमहंस के जमाने में भला कौन इलाज करता, सब को पहले से ही मालूम हो गया था की अब रामकृष्ण परमहंस ४ दिन के मेहमान हैं लेकिन कलकत्ता में बंगाल में उनकी इतनी ख्याति थी की उन्होंने को कइयों को अच्छा कर दिया वगैरह वगैरह, तो लोगो ने जाकर कहा रामकृष्ण परमहंस से की आप तो सिद्ध हैं आपके लिए तो खिलवाड़ है जरा माँ से कह दीजिये कैंसर वैंसर सब गायब हो जाए, अरे जब माया समाप्त हो सकती है तो कैंसर वैंसर में क्या धरा गई, तो रामकृष्ण परमहंस ने ऐसा करारा उत्तर दिया, उन्होंने कहा क्यों जी जिस मन से मैंने दिव्य माँ का ध्यान किया उस मन को मैं अब कैंसर में लगाऊँ ? और जिस माँ की सेवा के लिए मैंने माँ से प्यार किया उस माँ से मैं इस डर्टी चीज के लिए कहूँ, ये छिछोरापन मैं नही कर सकता, माँ से कहूँ मैं गन्दे शरीर के लिए, अरे कैंसर अच्छा हो जाएगा तब भी तो शरीर छोडना पडेगा समय पूरा होने पर, जितना समय जिसके लिए निश्चित है वो चाहे जो भी हो ऋषि हो हो महापुरुष हो कोई हो स्वयं भगवान भी अपने निश्चित समय के बाद १ क्षण नहीं रह सकते
- मिथ्या शब्द का अर्थ
- मिथ्या शब्द का १ अर्थ है nothing कुछ नहीं जैसे खरगोश की सिंग मिथ्या है यानी खरगोश की सिंग होती ही नहीं, मिथ्या शब्द का और अर्थ है उसके समान नहीं है, उसके आगे मिथ्या है, ये सत्य है, जैसे मिट्टी और उससे बना घड़ा, मिट्टी के आगे घड़ा मिथ्या है, ऐसे ब्रह्म के आगे संसार मिथ्या है, कार्य कारण भाव है
- किसी से बहस न करो
- १ व्यक्ति से आप बहस कर रहे हैं जहाँ देख लो की ज़िद्द कर रहा है वहीं चुप हो जाओ और मान लो आगे न बढ़ो, हाँ हाँ आप ठीक कह रहे हैं, बात खत्म करो आगे न बढ़ो क्योंकि संसार में कुछ लोगों का लक्ष्य है चिढ़ाओ इसको, इसके खिलाफ बोलो, ये जो कुछ कहे उसका उल्टा बोलो और आप परेशान होंगे क्योंकि आपको पूर्णज्ञान तो है नहीं
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